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(स्मृति शेष:) काम के प्रति सदैव वफादार रहे प्रणव मुखर्जी !

(स्मृति शेष:) काम के प्रति सदैव वफादार रहे प्रणव मुखर्जी !

 भारत के 13 वें राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का निधन विचलित करने वाला है। उन्होंने सन 2012 से सन 2017 तक पद की गरिमा बढाई थी।प्रणव मुखर्जी भारत के राष्ट्रपति बनने से पहले मनमोहन सिंह की सरकार में वित्त मंत्री थे। प्रणव  भारत के आर्थिक मामलों, संसदीय कार्य, बुनियादी सुविधाएँ व् सुरक्षा समिति के भी वरिष्ठ नेता थे। उन्होंने विश्व व्यापार संघठन व् भारतीय विशिष्ठ पहचान प्राधिकरण क्षेत्र में भी कार्य किया था, जिसका अनुभव उनके भारत की राजनैतिक यात्रा में बहुत काम आया। सन 2009 से सन 2012 तक वे देश के वित्त मंत्री रहे। राजनैतिज्ञ के अलावा प्रणव मुखर्जी एक बहुत अच्छे सामाजिक कार्यकर्त्ता भी थे, वे हमेशा काम के प्रति वफादार और सक्षम प्रकति के रहे । भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विकास के लिए उनका जूनून देखते ही बनता था।
प्रणब मुखर्जी का जन्म पश्चिम बंगाल के किरनाहर शहर के एक छोटे से गांव मिराटी में एक ब्राह्मण परिवार में 11 दिसंबर, 1935 में हुआ था। प्रणब मुखर्जी के पिता  कामदा किंकर मुखर्जी और माता श्रीमती राजलक्ष्मी मुखर्जी का भरपूर सानीदय उन्हें मिला। ग्रामीण बंगाल के बीरभूम में पले-बढ़े प्रणब मुखर्जी अपने उपनाम 'पोल्टू' के नाम से जाने जाते थे। प्रणब मुखर्जी की पत्नी का नाम शुभ्रा मुखर्जी है। उनके दो पुत्र- अभिजीत व इंद्रजीत और एक पुत्री शर्मिष्ठा है। प्रणब मुखर्जी के पुत्र अभिजीत मुखर्जी सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति में आए जो पश्चिम बंगाल विधानसभा में विधायक बने। उनकी बेटी शर्मिष्ठा एक नृत्यांगना हैं। उनके भाई शांति निकेतन विश्व भारती यूनिवर्सिटी के इंदिरा गांधी सेंटर फॉर नेशनल इंटीग्रशन के डायरेक्टर पद से रिटायर हुए है। प्रणब मुखर्जी के पिता कामदा किंकर मुखर्जी क्षेत्र के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे और आज़ादी की लड़ाई में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने के चलते वह 10 वर्षों से ज्यादा समय तक ब्रिटिश जेलों में रहे। उनके पिता सन1920 से अखिल भारतीय कांग्रेस के एक सक्रिय कार्यकर्ता थे और सभी कांग्रेसी आंदोलनों में हिस्सा लिया। देश की आजादी के बाद सन  1952 से लेकर सन 1964 तक पश्चिम बंगाल विधान परिषद के सदस्य रहे  और वीरभूम पश्चिम बंगाल ज़िला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे। पिता का हाथ पकड़ कर ही प्रणब ने राजनीति में प्रवेश किया था।
परिवार के वातावरण को देखते हुए यह प्राकृतिक तौर पर स्वाभाविक था कि वे अपने पिता के. के. मुखर्जी के पदचिन्हों पर चलते। तत्कालीन कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबंधित सूरी विद्यासागर कॉलेज से स्नातक की परीक्षा पास करने के बाद प्रणब मुखर्जी ने कलकत्ता यूनिवर्सिटी से ही इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। कोलकाता विश्वविद्यालय से क़ानून की उपाधि की शिक्षा के बाद पश्चिम बंगाल के बीरभूम ज़िले के एक कॉलेज में प्राध्यापक  बन गए।
कैरियर के शुरुआती दिनों में प्रणब मुखर्जी लंबे समय तक पहले शिक्षक फिर  एक एडवोकेट के रूप में काम किया। प्रणब ने अपना करियर कोलकाता में डिप्टी अकाउंटेंट जनरल के कार्यालय में क्लर्क के रूप में शुरू किया। इसके बाद उन्होंने पत्रकार के रूप में अपने कैरियर को आगे बढ़ाया। उन्होंने जाने-माने बांग्ला प्रकाशन संस्थान देशेर डाक मातृभूमि की पुकार के लिए काम किया। इसके बाद वह बंगीय साहित्य परिषद के ट्रस्टी बने। बाद में निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी बने। यूनिवर्सिटी ऑफ वॉल्वरहैम्पटन ने प्रणब मुखर्जी को डी.लिट की उपाधि भी प्रदान की है।
प्रणब मुखर्जी संजीदा व्यक्तित्व वाले नेता थे। पार्टी के वरिष्ठतम नेता होने के कारण वह राजनीति की अच्छी समझ रखते थे। बंगाली परिवार से होने के कारण उन्हें रबिंद्र संगीत में अत्याधिक रुचि रही। प्रणब मुखर्जी को पश्चिम बंगाल के अन्य निवासियों की तरह ही माँ दुर्गा का उपासक भी माना जाता रहा और दुर्गा पूजा के दौरान वे माता की उपासना करने घर जरूर जाते थे प्रणब मृदुभाषी, गंभीर और कम बोलने वाले नेता रहे है। प्रणब को बागवानी, किताबें पढ़ना और संगीत पसंद रहा है। प्रणब का पसंदीदा खाना है फिश करी रहा। वह मंगलवार को छोड़कर क़रीब-क़रीब रोज़ ही फिश करी खाते थे। वे रोज सुबह जल्दी उठते थे। पूजा के बाद वह अपने काम पर लग जाते थे। दिन में एक घंटा सोते भी थे। रात को सोने से पहले वह कुछ न कुछ जरूर पढ़ते थे। प्रणब प्रतिदिन 18 घंटे काम करते थे। उन्हें पढ़ने, गार्डनिंग व संगीत सुनने का भी शौक़ रहा है।  रवीन्द्र संगीत वह काफ़ी पसंद करते थे। प्रणब चाकलेट खाना खूब पसंद था। चाचा चौधरी की कॉमिक्स के वे जीवन पर्यंत फैन रहे।
(लेखक - डॉ. श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट)

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