राजनैतिक, धार्मिक तथा सामाजिक क्षेत्रों से सम्बंधित फैसलों से राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर परर चाहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी की जय-जयकार हो रही हो, किंतु आर्थिक मोर्चे पर मोदी जी और उनकी सरकार हमेशा निशाने पर रही है। हाल ही में इस वर्ष (2020) की प्रथम तिमाही के जो आंकड़े सामने आए है, उन्होंने हमारे देश के लोगों को ही नहीं, हमारे हित चिंतक देशों की सरकारों को भी चिंता में डाल दिया है। हाल ही में इस वर्ष की प्रथम तिमाही (जनवरी से मार्च 2020) के जो जीडीपी दर की रिपोर्ट सामने आई है, वह अत्यंत चैंका देने वाली है, पिछले चैबीस सालों में, अर्थात इस नई सदी में पहली बार हमारी विकास दर पाताली स्तर अर्थात माईनस 23.9 प्रतिशत तक पहुंच गई और साथ ही रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि अभी भी हम नही चैते तो अगले वर्ष यह विकास दर लगभग ग्यारह फीसदी और गिर सकती है, अगले वित्त वर्ष का यह अनुमान पिछली बार के अनुमान से 4.1 फीसदी ज्यादा है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अगले साल स्थिति और बत्तर होने का अनुुमान है, आशंका व्यक्त की जा ही है मौजूदा तिमाही (अप्रैल से जून 2020) में भी जीडीपी वृद्धि दर नकारात्मक रही तो देश भीषण मंदी की चपेट में आ जाएगा।
ऐसा कतई नहीं है कि सरकार को इस स्थिति की चिंता नही है, किंतु वह यह बहानेबाजी करके इस चिंता का भार कम कर रही है कि ‘‘अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मंदी का दौर है, ऐसे में भारत उससे अछूता कैसे रह सकता है’’ क्या हमें अब हमारी अर्थव्यवस्था में सुधार के प्रयास भी दूसरे देशों का अनुकरण कर शुरू करना पड़ेगें? जबकि वास्तविकता यह है कि मौजूदा नरेन्द्र भाई मोदी की सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 खत्म कने, देश के अल्पसंख्यक परिवारों से तलाक प्रथा खत्म करने और अयोध्या राम मंदिर जैसे मसलों पर ही अपना ध्यान केन्द्रित रखा और इन समस्याओं के समाधान किए जो राजनीति (370), तलाक खात्मा (सामाजिक) व अयोध्या राम मंदिर (धार्मिक) चेतनाओं से जुड़े थे। देश की आर्थिक स्थिति सुधारने को लेकर नोटबंदी जैसे प्रयास अवश्य किए गए, किंतु उनसे देश परेशान ही हुआ, उसे आर्थिक राहत हासिल नही हो पाई। यही स्थिति देश में बेरोजगारी की है। चुनावी घोषणा पत्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने प्रतिवर्ष एक करोड़ बेरोजगार युवकों को रोजगार देने की बात कही थी, जो अन्य चुनावी मुद्दों की तररह गंभीरता से पूररा करने की कोशिशें की जाती तो पिछले छः सालों में छः करोड़ युवा बेरोजगारों को रोजगार मिल जाता, किंतु आर्थिक क्षेत्र से जुड़ी इस अहम् समस्या पर भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया जिसके कारण देश में बेरोजगार शिक्षित युवाओं की संख्या दिन दूनी, रात चैगुनी बढ़ती ही जा रही है और सरकार अभी भी आर्थिक क्षेत्र के प्रतिपूरी तरह लापरवाही बरत रही है, इस सरकार की इसी लापरवाही के कारण हमारे देश के अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अर्थशास्त्री सरकार के प्रति कई बार भीषण नाारजी व्यक्त कर चुके है। हमारे इन अर्थशास्त्रियों को सबसे बड़ी चिंता उन अनुुमानों को लेकर है, जिनमें कहा जा रहा है कि अगले वर्ष हमारी विकास दर मौजूदा मायनस दर से दस अंक और मायनस तक पहुंच जाएगी।
अब सवाल यह पैदा होता है कि क्या अरूण जैटली जी के स्वर्ग सिधारने के बाद भाजपा के पास कोई ऐसा अर्थशास्त्री वित्तमंत्री नहीं रहा जिससे अर्थशास्त्र के सिद्धांतों का थोड़ा भी ज्ञान हो? या सरकार या उसके मुखिया स्वयं ही नहीं चाहते कि देश आर्थिक संकट से मुक्त हो?
देश में हर मोर्चे पर विजय प्राप्त करने वाली मौजूदा मोदी सरकार देश की जनता की रोजी रोटी से जुड़ी मंहगाई जैसी समस्याओं पर अपना ध्यान केन्द्रित क्यों नहीं कररर रही है? आज पूरे देश के लिए यही चिंता का विषय है, साथ ही देश का इस दिशा में भविष्य क्या होगा? इसे लेकर भी देश चिंतित है, क्या इस अहम् समस्या का हल किए बिना राम मंदिर या 370 जैसे मुद्दों पर यह सरकार ‘दीर्घजीवी’ रह सकती है?
(लेखक - ओमप्रकाश मेहता)
आर्टिकल
भविष्य की चिन्ता : चिंतनीय अर्थव्यवस्था; विश्वमंदी का बहाना कब तक...!