गुस्सा एक प्रकार का भाव है जो व्यक्ति के अंतर्मन में रहता है। यह एक प्रकार का नकारात्मक भाव है जिस में अपराध बोध, आक्रोष, ईर्ष्या आदि बहुतकुछ शामिल होता है। गुस्सा आने से व्यक्ति की सकारात्मक सोच लगभग समाप्त हो जाती है।
आज के बदलते परिवेश में इस नकारात्मक भाव का असर बच्चों पर भी अधिक दिखाई पड़ने लगा है।
आजकल गुस्से की परिभाषा बदल चुकी है। आज के बच्चे सामान्य तरीके से अपने अभिभावक और मातापिता से ऐसे बातचीत करते हैं जैसे गुस्से में हों जबकि ऐसा होता नहीं। मित्रता की वजह से खुल कर बात करते हैं। अब दोस्ती का वातावरण आ चुका है। बच्चों और मातापिता के बीच की दूरी कम हो चुकी है। सामान्य बातचीत में भी वे एकदूसरे को धक्का मारते हैं। ऐसा नहीं है कि वे मातापिता को प्यार या सम्मान नहीं करते लेकिन देखना यह है कि ये बातचीत कितनी हद तक ठीक है? कहीं वह उन्हें किसी प्रकार की हानि तो नहीं पहुंचा रही? उन के स्वभाव में बदलाव तो नहीं आ रहा?
बदलते समय का दौर
आजकल के बच्चे स्कूल, ट्यूशन और होमवर्क के कारण नींद कम लेते हैं, उन के खाने की सूची ठीक नहीं होती। इस से ‘शुगर’ कम हो जाती है जिस से गुस्सा आता है। उन्हें पढ़ाई अच्छी नहीं लगती। उन में चिड़चिड़ापन आ जाता है। अपनी बात को प्रकट करने के लिए वे उत्तेजित हो जाते हैं।
क्या करें
एस्थेमेटिक, एपिलेप्सी, डायबिटीज वाले बच्चों को गुस्सा अधिक आता है। वे अवसाद के शिकार भी होते हैं। इस के अलावा अगर बच्चा कम नंबर लाए, फेल हो जाए या स्कूल में उसे किसी प्रकार के अपमान का सामना करना पड़े या शिक्षकों का?व्यवहार ठीक न हो तो वह गुस्से के रूप में उसे बाहर निकालता है, इसलिए बच्चा जब चिड़चिड़ा हो गया हो, पढ़ाई पर ध्यान न दे रहा हो, बातबात पर गुस्सा कर रहा हो, शांत रहने लगे, पहले जैसा व्यवहार न कर रहा हो या अचानक व्यवहार में बदलाव आ गया हो, वह बहुत अधिक सो रहा हो या उसे नींद नहीं आती हो, उसे भूख न लगे, दिनोंदिन उस का वजन कम होने लगे, दूसरे बच्चों से मारपीट करने लगे या फिर आक्रोश को अधिक देर तक मन में बनाए रखता हो तो ऐसे में डाक्टर की सलाह अवश्य लें।
कुछ बच्चे हाइपर एक्टिव होते हैं। उन्हें हमेशा कुछ न कुछ गलत काम करने की इच्छा बनी रहती है। ऐसे बच्चों को मनोचिकित्सक को दिखाना चाहिए। गुस्सा वंशानुक्रम भी होता है। कुछ हद तक अगर मातापिता इस के शिकार हैं तो बच्चे को भी होने का अंदेशा होता है पर उन्हें बचपन से डाक्टरी परामर्श मिले तो वे सुधर सकते हैं1
इस प्रकार करें बच्चों के गुस्से को समाप्त।
जो मातापिता बच्चों की बात सुनते हैं उन बच्चों को गुस्सा कम आता है। जो बच्चे खेलकूद में भाग लेते हैं वे शांत होते हैं।
जिन बच्चों की नींद पूरी होती है उन में गुस्सा कम होता है।
व्यायाम या आंसू के निकलने से गुस्सा कम हो जाता है।
बच्चे के मानसिक और शारीरिक बदलाव को मातापिता समझेंगे तो उन्हें उन पर विश्वास हो सकेगा, वे उग्र नहीं बनेंगे1
बच्चों से बढ़ाएं नजदीकियां
मातापिता अपने बचपन को कभी अपने बच्चों से तुलना न करें। बच्चे गुस्से से कई बार आत्मक्षति या आत्महत्या का सहारा लेते हैं। उग्रता को बातचीत या दवा से कम किया जा सकता है। बच्चों पर विश्वास करना भी जरूरी है।
बच्चों के आक्रोश को कम करने के लिए मातापिता, शिक्षक, दोस्त साथ मिल कर काम करेंगे तो परिणाम जल्दी मिलेगा। बच्चे की मानसिक ताकत को बढ़ाने की आवश्यकता है। उन से भावनात्मक संपर्क रखें ताकि वे किसी बुरी बात को भी बोलने की हिम्मत रखें.
बच्चा अगर कुछ गलत करे तो डांटने के बजाय उसे करीब लाएं, गले लगाएं। अपने से दूर न करें। बच्चे में गुस्से की अधिकता की वजह कई बार मातापिता भी होते हैं जो जानेअनजाने में बच्चे की किसी भी इच्छा को तुरंत पूरी कर देते हैं। उन्हें रोने दें। उन्हें लगना चाहिए कि हर चीज जिसे वे मांगते हैं, उस के लिए धैर्य भी रखने की जरूरत है।
आरोग्य
क्या आपका बच्चा भी बात-बात पर गुस्सा करता है