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ओरछा और चंदेरी का रिश्ता पर्यटन कि दृष्टि से महत्वूर्ण 

ओरछा और चंदेरी का रिश्ता पर्यटन कि दृष्टि से महत्वूर्ण 

रिश्तो की अपनी एक अलग दास्तान है। बात जब रिश्तों की निकलती है तो दूर तक जाती है। रिश्ते एक प्रकार के न होकर अनेक प्रकार के होते हैं,  कौन किस रिश्ते में मशगूल है यह एक अलग मुद्दा है। जहां कुछ रिश्ते व्यक्तिगत होते हैं वही कुछ रिश्ते सामूहिकता की डोर से बंधे हुए होते हैं। किसी भी क्षेत्र में रिश्ता होना अथवा रिश्ता कायम किया जाना महत्त्वपूर्ण नही है यदि महत्त्वपूर्ण है तो वह है रिश्तों के गर्भ में जो अदृश्य मर्म है वह है रिश्तों का निभाया जाना।
मानव जीवन में एक ओर जहां कुछ रिश्ते पैत्रिक, वंशानुगत, सामाजिक, धार्मिक आदि होते हैं वहीं कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिन्हें बनाया जाता हैं फिर उन्हें पूरी शिद्दत के साथ निभाया जाता है। रिश्तों के क्षेत्र में रिश्तों की  अहमियत बहुत कुछ मायने रखती है वरन् नाम के रिश्ते भी देखें और सुनें जाते हैं। रिश्तों का पल भर में बनना और पल भर में बदलना, रिश्ते कैसे और किन परिस्थितियों में दरकते हैं, रिश्ते कैसे तार-तार होते हैं और कब इंसानियत के रिश्तों के सामने रक्त संबंध ही नहीं सगे संबंध भी  फीके पड़ जाते हैं, इन सब रिश्तों से हम सब वाकिफ हैं। अतएव रिश्तों की मर्यादा पालन हेतु खींची गई लक्ष्मण रेखा का सम्मान करते हुए देखा यह जा रहा है कि ओरछा-चंदेरी का पूर्व काल में कायम रिश्ता वर्तमान पर्यटन परिपेक्ष्य में कितना लाभदायक हैं।
यह सर्व ज्ञात तथ्य है कि ऐतिहासिक धार्मिक नगरी ओरछा मध्यकालीन भारत में इस संपूर्ण क्षेत्र में राज कर रहे बुंदेला राजाओं के ओरछा राज्य एवं उसकी राजधानी के रूप में जानी पहचानी जाती है। लेकिन सोलहवीं सदी के आठवें दशक में ओरछा की रानी उनका भगवान श्रीराम के प्रति अगाध प्रेम, श्रद्धा अटूट विश्वास के फलस्वरुप घटित अद्भुत चमत्कारी घटनाक्रम जिसके कारण आज दुनिया भर में ओरछा का नाम बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है कारण बने भगवान श्रीराम।
जग जाहिर है कि  ऐतिहासिक एवं धार्मिक पर्यटन नगर ओरछा की सब दूर ख्याति मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम राजा दरबार के कारण है। भगवान श्रीराम अयोध्या से ओरछा कब और कैसे आए, किस रूप में आए, कौन लेकर आया, क्यों लाया गया, वह कौन से कारण थे जिनके चलते महल को ही मंदिर के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। 
क्यों भगवान श्रीराम को ही ओरछा का राजा मान्य किया गया तद्उपरांत उसी अनुरूप सम्मान देने की प्रथा का जन्म हुआ जो अनवरत जारी है। उक्त सभी तथ्यों से हम सब भलिभांति परिचित हैं। याद रखना होगा कि आज भी ओरछा में श्री रामराजा को ससम्मान सलामी देने की परंपरागत प्रथा का निर्वहन किया जा रहा है। जिसके अंतर्गत वहां तैनात पुलिस जवान द्वारा प्रतिदिन सुबह-शाम सलामी पेश की जाती है शायद ही संपूर्ण भारत में ऐसी प्रथा कहीं प्रचलन में हो।
सब मिलाजुला कर कहना यह है की धार्मिक पर्यटन स्थल ओरछा की पहचान श्री रामराजा दरबार से है आज भी पर्यटन स्थल ओरछा का सर्वाधिक पर्यटन उक्त धार्मिक स्वरूप पर ही टिका हुआ है। यूं तो ओरछा में देशी-विदेशी सैलानियों का आवागमन वर्ष भर जारी रहता है लेकिन उसमें देखा जावे तो अधिकतर संख्या देसी धार्मिक श्रद्धालुजनों की रहती है।
क्षेत्रीय इतिहास साहित्य से यह तथ्य पुष्ठ है कि चंदेरी में बुंदेला राजवंश की नींव सत्रहवीं सदी के प्रथम दशक में उस समय पड़ी जब ओरछा राजा रामशाह बुंदेला ओरछा की गद्दी छोड़कर चंदेरी की गद्दी पर आसीन हुए वहीं दूसरी ओर ओरछा गद्दी पर रामशाह के भाई बैठे। आगे आने वाले समय चंदेरी में बुंदेला राजाओं ने लगातार दो सौ वर्ष से भी अधिक समय तक राज किया। इस प्रकार यह तय हो जाता है कि ओरछा में बुंदेला तो चंदेरी में भी उन्हीं के बुंदेला भाईबंधु सगे-संबंधी सत्ता की बागडोर संभाले हुए थे।
भले उस समय ओरछा और चंदेरी पृथक-पृथक राज्य कहलाते थे किंतु दोनों राज्यों में शासन संचालन एक ही बुंदेला राजवंश के अधीन चल रहा था। दोनों राज्य शासकों में बुंदेला खानदानी पारिवारिक एवं खूनी रिश्ता कायम होने के कारण यह बात कांच की भांति साफ झलकती हुई दिखाई देती है कि दोनों राज्यों का सियासी रिश्ता स्थाई तौर पर मजबूत था।
बेशक चंदेरी ओरछा से सदियों पूर्व यानी महाभारत काल से अपना अस्तित्व कायम किए हुए चेदि नरेश राजा शिशुपाल के अलावा विभिन्न राजवंशों के परचम फहराने की साक्षी बनकर आबाद थी। लेकिन मध्यकालीन भारत में ओरछा नामक स्थल भगवान श्री रामराजा के कारण धार्मिक मान-मर्यादाओं  में उच्च से उच्चतम ऊंचाइयां तय कर ही नहीं रहा था अपितु आज भी उस सम्मान को बरकरार रखे हुए हैं और आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि जब तक यह हरी- भरी दुनिया कायम रहेगी यह सम्मान इसी प्रकार जारी रहेगा। कारण है महापुरुष मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामराजा का ओरछा से संबंध स्थापित होना, इसलिए ही सब-दूर ओरछा को बुंदेलखंड की अयोध्या कहा जाता है। 
बुंदेला राजवंश का धार्मिक रूझान मात्र भगवान श्री रामराजा तक ही सीमित नहीं रहा अपितु आगे आने वाले विभिन्न कालखंड में राज्य के अंदर अनेक मंदिरों के निर्माण मूर्तियों की स्थापना आदि से और अधिक हो उजागर होता है। वही चंदेरी परिपेक्ष्य में समझे और अधिक स्पष्टता समझ में आती है बुंदेला राजाओं ने मात्र चन्देरी में ही नहीं बल्कि इस संपूर्ण क्षेत्र में अनेक मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा, मंदिर निर्माण कराकर अपने दिल की गहराइयों से अपने धार्मिक पक्ष को हमेशा हमेशा के लिए स्थाईत्व प्रदान किया है। 
आज भी एक नहीं अनेक मंदिरों में स्थापित अभिलेख इन तथ्यों के प्रामाणिक साक्ष्य हैं। साथ ही मंदिरों की सुंदर आकर्षित वास्तुकला इन तथ्यों को और अधिक मजबूती प्रदान करती है कि बुंदेला राजा मात्र धर्म प्रेमी ही नहीं अपितु वास्तुकला प्रेमी भी थे। चंदेरी में श्रीलक्ष्मण जी मंदिर, श्री नृसिंह मंदिर, श्री जगाश्वेरी देवी मंदिर एवं श्री रघुनाथ जी मंदिर वास्तुकला के सर्वश्रेष्ठ अनुपम उदाहरण है। 
इन सबके इतर बुंदेला काल में सुंदर वास्तुकलायुक्त निर्मित एवं पूर्ण भव्यता को प्राप्त नगर का श्रीलक्ष्मण जी मंदिर चंदेरी के ओरछा से खानदानी एवं सियासी रिश्तो के अलावा धार्मिक रिश्ता कायम रखने का माध्यम बना। यानी ओरछा में श्री रामराजा मंदिर तो चंदेरी में श्रीलक्ष्मणजी मंदिर दोनों राज्य वासियों के अलावा अन्य श्रद्धालुजन की धार्मिक पवित्र भावनाओं को तृप्त करने का माध्यम बनें। यूं तो चंदेरी में बुंदेला शासकों ने समय-समय पर अनेक मंदिरों का निर्माण कराया है किंतु जिस वास्तुशिल्प का उपयोग श्री लक्ष्मणजी मंदिर को भव्यता प्रदान करने में किया गया है अन्य में नहीं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि धार्मिक क्षेत्र में श्री लक्ष्मणजी मंदिर तत्कालीन बुंदेला राजाओं की उत्तम पवित्र दूरगामी सोच का प्रतिबिंब है।
सदियों पूर्व स्थापित ओरछा चंदेरी के उक्त पवित्र धार्मिक रिश्ते को आज फिर पर्यटन के माध्यम से आपस में जोड़ने की आवश्यकता ही नहीं वरन अनिवार्यता प्रतीत होती है। इस क्रम में याद यह रखना भी जरूरी है कि चंदेरी के निकटवर्ती ऐतिहासिक एवं प्राचीन ग्राम थूबौन में स्थित सीतामढ़ी मंदिर समूह, लोक विश्वास, लोक धारणा के अनुसार सीताजी के आगमन से जुड़ता है। बात यहीं समाप्त न होकर आगे बढ़ती है और निकटवर्ती धार्मिक स्थल करीलाधाम पर पहुंचती है। यह वही पवित्र स्थल है जो माता सीताजी के आगमन सहित अभूतपूर्व प्रसंगों की व्याख्या करता है।
आशय यह है कि करीलाधाम एवं थूबौन ऐसे धार्मिक स्थल है जो सीधे-सीधे सीता जी से संबंध स्थापित करते हैं। वही चंदेरी में श्री लक्ष्मणजी को समर्पित मंदिर स्थापना के कारण उल्लेखनीय विशेष होकर क्षेत्रीय पहचान है। इस क्रम में याद यह रखना भी अति आवश्यक है कि थूबौन सनातन धार्मिक महत्व विश्वास मान्यताओं के अलावा जैन धर्म के पवित्र 27 मंदिर सहित अनेक प्राचीन मूर्तियां मौजूद होने के कारण सब दूर जैन तीर्थ क्षेत्र उत्तर भारत का श्रवणबेलगोला एवं बुंदेलखंड का गौरव मान्यता हासिल किए हुए हैं।
स्वतंत्रता दिवस पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा किया गया सार्वजनिक ऐलान कि प्रदेश में थीम आधारित पर्यटन सर्किट जैसे रामायण सर्किट, अमरकंटक सर्किट, तीर्थकर सर्किट, नर्मदा परिक्रमा आदि को बढ़ावा दिया जाएगा राम वन गमन पथ का विकास होगा। यह जानकर खुशी हुई कि मध्य प्रदेश सरकार श्री राम वन गमन पथ विकसित करने जा रही है। श्रीराम सीताजी और लक्ष्मणजी मध्यप्रदेश में जिन स्थानों से गुजरे थे सरकार उसे टूरिस्ट सर्किट के रूप में उन्नत करना चाहती है यही नहीं उक्त पथ पर बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता भी सुनिश्चित करेगी।
धार्मिक पर्यटन क्षेत्र में यह एक अच्छी शुरुआत है इससे क्या होगा एक तो धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा दूसरे इस माध्यम से भारतीय जनमानस ही नहीं विदेशी सैलानी भी हमारी प्राचीन संस्कृति, सांस्कृतिक विरासत से रूबरू हो सकेंगे वही आगामी पीढ़ी को परिचित होने का अवसर प्राप्त हो सकेगा।
इस क्रम में मध्यप्रदेश शासन से बड़ी ही उम्मीद के साथ यह मांग की जाती है कि धार्मिक पर्यटन स्थल ओरछा साथ ही चंदेरी एवं निकटवर्ती क्षेत्र थूबौन एवं करीलाधाम के धार्मिक महत्व पहलुओं, आस्था, श्रद्धा, विश्वास धारणा को दृष्टिगत रखते हुए प्रदेश में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य हेतु ओरछा- चंदेरी-थूबौन-करीलाधाम के मध्य श्रीराम लक्ष्मण सीता दर्शन के नाम पर टूरिस्ट सर्किट विकसित करते हुए प्रचारित प्रसारित करने की आवश्यकता क्षेत्रीय, प्रदेश पर्यटन एवं सार्वजनिक हित में है।
ताकि देश के विभिन्न हिस्सों से रामराजा दरबार ओरछा में आते श्रद्धालुजन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के दर्शन के बाद श्रीलक्ष्मण, सीताजी दर्शन हेतु चंदेरी करीलाधाम की ओर आकृष्ट होकर अपनी धार्मिक भावनाओं एवं जिज्ञासाओं को तृप्त कर इस माध्यम से देश प्रदेश में देसी धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ साथ माननीय प्रधानमंत्री जी के लोकल फार वोकल अभियान को सफल करने का एक सशक्त माध्यम साबित हो सके।
वही दूसरी ओर ऐसा किए जाने से एक तो देसी पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा दूसरे पर्यटन के माध्यम से नगर में सामान्यजन आवाजाही में इजाफा होगा जिसका असर हथकरघा के माध्यम से निर्मित चंदेरी हस्तशिल्प कला के नायाब नमूना चंदेरी साड़ी अन्य वस्त्रों के क्रय विक्रय क्षेत्र में परिलक्षित होगा साथ ही टेक्सटाइल टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा।
(लेखक-मजीद खां पठान)

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