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 वाय क्रोमोजोम की वजह से बीमारियों का पुरुष और महिलाओं पर होता है अलग-अलग असर

 वाय क्रोमोजोम की वजह से बीमारियों का पुरुष और महिलाओं पर होता है अलग-अलग असर

नई दिल्ली ।  क्या किसी बीमारी में पुरुष और महिला के शरीर अलग तरह से प्रतिक्रिया करते हैं। ऐसी बीमारियों में कोरोना संक्रमण जैसी बीमारी भी शामिल है। नए अध्ययन में सामने आया है कि वाय क्रोमोजोम जीन्स इस बात की व्याख्या करते है कि विभिन्न बीमारियों को पुरुष महिलाओं की तुलना में अलग तरह से क्यों प्रतिक्रिया करते हैं। स्त्री और पुरुषों के शरीर का किसी बीमारी के प्रति अलग-अलग बर्ताव हाल ही में कोविड-19 महामारी में साफ तौर पर दिखाई दे रहा है। पता चला है कि जो पुरुषों में ही पाया जाने वाला वाय क्रोमोजोम के जीन्स बता सकते हैं कि क्या सार्स कोव-2 के कारण पुरुषों में महिलाओं की तुलना में मृत्यु दर दो गुना के आसपास है।
इस अध्ययन की पड़ताल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुई है। यह शोध यूनिवर्सटे डि मोंट्रियाल के प्रोफेसर क्रिश्चियन डेसचेपर की अगुआई में की गई जो मोंट्रियाल क्लीनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक्सपेरिमेंटल कार्डियोवर्सकुलर बायोलॉजी रिसर्च यूनिट के डायरेक्टर हैं। उनकी इस पड़ताल में वाय क्रोमोजोम जीन्स की भूमिका पर ध्यान दिया गया। डेसचेपर इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और मैक्गिल यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर भी हैं उनका कहना है हमारी खोज इस बात की बेहतर समझ प्रदान करती है कि कैसे वायक्रोमोजोम जीन्स नर कोशिकाएं मादा कोशिकाओं के मुकाबले अलग काम करने में भूमिका निभाती हैं। भविष्य में ये नतीजे  इस बात पर रोशनी डाल सकते है कि क्यों कुछ बीमारी महिलाओं और पुरुषों में अलग होती हैं।
इनसान में क्रोमोजोम्स के 23 जोड़े होते हैं जिसमें एक जोड़ा सेक्स क्रोमोजोम्स का होता है। जहां मादाओं में दो एक्स क्रोमोजोम्स होते हैं तो वहीं नरों में एक एक्स क्रोमोजोम होता है और एक वाय क्रोमोजोम। हालांकि ये पुरुष जीन्स शरीर की सभी कोशिकाओं में अभिव्यक्त होते हैं, उनकी भूमिका अभी तक केवल सेक्स अंगों की क्रियाओं तक सीमित रहने की पुष्टि हुई है।
इस अध्ययन में डेसचेपर ने एक जेनेटिक जोड़तोड़ की जिससे वाय क्रोमोजोम्स के दो नर जीन्स निष्क्रिय हो गए। इससे संकेतों के कई रास्तों में बदलाव आया जो गैर यौनांग कोशिकाओं के कुछ कार्यों में अहम भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के तौर पर तनाव में कुछ प्रक्रियाएं इस तरह से प्रभावित हो सकती हैं जिससे मानवीय हृदय की कोशिकाएं खुद को अतिदबाव या खून की कम आपूर्ति जैसी आघात की स्थितियों से बचाती हैं।
 

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