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वैज्ञानिकों ने हिमालय में पहली बार विक्षोभ मापदंडों का लगाया अनुमान

वैज्ञानिकों ने हिमालय में पहली बार विक्षोभ मापदंडों का लगाया अनुमान

नई दिल्ली । मौसम संबंधी भविष्यवाणियों का अधिक निश्चित होना और हवाई यातायात हादसों को रोकना अब आसान हो सकता है, खासकर हिमालय क्षेत्र में। हिमालय क्षेत्र के विशिष्ट वायुमंडलीय विक्षोभ मापदंडों की बदौलत ऐसा हो सकता है जिसकी वैज्ञानिकों ने गणना की है। भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के अंतर्गत आने वाले स्वायत्त संस्थान आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज़) के वैज्ञानिकों ने पहली बार मध्य हिमालय क्षेत्र के निचले क्षोभमंडल में विक्षोभ मापदंडों का अनुमान लगाया है। इन शोधकर्ताओं ने अपवर्तक सूचकांक संरचना (सीएन2) के परिमाण की गणना की है, ये एक ऐसा स्थिरांक है जो अपने स्ट्रैटोस्फीयर ट्रोपोस्फीयर रडार (एस टी रडार) से निगरानी करते हुए वायुमंडलीय विक्षोभ की ताकत का प्रतिनिधित्व करता है। एरीज़ नैनीताल के पीएचडी छात्र आदित्य जायसवाल और एरीज़ के संकाय से डी.वी. फणी कुमार, एस. भट्टाचार्जी और मनीष नाजा के नेतृत्व में रेडियो साइंस पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि अपवर्तक सूचकांक संरचना स्थिरांक (सीएन2) 10-14एम-2/3 जितना बड़ा है। कम उंचाइयों पर इतने ऊंचे परिमाण पहाड़ी तरंग गतिविधियों और बादलों की निचले स्तर की उपस्थिति के कारण होते हैं। वायुमंडलीय विक्षोभ मापदंडों के ऊंचे परिमाण की उचित और सही समय पर मिली जानकारी और क्षोभमंडल में विक्षोभ संरचना के समय और स्थान वितरण की समझ दरअसल संख्यात्मक प्रणाली की मौसम संबंधी भविष्यवाणी और जलवायु मॉडलों के प्रदर्शन को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है। जहां दक्षिणी भारत के विक्षोभ मापदंडों को पहले से ही जान लिया गया था, लेकिन हिमालयी क्षेत्र के बारे में इन्हें नहीं जाना था। इसलिए गणना के लिए मॉडलरों द्वारा कुछ अनुमानित मूल्यों का उपयोग किया गया था। इन्हें अब हिमालय क्षेत्र में बहुत ऊंचा पाया गया है। अब मॉडलर अपने मौजूदा मॉडलों में इन मूल्यों को अपडेट कर सकेंगे। इससे मौसम की भविष्यवाणियों को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। साथ ही साथ इस क्षेत्र में विक्षोभ के बारे में सटीक जानकारी हवाई यातायात की सुरक्षित गतिविधियों में मदद करेगी।
 

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