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(रहस्य) शिरडी में नही, देवलाई में प्रकट हुए थे साईबाबा! 

(रहस्य) शिरडी में नही, देवलाई में प्रकट हुए थे साईबाबा! 

आध्यात्मिक संत साईबाबा की आवास स्थली के रूप में सिरडी ही दुनियाभर में चर्चित है। तभी तो साई बाबा को शिरडी के बाबा भी कहते है।जंहा लम्बे समय तक साईबाबा ने साधना की और दीनदुखियों के कष्ट दूर करने के लिए चमत्कार दिखाये और हिन्दू मुस्लिम दोनो के लिए महान हो गए।साईबाबा का एक ऐसा स्थान भी है जंहा न भक्तों की भीड है,न प्रसाद बेचने के नाम पर और न पार्किंग के नाम पर कोई अवैध वसूली होती है। औरंगाबाद के बीड बाईपास रोड से करीब तीन किमी0 दूर स्थित है एक गांव देवलाई। 
मुस्लिम बाहुल्य के इस गांव की पहाडी पर 19 वीं सदी में साईबाबा प्रकट हुए थे। उस समय साईबाबा की आयु मात्र 16 वर्ष की थी। सबसे पहले साईबाबा ने धूपखेडा गांव के सरपंच चांद पाशा पटेल को दर्शन दिये थे। जिस पहाडी चटटान पर 16 वर्षीय साईबाबा ने सरपंच चांद पाशा के साथ प्रवास किया। उसी स्थान पर साई स्थान रूप में एक मन्दिर बना हुआ है। इस मन्दिर में मुख्य प्रतिमा तो साईबाबा की ही है परन्तु साथ में शिवलिंग औरनन्दी भी विराजमान है।इस छोटे से मन्दिर के बराबर में चटटान पर ही अब एक 25 फीट उंचाई की एक साई प्रतिमा विशालकाय रूप में प्रतिष्ठित की गई है।इस प्रतिमा में साईबाबा को पत्थर की शीला पर बैठे दर्शाया गया है। इस मन्दिर के परिसर में राम नाम समाहित हनुमान स्थानक है तो अन्य कई देवी देवताओं की छोटी छोटी मूर्तिया भी सजाई गई है। इस मन्दिर पर प्रत्येक गुरूवार को साई भक्त भण्डारा करते है परन्तु सामान्य दिनों में इक्का दुक्का भक्त लोग ही साई प्रकट स्थल तक पहुंचते है। श्री साई सदचरित नामक पुस्तक जो कि सन 1914 में लिखी गई ,के अनुसार सन 1835 में और सत्य साई के अनुसार साईबाबा का जन्म 27 सितम्बर सन 1830 में ग्राम पाथरी जिला परभणी में होना माना जाता है। इस देवलाई नामक स्थान से सरपंच चांद पाशा पटेल साईबाबा को लेकर अपने गांव धूपखेडा गए थे,जंहा साईबाबा एक माह तक रहे। इसके बाद साई बाबा सरपंच चांद पाशा के साथ सिरडी गए और फिर वही बस गए। अपना सादगी भरा जीवन जीकर साईबाबा ने सिरडी में ही शरीर छोडा था,जिसकी समाधि के दर्शन के लिए आए दिन लाखों लोग सिरडी पहुंचते है और साईबाबा की स्वर्णसिंहासन युक्त प्रतिमा और समाधि के सामने शीश झुकाकर मन्नते मांगते है। 
जीवनपर्यन्त फक्कड वेशभूषा में रहे साईबाबा के अनुयायियों ने उनके नाम से चढावे से जंहा सिरडी के साई मन्दिर को विहंगम बना दिया ,वही द्वारका माई रूपी स्थान जंहा साईबाबा एक पत्थर पर बैठकर धूनी रमाते थे,को अत्याधुनिक रूप दे दिया है। भक्तो की लम्बी कतार को नियन्त्रित करने के लिए कई प्रवेश द्वार से लेकर रैंलिगों के कई हाल बनायें गए है। ताकि मन्दिर परिसर में ही कई धण्टे की भक्तों की लाईन को समाहित किया जा सके। हालाकि साईबाबा मन्दिर में चढने वाले प्रसाद ,नारियल,फूलमालाओं व पेडे को मन्दिर के बाहर के दूकानदार मनमाने दाम पर बेचते है और भक्तों के साथ खुली ठगी करते है। वही वाहन पार्किगं के नाम पर भी अनियन्त्रित वसूली से 
भक्तों का मन श्रद्धा के साथ साथ कसैला भी हो जाता है। साईबाबा के बारे में कहा जाता है कि वे सन 1835 से सन 1846 तक पूरे 12 साल अपने गुरू रोशनशाह के धर रहे और सन 1846 से सन 1854 तक बाबा बैंकुशा के आश्रम में साईबाबा ने प्रवास किया। सन 1854 में ही सिरडी के ग्रामीणों को साईबाबा एक नीम के पेड के नीचे बैठे दिखाई दिये थे लेकिन बाद में कही चले गए थे और फिर सन 1858 में चांद पटेल के साथ एक शादी में शरीक होने सिरडी लौटकर आए और खंडोबा मन्दिर के सामने ठहर गए। इसके बाद साईबाबा सन 1858 से 1918 तक सिरडी में ही अपनी लीलाओं को करते रहे और अन्त तक सिरडी के ही होकर रहे। साईबाबा हमेशा फक्कड रहे और चार धरों से भिक्षा मांगकर जो मिलता उसी से पेट भरते थे। हिन्दू मुस्लिम दोनो के लिए आस्था का केन्द्र बने साईबाबा की महिमा इतनी अधिक है कि देशभर में साईबाबा के हजारो मन्दिर बन गए है और सिरडी में तो प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु साईबाबा की प्रतिमा और समाधि पर पूजा अर्चना करने और मन्नत मांगने आते है। साईबाबा के भक्तों की मुराद पूरी होने का प्रमाण साई बाबा के मन्दिर में आए दिन बहुतायत में चढने वाला चढावा है। इसीकारण सिरडी में भक्तों की भीड आए दिन लाखों की सख्ंया में जुटती है।इसीलिए देवलाई और धूपखेडा से अधिक सिरडी का नाम हुआ और साईबाबा (लेखक- डा0श्रीगोपालनारसन एडवोकेट)
 

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