आजादी के बाद देश में सर्वाधिक शासन काल कांग्रेस का ही रहा है। इस दौरान इस पार्टी ने अनेक उतार चढ़ाव के दिन देखे है। इस पार्टी पर परिवारवाद का भी आरोप लगता रहा है, जिसमें एक ही परिवार के वर्चस्व की चर्चा प्रमुख रही है। इस पार्टी के साथ यह सच्चाई जमीनी धरातल से जुड़ चली है। जब - जब इस पार्टी का परिवेश आरोपित परिवारवाद की छाया से दूर होने का प्रयास किया, सफलता नहीं मिल पाई। इस संदर्भ में सीताराम केशरी, पी.वी. नरसिंहाराव के अध्यक्षीय नेतृृत्व कार्यकाल को देखा जा सकता है। जहां कांग्रेस बिखरने के कगार पर खड़ी सबसे कमजोर दिखाई देने लगी। इतिहास इस बात का साक्षी है कि राजीव गांधी की षणयंत्र के तहत असमय हुई मृृत्यु के उपरान्त दुःखी गांधी परिवार राजनीति से अपने आप को जब अलग करना चाहा, कांग्रेस के डुबते जनाधार के हालात से कांग्रेस को उबारने के लिये गांधी परिवार की ओर आई आश भरी दृष्टि ने उसे अलग नहीं होने दिया। श्रीमती सोनियां गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस फिर से हरी भरी हो गई। कांग्रेस का सर्वाधिक अध्यक्षीय कार्यकाल बिताते हुये सोनिया गांधी कांग्रेस को कुशल नेतृत्व देने में सफल सिद्ध भी हुई। अपने नेतृृत्व काल में आम चुनाव के दौरान कांग्रेस को अपार सफलता दिलाने के बाद विपक्ष द्वारा विदेशी होने के आरोप को खारिज करते हुए प्रधानमंत्री पद पर स्वंयं के बजाय मनमोहन सिंह का नाम प्रस्तावित कर सर्वशक्तिमान बन गई एवं एक दशक शासन भी किया पर आम चुनाव में हार उपरान्त जब केन्द्र में भाजपा की नई सरकार गठित हुई कांग्रेस के अन्दर अन्तःकलह भी शुरू हो गई फिर भी अभी हाल में हुये राज्यों के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को सफलता भी मिली एवं हिन्दी प्रदेश के तीन मुख्य भाजपा शासित राज्य राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ पर कांग्रेस को विजय मिली । वैसे फिलहाल आपसी टूट के चलते मध्यप्रदेश से कांग्रेस शासन से दूर हो गई जिसके लिये केन्द्रीय नेतृत्व को दोषी माना जा रहा है। इस तरह के हालात में कांग्रेस में गांधी परिवार की ही भूमिका सर्वोपरि नजर आ रही है। आज भी कांग्रेस इसी परिवार के इर्द गिर्द घूमती नजर आ रही है। जिसका ताजा उदाहरण अभी हाल में ही सोनियां गांधी के नेतृृत्व में आयोजित पार्टी की केन्द्रीय बैठक, में जहां कांग्रेस को मजबूत बनाने एवं अध्यक्ष फिर से राहुल गांधी को बनाये जाने की बात प्रमुख रही जब कि राहुल गांधी अध्यक्ष पद छोड़ चुके है। बैठक में फिलहाल अध्यक्ष पद पर, आगामी चयन तक श्रीमती सोनिया गांधी को ही अंतरिम अध्यक्ष पद पर बने रहने का निर्णय लिया गया।
आजादी के बाद देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू से लेकर आज तक कांग्रेस इसी परिवार के इर्दगिर्द घूमती नजर आ रही है। इतिहास साक्षी इस बात का रहा है कि जब भी कांग्रेस इस परिवेश से बाहर निकलकर आई, जम नहीं पाई। अनियंत्रित नेतृत्व के चलते बिखरती गई। इस तरहकी स्थिति भले अलोकतांत्रिक मानी जा सकती जहां राजतंत्र की तरह परिवारवाद विराजमान हो पर कांग्रेस की यहीं संस्कृति बन चुकी है जहां गांधी परिवार के आलावे दूसरा उभर नहीं पाता। आज कांग्रेस की जो स्थिति है वह सभी के सामने है जहां अध्यक्षकी जगह अंतरिम अध्यक्ष कार्य कर रहा हो एवं जिसने अध्यक्ष पद त्याद दिया हो एवं अध्यक्ष बनने के लिये तैयार नहीं हो रहा हो उसे ही बार-बार अध्यक्ष बनाने की गुहार लगाई जा रही हो। इस तरह की स्थिति निश्चित रूप से कांग्रेस के बेहतर भविष्य के लिये ठीक नहीं है।
इस तरह के परिवेश में आज कांग्रेस चारों ओर से नेतृत्व विहिन नजर आ रही है। देश की सबसे बडी रही राजनीतिक पार्टी के पास अध्यक्ष की जगह अंतरिम अध्यक्ष कार्य करें तो आंतरिक मनोबल गिरना स्वाभाविक है। ऐसी क्या बात है कि इस पार्टी के पास गांधी परिवार को छोड़ और कोई नेतृत्व देने वाला नजर नहीं आता और जब कोई दूसरा इस परिवार से अलग होकर अध्यक्ष पद संभालता तो सफल नहीं हो पाता। इस तरह की स्थितियां कई बार उभर कर सामने आई जब कि इस पुरानी पार्टी के पास एक से बढ़कर एक राजनीतिक दिग्गज रहे जो अपमानित होकर अलग थलग पड़ गये। आज भी कोई मुखर होकर सामने नहीं आ रहा, । जो भी पार्टी में निर्णय होता है उसमें गांधी परिवार की ही भूमिका नजर आ रही। इस तरह का परिवेश लोकतंात्रिक पहल को कमजोर करता है। आज के परिवेश में कांग्रेस को इस तरह के पारिवारिक परिवेश से बाहर निकलकर पार्टीहित में काम करना होगा तभी कांग्रेस मजबूत हो सकेगी। आज कांग्रेस नेतृत्व विहिन होकर कमजोर होती जा रही है। जिसे पार्टी में लोकतंत्र बहाल कर फिर से इसे मजबूत किया जा सकता वरना पार्टी का अस्तित्व खतरे में ही पड़ा रहेगा।
(लेखक -डॉ. भरत मिश्र प्राची)
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नेतृत्व विहिन कांग्रेस कमजोर होती जा रही है