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राहत इंदौरी की याद में,ऐ मौत तूने मुझको जमींदार कर दिया! 

राहत इंदौरी की याद में,ऐ मौत तूने मुझको जमींदार कर दिया! 

"दो गज सही मगर ये मेरी मिल्कियत तो है, ऐ मौत तूने मुझको जमींदार कर दिया।"मौत पर यह उम्दा शेर पढ़कर वाह वाही बटोरने वाले देश के ही नही दुनिया के नामचीन शायर राहत इंदौरी अब हमारे बीच नही है।
मोहब्बत और बगावत की शायरी से युवाओं के दिल को जीतने वाले शायर राहत इंदौरी का अचानक यूं चले जाना सबको अखर रहा है। उनकी कोरोना टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। इसी बीच उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनका निधन हो गया। लॉकडाउन से पहले तक राहत इंदौरी कई मुशायरों में शिरकत करते रहे। वे अपनी शायरी के द्वारा मरते दम तक युवाओं के दिलो पर राज करते रहे ।
राहत इंदौरी ने अपनी शायरी और गजलों से कई सरकारों को आईना भी दिखाया  तो बॉलीवुड की कई फिल्मों के लिए गाने भी लिखे हैं।
वे कहा करते थे,"एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तों 
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो।"
वही उन्होंने फ़रमाया था,"बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूं पिला देनी चाहिए"
अपनी खुद्दारी उन्होंने कुछ यूं बयां की," वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा,
मैं उस के ताज की क़ीमत लगा के लौट आया।"
अपनी बीमारी पर भी वे यह कहने से नही चूके ,"अफवाह थी की मेरी तबियत ख़राब है,
लोगों ने पूछ पूछ के बीमार कर दिया।"
उन्होंने देशभक्ति पर  अपनी कलम कुछ यूं चलाई,"सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में,
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है।"
राहत इंदौरी का जन्म एक जनवरी सन 1950 को हुआ था। रिफअत उल्लाह के घर उनकी पैदाइश हुई थी।  राहत इंदौरी के पिता रिफअत उल्लाह सन 1942 में सोनकछ देवास जिले से इंदौर आ गए थे। राहत इंदौरी के  बचपन का नाम कामिल था। बाद में इनका नाम बदलकर राहत उल्लाह कर दिया गया।
उनका बचपन बहुत गरीबी में गुजरा। पिता ने इंदौर आने के बाद पहले ऑटो चलाया फिर एक मिल में काम किया। उन दिनों आर्थिक मंदी का दौर चल रहा था। सन 1939 से सन1945 तक दूसरे विश्वयुद्ध का भारत पर भी प्रभाव पड़ा था। मिलें बंद हो गईं थी ,जिस कारण श्रमिकों की  छंटनी होने लगी। राहत इंदौरी के पिता की भी नौकरी चली गई। हालात इतने खराब हो गए कि राहत इंदौरी के परिवार को बेघर तक होना पड़ा था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा नूतन स्कूल इंदौर में हुई थी। उन्होंने इस्लामिया करीमिया कॉलेज इंदौर से सन 1973 में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की और सन 1975 में बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल से उर्दू साहित्य में एमए किया, तत्पश्चात सन1985 में मध्य प्रदेश के मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।यानि उर्दू भाषा और उर्दू शायरी का उन्हें डॉक्टर कहे तो गलत नही होगा।घर चलाने के लिए उन्होंने अपने ही शहर इंदौर में एक साइन-चित्रकार के रूप में 10 साल से भी कम उम्र में काम करना शुरू कर दिया था। चित्रकारी उनकी रुचि में शामिल थी और चित्रकार के रूप में बहुत जल्दी उन्होंने ख्याति अर्जित कर ली थी। वह कुछ ही समय में इंदौर के व्यस्ततम साइनबोर्ड चित्रकार बन गए थे। उनकी प्रतिभा, असाधारण डिज़ाइन कौशल, शानदार रंग संयोजन और कल्पनाशीलता की बदौलत वे प्रसिद्ध हुए। एक दौर था जब  ग्राहकों को राहत इंदौरी के द्वारा चित्रित बोर्डों को पाने के लिए महीनों का इंतजार करना पड़ता था। उनके द्वारा बनाये गए दुकानों पर लगे कई साइनबोर्ड्स  इंदौर में आज भी देखा जा सकते है। राहत इंदौरी ने बॉलीवुड के लिए भी कई गाने लिखे। राहत इंदौरी ने सबसे पहले फिल्म 'सर' के लिए गाना लिखा था। उनके द्वारा लिखा गीत 'आज हमने दिल का हर किस्सा' काफी चर्चित हुआ था। इसके बाद उन्होंने खुद्दार, मर्डर, मुन्नाभाई एमबीबीएस, मिशन कश्मीर, करीब, इश्क, घातक और बेगम जान जैसी फिल्मों के लिए गाने लिखे,जो सराहे गए।
 राहत इंदौरी ने हिंदी फिल्मों के गानों पर बोलते हुए कहा था कि फिल्मों के गीतों से अब ‘शब्द’ गायब हो चुके हैं और यही वजह है कि शायर और शायरी फिल्म इंडस्ट्री से दूर होती जा रही हैं। अब फिल्मों में ढिंक चिका, ढिंक चिका.. जैसे गानों की डिमांड है, ऐसे ही गाने लिखे और गाए जा रहे हैं। जो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।राहत इंदौरी ने स्वयं ट्वीट कर लिखा था-कोविड के शरुआती लक्षण दिखाई देने पर कल मेरा कोरोना टेस्ट किया गया, जिसकी रिपोर्ट पॉज़िटिव आयी है।ऑरबिंदो हॉस्पिटल में एडमिट हूं, दुआ कीजिये जल्द से जल्द इस बीमारी को हरा दूं। लेकिन राहत इंदौरी को दो बार ह्रदयघात हुआ और हमेशा के लिए राहत इंदौरी शांत हो गए। बस शेष है तो उनकी यादे और उनकी लिखी ग़ज़ले।जिसे जमाना देर तक भी भूला न पाएगा।
(लेखक-डॉ श्रीगोपाल नारसन )
 

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