कोरोना एक ऐसी बीमारी है जिसने जिस व्यक्ति को भी आगोश में लिया उसे या तो मौत दी या सामाजिक अलगाव दिया। जो उसके चंगुल से बच गया ,उसे भी या तो अपनी नोकरी गंवानी पड़ी या कारोबार में घाटा झेलना पड़ा।कुछ के घरों के चूल्हे महीनों तक ठंडे पड़े रहे।लगभग छ महीने से कही लॉक डाउन तो कही कन्टेनमेन्ट जोन के कारण आम दिनचर्या प्रभावित हो रही है।जिसका सीधा असर रोजगार पर पड़ रहा है।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी के अनुसार गत जुलाई महीने में 50 लाख नौकरियां चली गईं। पिछले साल के मुकाबले इस साल अब तक 1 करोड़ 90 लाख नोकरीपेशा लोगों को अपनी नौकरी गंवानी पडी है। जिससे साफ है कि कोरोनावायरस संकट का असर अर्थव्यवस्था पर गहराता जा रहा है।
असंगठित क्षेत्र में रोज़गार के अवसर में कुछ सुधार जरूर हुआ है लेकिन वेतन आधारित नौकरियों में संकट बढ़ रहा है ,जो चिंता का विषय है।
दरअसल कोरोना के बढ़ते मामलों का असर टूरिज्म, ट्रेवल और हॉस्पिटैलिटी सेक्टर अधिक पड़ा हैं। इन क्षेत्रों में 3 से 4 करोड़ तक नौकरियां जाने का अनुमान है।केंद्र सरकार भले ही अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के दावे कर रही हो, लेकिन ताजा आंकड़े जॉब मार्केट की बदहाली बयां कर रहे हैं। अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में सुस्ती के बाद अब बेरोजगारी के आंकड़े भी स्लोडाउन के संकेत दे रहे हैं। देश में बेरोजगारी की दर फरवरी माह में बढ़कर 7.78% पर पहुंची, जो अब ओर अधिक बढ़ गई है।
सन 2019 में बेरोजगारी दर 45 साल के सबसे ऊपरी स्तर पर है। आंकड़ों के मुताबिक, ग्रामीण इलाकों में फरवरी में बेरोजगारी दर बढ़कर 7.37% रही, जो उससे पहले महीने 5.97% थी, जबकि शहरी इलाकों में यह आंकड़ा 8.65% रहा, जो जनवरी में 9.70% था।माना जा रहा है, अर्थव्यवस्था की रफ्तार में अभी और गिरावट दर्ज की जा सकती है।तीसरी तिमाही में देश की आर्थिक विकास दर पिछली तिमाही के मुकाबले मामूली बढ़कर 4.7 फीसदी पर पहुंची है। इससे पहले दूसरी तिमाही में आर्थिक विकास दर 4.5 फीसदी थी, जो 6.5 प्रतिशत पर साल के सबसे निम्न स्तर है। वही चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-दिसंबर अवधि में भारतीय अर्थव्यवस्था 5.1 प्रतिशत की रफ्तार से आगे बढ़ी है, पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के लिए यह आंकड़ा 6.3 प्रतिशत था।केंद्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष के लिए 5 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि की दर के अनुमान को बरकरार रखा है, जो 11 साल का न्यूनतम स्तर कहा जा सकता है।
युवाओं के लिये रोजगार सृजित करने, शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों को पटरी पर लाने और 66 करोड़ युवा आबादी की निराशा को कम करने के लिये पैमाने पर सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है।
कोविड-19 संकट से पहले ही एशिया और प्रशांत क्षेत्र में युवाओं के समक्ष रोजगार को लेकर चुनौतियां बरकरार थी।इसी कारण बेरोजगारी दर ऊंची थी और बड़ी संख्या में युवा स्कूल तथा रोजगार दोनों से बाहर थे।सन 2019 में क्षेत्रीय युवा बेरोजगारी दर 13.8 प्रतिशत रही, वहीं 25 साल और उससे अधिक उम्र के युवाओं की यह दर 3 प्रतिशत थी। यानि 16 करोड़ से अधिक युवा न तो रोजगार पा सके और न ही शिक्षा या कोई प्रशिक्षण प्राप्त कर सके।
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय कुमार सिंह का कहना है कि देश आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा है। देश का जीडीपी पांच प्रतिशत तक पहुंचने के कारण उद्योग-धंधे चौपट हो रहे हैं। इसके कारण लोग बेरोजगार हो रहे हैं।
उनका आरोप है कि केन्द्र सरकार गैर जरूरी मुद्दों में लोगों को उलझा कर गरीबी, बेरोजगारी जैसे सवालो से भाग रही है। ऐसे में देश के युवाओं का भविष्य फिलहाल तो अधर में ही लटका हुआ है।न पढ़ाई हो पा रही है और न ही नौकरियां मिल पा रही है।जबकि उम्र का मीटर तो लगातार आगे बढ़ रहा है जो बहुतो को ओवरएज की चिंता में डूबोने के लिए काफी है।
(लेखक- डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट )
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