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चम्बल क्षेत्र में एक दौर था गांधीवादी समाजवादियों का भी...!  

चम्बल क्षेत्र में एक दौर था गांधीवादी समाजवादियों का भी...!  

मध्य प्रदेश में होने जा रहे 27 34 चुनावों की हलचल गहमा गेहमी काफी तेज हो गई है। विगत दिनों पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 14 किलोमीटर लम्बे रोड शो को करके इस चुनावी समर को और भी गहरा दिया है। कांग्रेस का ऐसा रोड शो पिछले 15-20 सालों में नहीं हो पाया था जबसे सिंधिया कांग्रेस से भारतीय जनता पार्टी में चले गये हैं लगता है कांग्रेस फिर से जवान हो गई है। वैसे ग्वालियर चम्बल इलाके के 8 जिलों श्योपुर, मुरैना, भिण्ड, दतिया, शिवपुरी, गुना, अशोक नगर व महानगर ग्वालियर में एक दौर में सिंधिया उनका परिवार खासा लोकप्रिय रहा है व विकास का पर्यायवाची के तौर पर भी माना जा चुका है। 
लोकप्रिय डॉ. नरोत्तम भी हैं 
फिर भी दतिया के लोकप्रिय नेता डॉ. नरोत्तम मिश्रा को भी माधवराव सिंधिया (184-99) के बाद इलाके में विकास का जननायक के तौर पर देखा जा रहा है। उन्होंने पिछले 10 सालों में एक छोटे से दतिया शहर का स्वरूप काफी कुछ बदल दिया जो इससे पहले कोई नहीं कर सका था। दतिया का आभामण्डल महज धार्मिक शहर के तौर पर बुन्देलखण्ड के छोटे वृन्दावन के तौर पर माना जाता था पर यहां लम्बे चौड़े ओवरब्रिज बनाकर व मेडीकल कॉलेज बनवाकर डॉ. मिश्रा ने इसे बड़े नगर बनाने की आधारशिला रखकर भा.ज.पा. के यहां गहरे पांव जमा दिए हैं। मुस्लिम भी उनके साथ देखे गये हैं। 
यशवंत कुशवाह 
ग्वालियर चम्बल इलाके की तमाम विशेषतायें हैं। भारतीय फौज में कोई एक लाख जवान भिण्ड मुरैना से ही जाते हैं। भिण्ड से यशवंत सिंह कुशवाह लोकसभा सदस्य व मंत्री रहे थे। उन्हें हम लोग ग्वालियर चम्बल का कबीर व कुछ लोग गांधी भी कहते आ रहे हैं। कुशवाह जी एक दौर में पत्रकार भी थे। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका भी निभाई थी। वो ग्वालियर की राजमाता के राजनैतिक सलाहकार भी रहे थे। सिंधिया परिवार उन्हें काफी मानता था। इसी तरह भिण्ड में समाजवादी पृष्ठभूमि से आये डॉ. राममनोहर लोहिया के साथ बाबू रघुवीर सिंह भी काफी लोकप्रिय नेता माने जाते हैं। उनकी पत्नी भी 1972 में यहाँ से विधायक रही। मुरैना से समाजवादी आंदोलन से आये बाबू जबर सिंह तोमर भी 70-80 के दशक में बड़े नेता रहे थे। 
आज के दौर के नेता कलेक्टर व पुलिस अधीक्षक की बैसाखी वाले नेता ग्वालियर चम्बल में बनते दिखाई दे रहे हैं। डबरा से 3 बार विधायक का चुनाव जीतीं इमरती देवी का कहना है कि हमारी सत्ता है। हम कलेक्टरों से कहकर या कहलाकर कहीं से भी चुनाव जीत सकते हैं। इमरती देवी डबरा में 20 साल पहले खेतिहर मजूर के तौर पर आई थीं और यहाँ जिला पंचायत सदस्य के तौर पर सक्रिय रहकर आगे बढ़ी हैं, अच्छी नेता हैं। सिंधिया समर्थक शुरू से ही हैं। उन्हें कांग्रेस में खूब संघर्ष करना पड़ा है। वो डबरा इलाके में लोकप्रिय रही हैं। 40 हजार से भी ज्यादा वोटों से वो जीती रही हैं। 
प्रद्युम्न तोमर की लोकप्रियता 
चम्बल ग्वालियर इलाके में एक ही घर से दोनों पार्टियाँ चलती हैं कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी। इस बार भारतीय जनता पार्टी सत्ता के सहारे शायद ज्यादा कमाल न कर पाये। उसे भिण्ड, मुरैना, श्योपुर व ग्वालियर, गुना में खूब पसीना बहाना पड़ सकता है क्योंकि कांग्रेस का पुराना वोट बैंक शायद उसका साथ नहीं देता दिखाई दे रहा है जिस मुस्लिम समाज व दलितों को संघ परिवार बात-बात पर कोसता रहा हो उसकी राह में कांटे बिछाता रहा हो वो कमल के फूल पर वोट दे दे ये संभव नहीं लगता। सत्ता की मलाई तो इस इलाके के 10 फीसद ठाकुर व ब्राम्हण ही खाते दिखाई दे रहे हैं। वो ही एडमिनिस्ट्रेशन में हैं। सियासत में एस.डी.एम., डी.एस.पी., तहसीलदार, थानेदार बनकर वो ही मंत्री हैं फिर भी उपनगर ग्वालियर में प्रद्युम्न तोमर की लोकप्रियता मुस्लिम व दलितों में काफी गहराई से देखी जा रही है। वो पवैया की तरह अहंकारी व बदजुबान नहीं दिखाई देते। संघ परिवार व भा.ज.पा. वाले भी उन्हें कुछ ज्यादा हानि नहीं पहुंचाने वाले क्योंकि वो गरीबों में खासे लोकप्रिय हैं। सिंधिया का जादू कुछ कम है। 
(लेखक -नईम कुरेशी)
 

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