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(चिंतन-मनन) पशुवध निंदनीय-दंडनीय कर्म

(चिंतन-मनन) पशुवध निंदनीय-दंडनीय कर्म

सतोगुण में किये गये पुण्यकर्मो का फल शुद्ध होता है, अतएव वे मुनिगण, जो समस्त मोह से मुक्त हैं, सुखी रहते हैं। लेकिन रजोगुण में किये गये कर्म दुख का कारण बनते है। भौतिक सुख के लिए जो भी कार्य किया जाता है, उसका विफल होना निश्चित है। उदाहरणार्थ, यदि कोई गगनचुम्बी प्रासाद बनवाना चाहता है, तो उसके पूर्व अत्यधिक कष्ट उठाना पड़ता है। मालिक को धन-संग्रह के लिए कष्ट उठाना पड़ता है और प्रासाद बनाने वाले श्रमिकों को श्रम करना होता है। अतएव भगवद्गीता का कथन है कि रजोगुण के अधीन होकर जो भी कर्म किया जाता है, उसमें निश्चित रूप से महान कष्ट भोगने होते हैं।  
इससे यह मानसिक तृप्ति हो सकती है कि मैंने यह मकान बनवाया या इतना धन कमाया, लेकिन यह वास्तविक सुख नहीं है। जहां तक तमोगुण का सम्बन्ध है, कर्ता को कुछ ज्ञान नहीं रहता, अतएव उसके समस्त कार्य उस समय दुखदायक होते हैं और बाद में उसे पशु जीवन में जाना होता है। पशु जीवन सदैव दुखमय है, यद्यपि माया के वशीभूत होकर वे इसे समझ नहीं पाते। पशुओं का वध भी तमोगुण के कारण है। पशु-बधिक यह नहीं जानते कि भविष्य में इस पशु को ऐसा शरीर प्राप्त होगा, जिससे वह उनका वध करेगा। यही प्रकृति का नियम है। मानव समाज में यदि कोई किसी मनुष्य का वध कर दे तो उसे प्राणदंड मिलता है।  
यह राज्य का नियम है। अज्ञानवश लोग अनुभव नहीं करते कि संसार परमेश्वर द्वारा नियंत्रित एक पूरा राज्य है। प्रत्येक जीवित प्राणी परमेश्वर की संतान है और उन्हें एक चींटी तक का मारा जाना सह्य नहीं हैं। इसके लिए मनुष्य को दंड भोगना पड़ता है। अतएव स्वाद के लिए पशु-वध में रत रहना घोर अज्ञान मनुष्य को पशुओं के वध की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि ईश्वर ने अनेक अच्छी वस्तुएं प्रदान की हैं। यदि कोई किसी कारण मांसाहार करता है, तो यह समझना चाहिए कि वह अज्ञानवश ऐसा कर रहा है और अपने भविष्य को अंधकारमय बना रहा है।  
 

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