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देश में संक्रमण काल.....?   क्या मोदी की ’अग्निपरीक्षा‘ शुरू हो गई.....? 

देश में संक्रमण काल.....?   क्या मोदी की ’अग्निपरीक्षा‘ शुरू हो गई.....? 

आज हमारा देश चारों ओर से आपदाओं से घिरा है, तो क्या यह मान लिया जाए कि मोदी सरकार की ’अग्निपरीक्षा‘ शुरू हो गई है? मोदी सरकार तो क्या यदि यह कहा जाए कि अकेले नरेन्द्र भाई मोदी की ही ’अग्निपरीक्षा‘ का दौर शुरू हुआ है, तो कतई गलत नहीं होगा, क्योंकि आज चाहे सरकार हो या सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी या कथित राजग (एनडीए) इन सबके सर्वेसर्वा तो मोदी जी ही है। इसलिए यही कहना ठीक होगा कि अब मोदी शासन के आगामी चौवालिस महीनें अग्निपरीक्षा के दौर से ही गुजरेंगे। आज जहां हमारा देश कोरोना महामारी में अमेरिका को पीछे धकेलकर विश्व में प्रथम स्थान की ओर अग्रसर है, वहीं मंहगाई, दोषपूर्ण अर्थव्यवस्था, पड़ौसी देशों से सम्बंध तथा राजनीतिक प्रतिद्वन्दितापूर्ण हथकण्ड़ों में भी धीरे-धीरे कीर्तिमान की ओर बढ़ रहा है, यदि इन विकराल समस्याओं पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो यह समूचे भारत के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होगा। 
    इसी बीच मोदी जी को राजनीतिक चुनौतियों के दौर से भी गुजरना पड़ रहा है, देश पर राज कर रही भाजपा अब पूरे भारतीय राज्यों पर कब्जा कर जहां ’चक्रवर्ती सम्राट‘ बनने का सुनहरा सपना देखनें में व्यस्त है और इस सपने के आधार सिर्फ और सिर्फ नरेन्द्र भाई बने हुए है, बिहार, पश्चिम बंगाल जैसी चुनावी चुनौतियां उनके तात्कालिक रूप से सामने है, वहीं विभिन्न विकराल चुनौतियों के बीच से देश को सुरक्षित रूप से बचाकर आगे बढ़ाने की अहम्् जिम्मेदारी भी मोदी जी पर ही है। क्योंकि आज सत्ता इतनी ”व्यक्तिनिष्ठ“ हो गई है कि हर छोटे-बड़े मामले में हर कोई मोदी जी के मुखारबिंद की तरफ देखता है और उनकी सहमति के बिना देश में कुछ भी नहीं होता। 
    आज हमारे देश के साथ यह भी कितनी बड़ी विसंगति जुड़ी हुई है कि एक ओर जहां हमारा देश व्यक्तिनिष्ठ होकर एक ही शख्स के इशारे पर चल रहा है, वहीं हमारी कथित शुभचिंतक महाशक्ति अमेरिका मोदी जी और भारत के नाम पर अपना अगला भविष्य (राष्ट्रपति) चुनना चाहता है, अमेरिका में मौजूदा राष्ट्रपति ट्रम्प और हमारे मोदी जी के पोस्टर बैनर्स लगे है, ट्रम्प यह मशक्कत सिर्फ और सिर्फ वहां के प्रवासी भारतीयों के वोट प्राप्त करने के लिए कर रहे है, जिनकी पूरे अमेरिका में संख्या करीब पचास लाख है और ट्रम्प के इसी दबाव में मोदी जी उस मूल भारतीय महिला का प्रचार नहीं कर पा रहे है, जो ट्रम्प की विरोधी पार्टी से उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनावी मैदान में है, क्योंकि मोदी स्वयं चाहते है कि ट्रम्प एक बार फिर अमेरिका के राष्ट्रपति का पद प्राप्त कर लें जिससे कि मोदी जी के प्रधानमंत्रित्व काल के शेष साढ़े चार साल बिना किसी अन्तर्राष्ट्रीय विवाद के निपट जाए और अमेरिका के सहयोग से भारत अन्तर्राष्ट्रीय शांति मिशन में सफलता प्राप्त कर लें। 
    आज देश की सीमाएं जहां सरकार के लिए चुनौति बनी हुई है, चीन आए दिन नए-नए झंझट खड़े कर रहा है, लद्दाख सीमा पर दोनों देशों की सैनाएं अपने मारक हथियारों के साथ आमने-सामने है, जिसके कारण ’विश्वयुद्ध‘ का खतरा मंडरा रहा है, वही देश में बेरोजगारी, मंहगारी और अर्थव्यवस्था आसमान छूती नजर आ रही है, इसके अलावा सबसे अहम्् समस्या कोरोना महामारी से जिससे पूरा देश जूझ रहा है, प्रतिदिन देश में एक लाख के करीब नए मरीज सामने आ रहे है, इस महामारी ने सब कुछ ठप्प करके रख दिया है, फिर वह चाहे विधानसभा हो या कि संसद। पिछले पांच महीनों से पूरा देश घरों में दुबका बैठा है, जिसने कई दैनंदिनी समस्याओं को जन्म दे दिया है और अरबों करोड़ो की आर्थिक क्षति देश को इस नाजुक दौर में हो चुकी है, अब ऐसी स्थिति में इन विकराल व चुनौतिपूर्ण समस्याओं के ’अग्निकुण्ड‘ से मोदी जी के नैतृत्व में सुरक्षित रूप से बाहर निकलने की सबसे बढ़ी चुनौति है। आज इसी कारण इस संक्रमण दौर में पूरे देश की निगाहें सिर्फ व सिर्फ मोदी जी पर केन्द्रित है, क्योंकि अब और कोई तो ’तारणहार‘ शेष बचा नहीं है। 
22सितम्बर/ईएमएस
 

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