वर्तमान में विश्व स्तर पर हिंसा ,बलात्कार ,चोरी, हिंसा और जमाखोरी आदि पाप बहुतायत में हो रहे हैं। पंच पापो का इतिहास मानव संभ्यता से से शुरू हुआ हैं। यदि न हुआ होता तो क्यों वेद, पुराणों, उपनिषदों में इनका क्यो हवाला दिया गया। इसके अलावाइनकी रोकथाम के लिए दंड व्यवस्था के साथ नैतिक शिक्षा का प्रावधान रखा गया था। इसके बाद न्याय व्यवस्था में समय समय पर सुधार भी किये गए। इतनी बड़ी जनसँख्या में नैतिकता और सुधार का कोई स्थान नहीं रहा और न रहेगा।
वर्तमान में बलात्कार के साथ हिंसा यह विश्व स्तरीय संक्रमण रोग हो गया। जैसे कोरोना संक्रमण में आयुर्वेद /जैन धरम में बताये गए सिद्धांत बहुत सीमा तक कारगर रहें उसी प्रकार प्रजातंत्र में कानून में लचीलापन होना स्वाभाविक हैं और हमारे लोकतंत्र में मनचाहे आप नियमों में बदलाव कर सकते हैं ,पर धार्मिक ग्रंथों में व्यवस्था दी गयी हैं वह सनातन के साथ अपरिवर्तनशील हैं।उसमे कोई किसी हो सहूलियत नहीं दी गयी। समय आने पर राजा ,राजकुमार को भी अपराध के अनुसार दण्डित किया गया था।
स्वंत्रता के कारण देश में स्वच्छंता आने से अपराधों की संख्या बहुत बढ़ती जा रही हैं और बढ़ेगी उसका कारण वर्तमान कानून इतना लचीला के साथ विलम्ब से न्याय भी अन्याय लगता है। हमारे देश में सुधार की बात भर होती हैं पर होता नहीं हैं।इसके लिए हमें कुछ अन्य देशों के साथ अपने देश में भी पुरातन नियमों का पालन करना चाहि। अपने देश में प्राकर्तिक न्याय हेतु अपचारी को पूरा मौका दिया जाता हैं उसके बाद वकील ,अपील , दलील के चक्कर में अपराध की गरिमा ख़त्म हो जाती हैं।
इसके लिए अन्य देशों के साथ अपने देश में यह ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जैसे के साथ तैसा। जब तक देश में पुलिस ,न्याय और शासन का भय नहीं होगा तब तक कुछ भी नहीं होगा। वर्तमान में पुलिस ,अपराधी का चोर सिपाही जैसा खेल चलता हैं।
भविष्य गर्त में जाने वाला हैं ,अब तो घर में सुरक्षित नहीं हैं ,कारण दंड का भय नहीं हैं। नैतिकता ,धरम ,न्याय की दुहाई बेमानी हैं। अब तो दंड को तत्काल दिया जाए जैसे कुछ चित्र में भेज रहा हूँ। हो सकता हैं ये अमानवीय हो सकते हैं पर इनका प्रयोग जरूर होना चाहिए अन्यथा इसमें पुलिस ,वकील द्वारा न्याय विलम्ब से दिलाने में सहायक होते हैं।
वर्तमान में जब विश्व कोरोना जैसे महामारी से जूझ रहा हैं ,लॉक डाउन के दौरान अपराधों की संख्या और बढी हैं ,इसका मतलब अब अपराधियों के हौसले बुलंद हैं और निर्भर और निर्भीक हैं। शासन का भय से निष्फिक्र हैं और भगवान् से अब कोई दर नहीं। बलात्कारएक मानसिक रोग हैं जिसका कारण मात्र अपनी कामेच्छा को पूरा करना इसके लिए जब तक व्यक्तिगत सुधार नहीं होगा तब तक इस पर नियंत्रण लगाना मुश्किल होगा। इसके लिए अपराधियों में तड़पा तड़पा कर दण्डित किया जाय ,इसके लिए आवश्यक नियम ,कानून में सुधार करे और ऐसे नीच कर्म करने वालों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाना जरूरी हैं जिससे कुछ सामाजिक भय पैदा होगा।
(लेखक-डॉक्टरअरविन्द प्रेमचंद जैन)
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