भारत स्थित एक नहीं, एक दर्जन नहीं, एक सैकड़ा नहीं अनगिनत संख्या में फ्ल शुमार किला जिन्हें दुर्ग अथवा गढ़ भी कहा जाता है राष्ट्र की अमूल्य धरोहर हैं। यह एक ऐसा माध्यम है जिन्हें देखकर जिनके बारे में पढ़कर जानकारियां प्राप्त कर प्राचीनकाल, मध्यकालीन भारत की एक क्षेत्र में नहीं अनेक क्षेत्रों में जानकारियां समक्ष होती हैं। अतीत का आईना दिखाते शोध-खोज, चिंतन मनन के लिए विषय प्रस्तुत करते किला यही नहीं रुकते हैं बल्कि विभिन्न प्रकार के तथ्य निर्धारित करने में सहायक भूमिका का निर्वहन करते हैं साथ ही उनका समाधान भी करते हैं।
भारत के विभिन्न भागों में स्थित दुर्ग किला समाज की विषय वस्तु, धार्मिक भावनाएं, आर्थिक स्थिति, सामाजिक स्थिति, राजनीतिक उथल-पुथल जैसी एक नहीं अनेक जिज्ञासा उत्पन्न करते हुए तुलनात्मक अध्ययन हेतु विषय प्रस्तुत करते हैं। सब मिला जुला कर यह कह देना अधिक उपयुक्त होगा कि भारतीय दुर्ग भारतीय अतीत का बहुमूल्य खजाना है। इसलिए ही यह कहा जाता है कि भारत जैसे विशाल देश का सांस्कृतिक वैभव विभिन्न किला रूपी पत्थरों-खण्ड़हरों में विद्यमान है।
यह यह किला खंडहर ही मानवता एवं मानव सभ्यता के प्रतीक हैं जो भारतीय मानव जीवन सभ्यता संस्कृति अतीत इतिहास के गौरव को रेखांकित करने वाले तत्त्वों को भी अपने में समाहित किए हुए हैं। अतएव किला खंडहरों में विद्यमान वैभव को कभी भी, किसी भी स्तर पर धन दौलत की तराजू में नहीं तोला जा सकता है। हां इन्हें संरक्षित कर आगामी पीढ़ी को अतीत के आईना से साक्षात्कार कराते हुए सत्यम शिवम सुंदरम के दर्शन, उनसे मूक वाणी में संवाद स्थापित कर इतिहास की उत्तम जानकारी मुहैया कराई जा सकती है। अत: इन्हें बचाए रखना इनका संरक्षण किया जाना सार्वजनिक हित में अनिवार्य है।
भारतीय दुर्गों की जब बात की जाती है तो सहज भले में दिल्ली का लाल किला, आगरा का किला, ग्वालियर का किला, झांसी का किला, चंदेरी का किला, रायसेन का किला इत्यादि आंखों के रुपहले पर्दे पर चलचित्र की भांति दिखाई देने लगते हैं और यह भी एक बहुत बड़ी सच्चाई है कि उक्त किलों के बारे में बहुत कुछ जानकारी भारतीय ही नहीं अपितु विदेशी भी रखते हैं, कारण साफ है कि भारत के प्रमुख किलों के बारे में समय-समय पर जानकारियां सार्वजनिक होती रहती हैं शोध खोज होते रहते हैं नई-नई जानकारियां निकल कर सामने आती रहती हैं। लेकिन ठीक इसके विपरीत क्षेत्रीय स्तर पर आज भी एक नहीं अनेक ऐसे किला मौजूद हैं जो विभिन्न जानकारियों को अपने दामन में सुरक्षित रखे हुए रखे हुए पहचान को तरस रहे हैं।
भारत के प्रमुख किलों में शुमार चंदेरी किला की पहचान राष्ट्रीय स्तर ही नहीं अपितु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कायम है, वहीं मध्यकालीन चंदेरी राज्य के अंतर्गत संचालित मल्हारगढ़ किला आज भी अपनी पहचान ही नहीं, संरक्षण संवर्धन को तरस रहा है। 16वीं -17वीं सदी में निर्मित होने का संकेत देता यह किला विशाल भू-भाग में अवस्थित होकर अपने ऐतिहासिक एवं सामारिक महत्व का बोध अपनी पक्की सुरक्षा दीवार, दरवाजा, बुर्ज, परिसर में रखी हुई तोपों के माध्यम से आज भी भूल चूक से पहुंचे सैलानियों को करा रहा है।
किला परिसर में स्थित धार्मिक स्थल, सुंदर बावड़ी, बावड़ी के किनारे की गई विभिन्न संरचनाएं शोध खोज हेतु विषय प्रस्तुत करती नजर आती हैं। मध्य प्रदेश जिला अशोकनगर तहसील मुंगावली मुख्यालय से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम मल्हारगढ़ में सदियों पूर्व से उपस्थित किला एक नहीं अनेक प्रकार की आपदाओं, आसमानी-सुल्तानी मार से अपने आप को बचते-बचाते हुए आज भी अपने अतीत की दास्तां बयान करते हुए मूक भाषा में संरक्षण की गुहार कर रहा है।
ग्रामीण पर्यटन की असीम संभावनाएं दर्शाता मल्हारगढ़ किला के ऐतिहासिक पुरातत्व महत्व को दृष्टिगत रखते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (भारत सरकार) द्वारा राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित एवं संरक्षित करने की दिशा में कार्रवाई अपेक्षित ही नहीं अपितु अनिवार्य है। ताकि आगामी पीढ़ी अपने गौरवमय अतीत से रूबरू होकर एवं जानकारियां प्राप्त कर अपना भविष्य निर्धारण हेतु सबक ग्रहण कर सकें।
स्मरण रहे चंदेरी किला का सफल संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (भारत सरकार) द्वारा किया जा रहा है। मल्हारगढ़ किला को संरक्षित किए जाने से एक ओर जहां हमारी अमूल्य धरोहर सुरक्षित हो सकेगी वहीं दूसरी ओर देश-विदेश से चंदेरी किला देखने आ रहे सैलानी मल्हारगढ़ किला से भी रूबरू हो सकेंगे इस कारण क्षेत्र सहित चंदेरी पर्यटन एवं ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे साथ ही साथ मल्हारगढ़ किला माननीय प्रधानमंत्री जी के लोकल फार वोकल अभियान को सफल बनाने का सशक्त माध्यम साबित होगा।
(लेखक-मजीद खां पठान)
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