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करुणा के दोहे 

करुणा के दोहे 

दया, नेह, संवेदना,करुणा जीवन-सार।
उर महके अपनत्व से, तो फैले उजियार ।।

बुद्ध बने तब बुद्ध जब,जागा करुणा-भाव ।
मानव तब मानव बने, कोमल रहे स्वभाव ।।

सत्य, अहिंसा, वेदना, से नित नव-संसार ।
करुणा से शृंगार हो, तो मंगल आसार ।।

गांधी, ईसा के हृदय, करुणा का संसार।
महावीर करते रहे, करुणा से नित प्यार ।।

टेरेसा तब माँ बनीं, जब करुणा-आवेग।
मानवता को दे गईं, वे तो नेहिल नेग।।

अश्रु नयन से तब बहें, करुणा गाये गीत।
संवेदित इनसान का, सहज बने हर मीत ।।

करुणा पावन भाव है, सुखकर है अहसास।
सब कुछ उसके पास है, करुणा जिसके पास।।

करुणा को मत त्यागना, वरना सब कुछ ध्वस्त।
करुणा तज हो ज़िन्दगी, के सूरज का अस्त।।

करुणा से कवि कवि बने, बहती रस की धार।
करुणा से आनंद है, करुणा से अभिसार।।

करुणा से ही कृष्ण हैं, करुणा से ही राम।
करुणा यदि अविराम है, तो जीवन अभिराम ।।

करुणा से संगीत है, करुणा से ही गीत।
करुणा से नित बल मिले, करुणा से ही जीत।।
(लेखक-प्रो.शरद नारायण खरे)
 

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