कोरोना विश्व की विपत्ति का कारण प्रकृति प्रकोप है।संसार सागर का बनाने वाला ८४ लाख योनी जलचर, थलचर, नभचर नाना प्रकार की योनि में श्रेष्ठ मानव योनि यानि मनुष्य ही श्रेष्ठ कहा गया है। प्रकृति प्रकोप के कारण मनुष्य की वृत्ति में जिस वृत्ति में मनुष्य गिरता उठता, जीता मरता तथा कष्ठ भोगता उसे कर्म भोग कहत हैं इस युग इस समय मनुष्य अपने कर्म धर्म से गिरकार वैभव विलाष में डूब गया है उसे माता पिता पुत्र स्त्री, धर्म कर्म की प्रतिनिष्ठा प्रेम का भाव समुचित भी दिखाई नहीं देता। धन कमाने के होड़ में मानव अपने कत्र्तव्य को भूल गया है। जिन कत्र्तव्यों के बल पर प्रकृति निष्ठ होकर सर्वजन्म मानस की वृत्तियों के भोग में समाहित होती है। क्योंकि मानव जीवन प्रकृत्ति पुरूष का ही जीवन है ये दोनों सृष्टि के निर्माता राष्ट्र विश्व के सहयोगी सहभागी हैैं। सृष्टि रचना में प्रकृति का पूर्ण योगदान होता हैै जिसे मानव भूल गया है। विश्व समुदाय जातपात, भाव भाषा धर्म अर्थव्यवस्था में जूझकर जीवन की धारा को ही बदल कर रख दिया है। भारत का विश्व में भारत माता को पूजा जाता है अर्थात मांं को पूजा जाता है अर्थात माता प्रकृति है जिसने अपनी सेवाओं से जन्म लेने वाली जीवात्मा को बालक बालिका, नारी, पुरूष के रूप में रहकर संसार को संचालित करती है।
श्लोक है-.....................
देवी प्रशन्नार्थ हरे प्रसीद प्रसिद मातरजगतु अखिलस्य प्रसिद विश्वेश्वरी पाही विश्वं त्वमीश्वरीदेवी चराचरश्य।
दुर्गा सप्पसती हिन्दू धर्म का सर्वमान्य तथ्य है इसमें भगवती कृपा के सुंदर इतिहास के साथ बड़े बड़े गूढ़ रहस्य भरे हैं। कर्मभक्ति ज्ञान की त्रिविद मंदाकिनी बहाने वाली कही गई है। स्वरधि से मेघरिषि ने कहा है।
श्लोक.........................
श्याम वैही महाराज शरणम परमेश्वरी आराधिता सैव निरणाम भोग सर्गाप वर्गदा।
महाराज आप उसी मरमेश्वरी भगवती की शरण में जायें यह आराधना से प्रशन्न होकर मनुष्य को स्वर्ग,भोग, मोक्ष अनुरावृत्ति मोक्ष प्रदान करते है। मेघारिषि राजा वृत्त से कहते है कि मनुष्य को शुभ अशुभ कर्म के अनुवूâल शूभ अशुभ फल अवश्य मिलता है जैसे कर्म की प्रकृति होती है फल वैसा ही होता हेै । फल तो मिलता ही है इसलिये फल की चिंता किये बिना ही कर्मरथ रहना चाहिये। योग हमारी वाणी दूसरों की वाणी से मिल जाये मनुष्यों और देवों की बुद्ध एक हो तेज एक हो राष्ट्र में सबकी वाणीयां एक हो, विरोधी न हो, सबकी बुद्धियां व विचारों में परस्पर अनुवूâलता हिम समाजस्य हो सब लोग विधानों व श्रेष्ष्ठ पुरूषो के बताये मार्ग पर चले और सब में वह वैचारिक समानता हो, मनुष्यों की करनी और कथनी में अंतर न हो ऐसा होने पर एकता बढ़ेगी और सब एक दूजे के कार्यों में आयेंगे राष्ट्र की अखंडता सुद्रण होगी और उन्नत बढ़ेगी। मनुष्य को चाहिये की वह देवी देवाताओं के गुणा व बड़ों से प्रेरणा लेकर सदैव सतत एवं सम्यक कर्म करता रहे। जिससे अभीष्ट की प्राप्ति हो यश और बल की चाह रखने वाले मनुष्य को सदैव कर्म करते रहना चाहिये। अत: भारत के हर जात धर्म जनसमुदाय का उत्तरदायित्व है कि अपने धर्म समाज के देवी देवताओं की आराधना प्रार्थना से कोरोना महामारी को पूजा पाठ से संकल्प लेकर भगाने का प्रयास सच्चे मन से किया जाये तो भारत क्या विश्व का संकट अकेले भारत के धर्म गुरू विद्यवान देवी उपासक निश्चय धर्म सेवा से कोरोना का भगा देंगे।
(लेखक-पीएल गौतामाचार्य )
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‘‘दवा भर नहीं दुआ की भी जरूरत है‘‘