मत जाओ यूँ हमसफ़र,देकर के अँधियार ।
तुम ही जीवन गीत हो,तुम से ही उजियार।।
जनम-जनम का साथ था,खाई थी सौगंध।
टूट गये क्यों आज ये,सारे नेहिल बंध।।
रिश्ते यदि यूँ टूटते,मतलब झूठा प्यार।
रिश्ता यदि यूँ रिस रहा,तो रिश्ता बेक़ार।।
क्रीड़ा मत समझो इसे,यह तो है अभिसार ।
जिसमें राधा-श्याम हैं,भावों का संसार ।।
उर को तुम यूँ बेधकर,बनकर निष्ठुर आज ।
जाओ मत प्रिय हमसफ़र ,साथ निभाओ आज ।।
लेकर के संवेदना,सुनो दिली आवाज़ ।
कर विवेक को जाग्रत,बन जाओ सरताज।।
पीर और ग़म, वेदना,तुम बिन होंगे संग।
और तुम्हारी ज़िन्दगी,भी होगी बेरंग।।
मौसम होगा अश्रुमय,अम्बर करे विलाप।
जाओगे यूँ छोड़कर,शेष बचेगा शाप।।
प्रीति भरा दिल तोड़ना,होता हरदम पाप।
खिलने दो उपवन सतत,रहने दो सब ताप।।
लोग हँसेंगे नित्य ही,हम होंगे बदनाम।
तुम मत जाओ छोड़कर,दिल यह तीरथधाम ।।
तुम मेरे हो हमसफ़र ,हो मेरे हमराज़।
बिन तेरे कैसे रहूँ ,ओ मेरे सरताज ।।
लेखक-प्रो.शरद नारायण खरे)