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निर्भया से लेकर मनीषा तक कुछ नहीं बदला...

निर्भया से लेकर मनीषा तक कुछ नहीं बदला...

आप सब के ज़हन में शायद आज तक वह काली रात ज्यों की त्यों क़ायम होगी जब दिल्ली में चलती बस में निर्भया के साथ सामूहिक दुराचार के बाद क्रूर से क्रूरतम कृत किया था। सात साल बाद दिन के उजाले में हाथरस की बेटी के साथ फिर वैसा ही कृत्य हुआ है। मगर इस बार मनीषा के मामले में नया ट्विट्स दिया कि रात के गहरे अंधेरे में बग़ैर परिजनों के उसका शव जला दिया गया। निर्भया हादसे से लेकर मनीषा तक के बीच में कई और बेटियों की अस्मतें लुटीं, क़त्ल की गईं। दो साल से लेकर 90 वर्ष की वृद्धा के साथ वहशीपन हुआ, दरिंदगी की गई। इनमें से कुछ सुर्ख़ियाँ बनी और कुछ को दबा दिया गया। ठीक वैसे ही जैसे आज मनीषा का मामला मीडिया की हैड लाइनों से ग़ायब है। धंधेबाज मीडिया पर सवाल उठाने से कुछ नहीं होगा। न दुराचार रुकेगा और न ही क्राइम रुकेगा। इसे सिर्फ़ पब्लिक ही अपनी सोच-समझ से कम कर सकती है। वक्त आ गया है कि उसे यह सोचना होगा कि अपनी सुरक्षा, प्रगति, विकास और जीने के सम्मान की कुंजी किसे सौंपना चाहिए।
आप सब ने उस सरकार को भी देख लिया था और अब इस सरकार को देख लिया है। दोनों ही ने आपकी गाढ़ी कमाई से आपकी ही इच्छाओं और भावनाओं की चिता जलाई है। क्या बदला, क्या नया पाया, क्या सत्ता परिवर्तन से व्यवस्था बदली इस पर आप सब खुद चिंतन-मनन करें, खूब करें। हो सकता है बहुत बदलाव हुआ हो, हो सकता है लोगों के जीवन में ख़ुशियों की बरसात हुई हो, ये भी हो सकता है कि मुल्क की पूरी न सकी आधी आबादी सुकून के झूले पर झूल रही हो, मैं इस पचड़े में फँसने की बजाय सिर्फ़ इतना कहूँगा कि दुराचार के मामले में कोई भी बदलाव नहीं आया है। जो हालात पहली वाली सरकार के दौर में थे उससे कहीं ज़्यादा अब हैं। नेशनल क्राइम रिपोर्ट 2019 के आँकड़े तो यही कहते हैं। निर्भया कांड के बाद से हर घंटे औसतन चार महिलाओं के साथ बलात्कार जैसा घिनौना कृत्य हो रहा है। इस रिपोर्ट के मुताबिक़ सन 2013 से 2019 के बीच 2.42 लाख महिलायें हवस का शिकार बनी, यानि हर दिन 95 महिलायें। इससे साफ़ होता कि पहले की तुलना में नारी अस्मत लूटने का ग्राफ़ चढ़ा है।
अब इसके लिए सरकारों से सवाल पूछना बेमानी है। पब्लिक सरकार को वोट नहीं करती, वोट करती है उम्मीदवार को। पब्लिक जिसे वोट करती है उससे सवाल पूछा जाना चाहिए कि नेता जी यह सब क्या चल रहा है। सवाल पूछा जाना कि जिस देश में नारी को शक्ति की देवी का स्वरूप मानकर पूजा जाता है उस नारी जात के साथ यह अन्याय क्यों ? इतनी घिनौनी हरकत क्यों, क्या आप की बेटी-बहू और पब्लिक की बेटी बहू में फ़र्क़ है , वह भी तो उसी हाड़-मांस की बनी है जिससे पब्लिक की बेटी बनी है। पूछा जाना चाहिए कि कब तक आम बच्चियों के साथ वहशीपन और दरिंदगी का सिलसिला चलेगा।
देश के ख्यात साहित्यकार, कवि और इंसानियत के वाहक डा कुमार विश्वास की इस बात से मैं बिलकुल सहमत हूँ कि आप वोट फिर उन्हें ही करना, उनके लिए क़तार लगाना, झंडा-बैनर उठाना मगर अपनी इज्जत-आबरू महफ़ूज़ रखने के लिए कम से कम अब तो सवाल पूछते और उठाते चलो.....
परमात्मा ने सिर्फ़ दो जात बनाई है एक नर और एक नारी। उसने दोनों के साथ भेद नहीं किया। भगवान शिव  जो स्वयं अर्ध-नारीश्वर बनकर दोनों शरीर और आत्मा का एका करके यह बताया कि इनमें कोई भेद नहीं है। इसलिए नर (चाहे वो कोई भी हो) से नारी पर हो रहे अत्याचार का प्रश्न तो पूछना ही चाहिए।
जय हिन्द
 (लेखक-ज़हीर अंसारी )

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