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6 माह में अर्श से फर्श पर पहुंचे सिंधिया उपचुनाव के भंवर में फंसा सिंधिया का भविष्य

6 माह में अर्श से फर्श पर पहुंचे सिंधिया उपचुनाव के भंवर में फंसा सिंधिया का भविष्य

भोपाल । कांग्रेस से बगावत कर भाजपा का दामन थामने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया की साख में 6 माह के अंदर इस कदर गिरावट आई है कि वे राजनीति में अर्श से फर्श पर पहुंच गए हैं। इसका खुलासा सोशल मीडिया, वेबन्यूज और कुछ स्वयंसेवी संगठनों के सर्वे में हुआ है। सर्वे में कहा गया है कि सिंधिया का राजनीतिक भविष्य 28 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के परिणाम से तय होगा।
गौरतलब है कि सिंधिया की बगावत के बाद मप्र में कांग्रेस की सरकार गिर गई थी। सिंधिया अपने 22 विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे। महाराज के आने के बाद मप्र में फिर से शिवराज सत्ता में आ गए। भाजपा ने बदले में ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा भेज दिया। अब मप्र में 28 सीटों पर उपचुनाव होना है। अपनी साख जमाने के लिए सिंधिया को कम से कम अपने 22 पूर्व विधायकों को उपचुनाव जिताना होगा। लेकिन विभिन्न सर्वे रिपोर्ट में सिंधिया समर्थकों की हालत सबसे खराब बताई गई है। इस कारण सिंधिया का भविष्य उपचुनाव के भंवर में फंस गया है।
- उपचुनाव में गद्दारी सबसे बड़ा मुद्दा
सोशल मीडिया, वेबन्यूज और स्वयंसेवी संगठनों के सर्वे में यह बात सामने आई है कि उपचुनाव वाले क्षेत्रों में सिंधिया और उनके समर्थकों की गद्दारी सबसे बड़ी मुद्दा बनी हुई है। ग्वालियर-चंबल अंचल की सभी 16 सीटों के साथ ही मालवा-निमाड़ की सीटों पर किए गए सर्वे में 58 फीसदी लोगों ने सिंधिया और उनके समर्थकों की कांग्रेस के साथ की गई गद्दारी को नामाफी लायक बताया है। लोगों का कहना है कि जिन्होंने हमारे वोट का अपमान किया है, उन्हें हम सबक जरूर सिखाएंगे।
- जनता की सहानुभूति कमलनाथ के साथ
सर्वे में यह भी कहा गया है कि उपचुनाव वाले क्षेत्रों में जनता की सहानुभूति पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ है। सर्वे में 62 फीसदी लोगों ने कहा कि कमलनाथ सरकार अच्छा काम कर रही थी। बिजली बिलों एवं किसानों की कर्जमाफी ने प्रदेश में कमलनाथ को लोकप्रिय बनाया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों ने गद्दारी करके चुनी हुई सरकार को गिराया है। इससे जनता नाराज है।  
- कांग्रेस में नहीं कर पाए थे कमाल
सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि मप्र में 15 साल बाद कांग्रेस सत्ता में लौटी थी। इसमें सिंधिया का कोई बड़ा योगदान नहीं था। ग्वालियर-चंबल अंचल की जिन सीटों को जिताने का श्रेय सिंधिया लेते रहे हैं, वे सीटें एट्रोसिटी एक्ट के कारण मतदाताओं की नाराजगी से कांग्रेस को मिली थीं। यही नहीं सिंधिया लोकसभा चुनाव स्वयं हार गए। वहीं यूपी में अपने प्रभार वाले जिलों में भी कांग्रेस को नहीं जिता पाए थे। खुद गुना-शिवपुरी से लोकसभा चुनाव हार जाने और दिल्ली का बंगला केन्द्र सरकार ने खाली कराया इससे सिंधिया घबरा गए। 
- भाजपा में नहीं मिल रहा भाव
ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़कर भाजपा में तो आ गए हैं, लेकिन यहां उनको भाव नहीं मिल रहा है। इसकी वजह यह है कि पार्टी के पदाधिकारी और कार्यकर्ता उनके अहंकार श्रीमंत का आचरण करने से नाराज है। तरह अपना नहीं पाए हैं। भाजपा आलाकमान भले ही इन्हें महत्व दे रहा है, लेकिन मप्र में जमीनी भाजपाई इन्हें आज भी पसंद नहीं कर रहे हैं। सर्वे में कहा गया है कि 6 माह पहले जो सिंधिया राजनीति में हॉट ब्रांड थे, आज उनकी कोई पूछ परख भी नहीं है। उन्हें स्वयं भाजपा नेताओं के घर-घर जाकर हाजिरी देना पड़ रही है।
- भाजपा ने पूरी की सभी मांग
सर्वे में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि भाजपा ने सिंधिया की हर बात क्यों मानी है। भाजपा ने न केवल सिंधिया को राज्यसभा भेजा है, बल्कि उनकी मांग के अनुसार शिवराज कैबिनेट में उनके 10 से ज्यादा लोगों को मंत्री बना दिया है। साथ ही पार्टी ने सिंधिया को मप्र में एक बड़े नेता के रूप में प्रोजेक्ट भी किया है। इसके पीछे वजह यह है कि पार्टी चाहती है कि उपचुनाव में अधिक से अधिक सीटें जीतकर सरकार का आधार मजबूत किया जाए। साथ ही पूरे देश में एक संदेश प्रसारित किया जाए कि भाजपा दूसरी पार्टी छोड़कर आने वालों के साथ किस तरह का सलूक करती है।
- उपचुनाव से तय होगा भाव
अभी भाजपा ज्योतिरादित्य सिंधिया को तवज्जो इसलिए दे रही है कि शिवराज सरकार उनकी वजह से बनी है। लेकिन पार्टी में उनका आगे भी यही वजूद रहेगा, यह उपचुनाव के नतीजों पर निर्भर करेगा। 28 में से 16 सीटों पर सीधे रूप से ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर है। यह उपचुनाव उनके गढ़ ग्वालियर-चंबल में हैं। अगर सिंधिया अपने समर्थकों को उपचुनाव में जीत दिलाने में कामयाब हो जाते हैं, तो भाजपा में आगे स्वीकार होंगे, अन्यथा चुनाव के बाद नेपथ्य में जाना तय है।
- गद्दारी और खुद्दारी का होगा फैसला
भारतीय राजनीति में दलबदल एक तरह से अभिन्न अंग हो गया है। लेकिन जब दलबदल के कारण कोई सरकार गिर जाती है, तब यह दलबदल कहीं ज्यादा कचोटने वाला हो जाता है। हर हाल में सरकार गिराने वालों को बदनाम करने की कोशिश की जाती है। प्रदेश में कांग्रेस छोड़कर जो लोग भाजपा में आए हैं, उनको जनता ने खुद गद्दार कहना शुरू कर दिया है। ग्वालियर-चंबल अंचल में सड़कों पर खुलेआम जनता नारे लगा रही है, कि गद्दार वापस जाओ। सर्वे में कहा गया है कि इस नारे के पीछे कांग्रेसी नहीं बल्कि भाजपाई हैं। ग्वालियर चंबल क्षेत्र में सबसे ज्यादा सिंधिया परिवार पर हमले करने वाले जयभान सिंह पवैया, प्रभात झा भले ही साथ हैं, लेकिन इनके मन में अभी भी सिंधिया के प्रति कभी सम्मान नहीं रहा है। इसका असर उपचुनाव में देखने को मिलेगा। सर्वे में जनता बेरोजगारी, महंगाई, कर्जमारी, बीमा पेंशन, बिजली बिलों इत्यादि को लेकर काफी नाराज है। सरकार और सिंधिया के खिलाफ लहर स्पष्ट रुप  से देखने को मिल रही है। 
 

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