लेखन की विभिन्न विधाओ में एक समीक्षा भी है। हर लेखक समीक्षक नही हो सकता। जिस विधा की रचना की समीक्षा की जा रही है , उसकी व्यापक जानकारी तथा उस विधा की स्थापित रचनाओ का अध्ययन ही समीक्षा को स्तरीय बना सकता है।
समीक्षा करने के कई बुनियादी सिद्धांत हैं:
समीक्षा में रचना का गहन विश्लेषण, काम की सामग्री के संदर्भ में तर्क और इसके मुख्य विचार के बारे में संक्षिप्त निष्कर्ष की होना चाहिये.
विश्लेषण की गुणवत्ता समीक्षक के स्तर और क्षमताओं पर निर्भर करती है।
समीक्षक को भावनात्मक रूप से जुड़े बिना अपने विचारों को तर्कसंगत और तार्किक रूप से व्यक्त करना चाहिए. विश्लेषणात्मक सोच समीक्षक को समृद्ध बनाती है।
समीक्षा की जा रही रचना को बिना हृदयंगम किये जल्दबाजी में लिखी गई सतही समीक्षा न तो रचनाके साथ और न ही रचनाकार के साथ सही न्याय कर सकती है। समीक्षा पढ़कर रचना के गुणधर्म के प्रति प्रारंभिक ज्ञान पाठक को मिलना ही चाहिये , जिससे उसे मूल रचना के प्रति आकर्षण या व्यर्थ होने का भाव जाग सके। यदि समीक्षा पढ़ने के बाद पाठक मूल रचना पढ़ता है और वह मूल रचना को समीक्षा से सर्वथा भिन्न पाता है तो स्वाभाविक रूप से समीक्षक से उसका भरोसा उठ जायेगा , अतः समीक्षक पाठक के प्रति भी जबाबदेह होता है। समीक्षक रचना का उभय पक्षीय वकील भी होता है और न्यायाधीश भी।
पुस्तक समीक्षा महत्वपूर्ण आलोचना है और इसका एक उद्देश्य रचनाकार का संक्षिप्त परिचय व रचना का मूल्यांकन भी है, विशेष रूप से जिनके बारे में आम पाठक को कुछ भी पता नहीं है.
पुस्तक समीक्षा लिखने में कई सामान्य गलतियाँ हो रही हैं
मूल्यांकन में तर्क और उद्धरणों का अभाव
कथानक के विश्लेषण का प्रतिस्थापन
मुख्य सामग्री की जगह द्वितीयक विवरण ओवरलोड करना
पाठ के सौंदर्यशास्त्र की उपेक्षा
वैचारिक विशेषताओं पर ध्यान न देना
मुंह देखी ठकुर सुहाती करना
रचनात्मक काम का मूल्यांकन करते समय, समीक्षक को विषय प्रवर्तन की दृढ़ता और नवीनता पर भी ध्यान देना चाहिए. यह महत्वपूर्ण है कि रचना समाज के निर्माण व मानवीय मूल्यों और सिद्धांतों के लिये , जो साहित्य की मूलभूत परिभाषा ही है कितनी खरी है।इन बिन्दुओ को केंद्र में रखकर यदि समीक्षा की जावेगी तो हो सकता है कि लेखक सदैव त्वरित रूप से प्रसन्न न हो पर वैचारिक परिपक्वता के साथ वह निश्चित ही समीक्षक के प्रति कृतज्ञ होगा , क्योंकि इस तरह के आकलन से उसे भी अपनी रचना में सुधार के अवसर मिलेंगे। समीक्षक के प्रति पाठक के मन में विश्वास पैदा होगा तथा साहित्य के प्रति समीक्षक सच्चा न्याय कर पायेगा।
(लेखक-विवेक रंजन श्रीवास्तव)
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कैसे करें पुस्तक समीक्षा ?