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शिक्षा नीति 2020 

शिक्षा नीति 2020 

गत 34 वर्षों से चली आ रही शिक्षा नीति में भारत सरकार द्वारा व्यापक पैमाने पर बदलाव करने वाली नई शिक्षा नीति को प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केन्द्रीय मंत्री मंड़ल की बैठक में स्वीकार कर लिया गया है। शिक्षाविदों के अनुसार संसद की स्वीकृति के पश्चात जब इसे लागू किया जायेगा तो शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन देखने में आयेंगे। भारत ने शिक्षा नीति 2020 में शिक्षा, पढ़ाई और परीक्षा में प्राप्त होने वाले अंकों की प्रणाली में काफी बदलाव किये हैं। इस नीति के अन्तर्गत अब स्कूली और उच्च शिक्षा के साथ-साथ तकनीकी शिक्षा जैसी व्यावसायिक शिक्षाओं पर अधिक ध्यान दिया जायेगा। इससे छात्रों को पढ़ाई के साथ-साथ किसी व्यवसाय को सीखने का अवसर प्राप्त होगा। जर्मनी में इस प्रकार की शिक्षा का सफल प्रयोग वर्षों से किया जा रहा है।
भारत में बहुत बड़ी संख्या में बच्चे विभिन्न पारिवारिक समस्यायों के कारण बीच में ही शिक्षा प्राप्ति से किनारा कर लेते हैं। इससे उनके जीवन में तो व्यवधान आता ही है शिक्षा प्रणाली भी चरमरा जाती है। शिक्षा के क्षेत्र की इस सबसे बड़ी समस्या से निजात पाने का प्रयास नई शिक्षा नीति में किया गया है। अब छात्र एक वर्ष की पढ़ाई के बाद, सर्टिफिकेट, दो वर्ष बाद डिप्लोमा और तीन-चार वर्ष की शिक्षा पूरी करने पर डिग्री प्राप्त कर सकेंगे।
शिक्षा के क्षेत्र में निवेश के अभाव को सदैव अनुभव किया जाता रहा है। अब सरकार ने सकल घरेलू उत्पाद की छह प्रतिशत राशि शिक्षा पर व्यय करने की योजना बनाई है। इससे अब किसी प्रकार से धन का अभाव नहीं रहेगा। किसी भी कल्याणकारी राज्य के लिए यह एक महत्वपूर्ण निर्णय माना जा सकता है। केवल शिक्षा पर ही पूरा ध्यान केन्द्रित किया जा सके इसके लिये अब मंत्रालय का नाम मानव विकास संसाधन से परिवर्तित करके शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। शिक्षकों की निपुणता और कार्यक्षमताओं पर भी सदैव प्रश्न चिन्ह लगाये जाते रहें हैं इस कमी को दूर करने के लिए नई शिक्षा नीति में शिक्षकों के प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दिया जायेगा। बच्चों के रिपोर्ट कार्ड में रोजगारपरक शिक्षा के अंकों को भी पर्याप्त महत्व मिलेगा। यह नीति छात्रों को कुछ व्यवसायों से जुड़ने और उसका प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए आकर्षित करेगी। आशा की जानी चाहिए कि इस नीति के कारण समाज के दृष्टिकोण में भी परिवर्तन आयेगा। इस सन्दर्भ में स्वयं प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट किया है कि नई शिक्षा नीति का उद्देश्य है कि समाज रोजगार मांगने की अपेक्षा रोजगार पैदा करने की क्षमता वाले वर्ग का विकास हो।
इस नीति के अन्तर्गत यह सुनिशचित किया जायेगा कि वर्ष 2030 तक देश का प्रत्येक बच्चा इसकी परिधि में आ जाये। स्कूली शिक्षा के पश्चात छात्रों के लिए उच्च शिक्षा के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में पदार्पण के विकल्प उपलब्ध रहेंगे।
स्कूली स्तर तक बड़ी मात्रा में छात्र इतने अधिक अंक प्राप्त कर लेते थे जिस पर समय समय पर ऊंगली उठाई जाती रही है। अंक तालिका के आधार पर कुछ ऐसे छात्र भी विश्वविद्यालयों में स्थान पा जाते थे जो वास्तव में उसके अधिकारी नहीं होते थे। इस कमी को दूर करने के लिए सरकार ने उच्च शिक्षा जारी रखने के लिये इस नीति में कॉमन एंट्रेंस परीक्षा का प्रावधान किया गया है। इससे उन छात्रों के चयन में सहायता मिलेगी जो उच्च शिक्षा प्राप्त करने के वास्तविक अधिकारी होंगे। अनेक विभागों में पहले से ही ऐसी परीक्षायों का प्रावधान है।
नई शिक्षा नीति में भारतीय ज्ञान पद्धतियों को सम्मलित करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा आयोग का गठन करने और निजी स्कूलों की फीस वसूलने के मामले में मनमानी रोकने की सिफारिश की गई है। यह आयोग भारत की प्राचीन ज्ञान पद्धतियों को समग्रता के साथ शिक्षा से जोडने का काम करेगा। नई शिक्षा नीति में एम. फिल को समाप्त कर दिया गया है । अब छात्र 4 वर्ष के डिग्री प्रोगाम के साथ एक वर्ष एम. ए. करके सीधे पी.एचडी कर सकेंगे। छात्रों को अपने लिए विषय चुनने में भी बहुत स्वतंत्रता दी जायेगी। विषयों को किसी एक स्ट्रीम में बांध कर ही विषय चुनने के लिए बाध्य नहीं किया जायेगा।
प्रयास किया जायेगा कि पांचवी कक्षा तक बच्चों को उनकी मातृ भाषा में शिक्षा दी जाये। जहां घर और स्कूल की भाषाओं में अन्तर हो वहां दो भाषाओं के प्रयोग का सुज्ञाव दिया गया है। लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की बात की गई है उसके लिए कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय का विस्तार12 कक्षा तक करने का सुझाव है। शिक्षा के साथ साथ यदि कोई छात्र अनुसंधान करना चाहेगा तो उसे वित्तीय सहायता दी जाने की बात भी की गई है। भाषा और गणित की पढ़ाई पर प्रारम्भ से ही अधिक ध्यान देने की बात नई शिक्षा नीति में है। बच्चों को पुस्तकों के अतिरिक्त अन्य माध्यमों से शिक्षित करने पर बल दिया जायेगा। बस्ते का बोझ कम करने के लिए इसे आवश्यक माना गया है। बस्तों का बोझ करने की मांग समाज द्वारा लंबे समय से की जाती रही है। आशा है नई शिक्षा नीति से देश के भावी नागरिकों के सर्वांगीण विकास के द्वार खुलेंगे। उनकी बहुमुखी प्रतिभा में निखार आयेगा।
(लेखक- मनोहर पुरी)

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