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(व्यंग्य) "कोरोना काल में मोबाइल न होता तो क्या होता

(व्यंग्य) "कोरोना काल में मोबाइल न होता तो क्या होता

कोरोना काल से पूर्व ही हम सब अति व्यस्तता के कारण संपर्क साधने के अतिरिक्त साहित्य सृजन, मनोरंजन के साथ ही अन्य रचनात्मक कार्यों के लिए भी मोबाइल पर ही आश्रित हो चुके थे और कोरोना काल में लगे लॉकडाउन के कारण इसका महत्व और भी बढ़ गया । सोशल मीडिया पर "मोबाइल को सही सलामत रखें,ताकि आप की सलामती की खबर प्राप्त हो सके ।" जैसे संदेश वायरल हुए जो वाकई मोबाइल का महत्व प्रतिपादित करते प्रतीत हो रहे थे । लॉकडाउन के कारण जो लोग परिवार के साथ थे, उनका तो समय जैसे-तैसे कट गया, लेकिन हमारी तरह परिवार से दूर अनेक कामकाजी लोग अकेलेपन से जब परेशान हुए तो मोबाइल ही जीवन का आधार लगने लगा जो लोग अभी तक केवल संदेश के माध्यम से संपर्क बनाए हुए थे, वे अब आपस में बातचीत करने लगे और उससे बढ़कर एक-दूसरे को देखने की चाह में वीडियो कॉलिंग भी की जाने लगी । अब लोगों के पास वक्त ही वक्त था, जिसे बिताने का एकमात्र सहारा मोबाइल था। 
मोबाइल न होता तो न लोग आपस में बात कर पाते और न एक-दूसरे की खैर खबर ले पाते । साथ ही वर्क फ्रॉम होम* तो बिल्कुल ही नहीं कर पाते। ऑनलाइन काव्य गोष्ठियों* की जो बहार विभिन्न साहित्यिक मंचों पर आई हुई है, वह भी नहीं आती । जितने साहित्यिक सर्टिफिकेट ऑनलाइन मिले हैं, वह भी एक उपलब्धि है । एफबी लाइव का दौर चल पड़ा है । विभिन्न साहित्यिक मंचों में  होड़ लगी हुई है और अब आलम यह है कि किसी एक मंच के सारे लोग लाइव प्रस्तुति कर रहे हैं और उन्हें देखने का समय किसी के भी पास नहीं है, बिना देखे बिना सुने केवल वाह-वाह कर उपस्थिति दर्ज कराने को मजबूर है खैर हर सिक्के के दो पहलू होते ही हैं।  
मोबाइल न होता तो व्यक्ति अकेला मानसिक अवसाद का शिकार हो जाता अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति जैसे दैनिक समाचार प्राप्त करने के लिए, खाद्य सामग्री प्राप्त करने के लिए किसी की मदद करने या पाने के लिए मोबाइल पर ही निर्भर थे और सबसे बढ़कर कोरोना अपडेट्स तो हमें मोबाइल पर ही मिल रहे थे। समाचार पत्रों का घरों में आना क्या बंद हुआ, समाचार पत्र पढ़ने के आदी लोगों द्वारा मोबाइल पर समाचार-पत्रों की पीडीएफ प्राप्त की जाने लगी और सरकार को पीडीएफ पर प्रतिबंध लगाना पड़ा, लेकिन जुगाड़ू लोग फिर भी चोरी-चुपके मोबाइल पर समाचार पत्र पढ़ते रहे। न जाने किन-किन देशों के कोरोना वीडियो संदेश हमने मोबाइल पर देखें और फॉरवर्ड किए और टीवी के माध्यम से उनकी सत्यता भी देखी-सुनी। मोबाइल न होता तो हम खबरें तो टीवी पर देख लेते, लेकिन किसी भी सहायता और संपर्क के अभाव में जीवन जीना अत्यंत दुष्कर होता । केवल कोरोना काल में ही नहीं मोबाइल हमारे जीवन का एक अनिवार्य अंग बन गया है, जिसके बिना जीवन की कल्पना असंभव प्रतीत होती है। 
 (लेखिका-हेमलता शर्मा)

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