जब-जब भी मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत सहेजे विश्व प्रसिद्ध चंदेरी साड़ियों की चर्चा की जावेगी, तब-तब चंदेरी के निकटवर्ती ग्राम प्राणपुर की बात किए बिना चर्चा अधूरी रहेगी, क्योंकि चंदेरी वस्त्र कुटीर उद्योग में मात्र चंदेरी ही नहीं उसके आसपास के ग्राम भी अपना योगदान निरंतर प्रद्धत कर रहे हैं जिनमें से एक ग्राम प्राणपुर है जहां बुनकरों की आत्मा बसती है।
यूं तो चंदेरी के सीमावर्ती ग्राम प्राणपुर, मुरादपुर, रामनगर, फतेहाबाद, सिंहपुर एवं खानपुर इत्यादि में भी चंदेरी साड़ी का निर्माण होता है, और वह इसलिए होता है कि उक्त गांव चंदेरी की सीमाओं से लगकर है। या यूं कहें कि वह धीरे-धीरे चंदेरी के आगोश में समाने को आतुर हैं। विश्वास है कि नगर की निरंतर बढ़ती आबादी उक्त गांवों को अपनी सीमा में आज नहीं तो कल शामिल कर ही लेगी।
याद रखना होगा कि 1979 ईस्वी में जब मध्यप्रदेश शासन द्वारा विधिवत चंदेरी विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण का गठन किया गया था, तब ग्राम प्राणपुर, ग्राम रामनगर एवं फतेहाबाद चंदेरी सीमा अंतर्गत शामिल किए गए थे। याद यह भी रखना होगा कि ग्राम फतेहाबाद को विधिवत चंदेरी नगरीय निकाय सीमा में शामिल कर लिया गया है लेकिन यहां आबादी अथवा नगर की सीमाएं आदि महत्वपूर्ण नहीं है, यदि महत्वपूर्ण है तो वह है हथकरघा की उपस्थिति और उसके माध्यम से निर्मित होती विरासत चंदेरी रूपी हस्तशिल्प कला का बेजोड़ नायाब नमूना चंदेरी साड़ियां एवं अन्य परिधान।
यहां पर यह दर्शाना भी आवश्यक है कि प्राणपुर को छोड़कर ऊपर वर्णित अन्य गांवों में हथकरघा की उपस्थिति नगण्य है। जबकि ग्राम प्राणपुर बुनकरों के लिए एवं उनके द्वारा अपने हुनरमंद हाथों की कलाकारी के लिए जो वह चंदेरी वस्त्रों के माध्यम से सार्वजनिक कर भारत ही नहीं सारी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते रहते हैं अतएव यह गांव हुनर के ताना-बाना संगम के लिए जाना पहचाना जाता है।
यह सर्वविदित तथ्य है कि चंदेरी साड़ी और चंदेरी पर्यटन एक-दूसरे के पूरक हैं। इसलिए उक्त दोनों तत्वों को साथ में रखना तर्कसंगत प्रतीत होता है। क्योंकि प्राणपुर पर्यटन ग्राम भी है। अतएव यह अति आवश्यक है कि बुनकरों के गांव प्राणपुर को विस्तृत न सही संक्षिप्त रूप से ही सही, परिचय साझा किया जावें।
प्राणपुर को यदि हम भौगोलिक स्थिति से समझने का प्रयास करें तो यह बात कांच की तरह साफ है कि प्राणपुर, चंदेरी का ही एक अभिन्न अंग है। अंतर है तो मात्र इतना कि चंदेरी मध्य पहाड़ी पर आबाद है, जबकि प्राणपुर पहाड़ी के नीचे तलहटी में आबाद है यानि पहाड़ी के नीचे आबाद हैं। चंदेरी के समकालीन ऐतिहासिक महत्व को अपने दामन में संभाल कर रखें प्राणपुर आज भी अपने प्राचीन ऐतिहासिक स्वरूप को सिद्ध करने के लिए अभिलेख, शिलालेख रूपी बीजक सार्वजनिक कर रहा है।
यूं तो प्राणपुर में एक नहीं कई प्राचीन सनातन मंदिर, जैन मंदिर, बावड़ियां आदि मौजूद हैं लेकिन जनाजन बावड़ी में जडित अभिलेख से यह जानकारी उजागर होती है कि जनाजन बावड़ी का निर्माण मालवा सुल्तान के शासनकाल 1459-1500 ईस्वी में हुआ था। वही गचाऊ बावड़ी में जडित शिलालेख से यह जानकारी हासिल होती है कि इस बावड़ी का निर्माण 1520 ईस्वी में हुआ था।
इस प्रकार जब तक और कोई प्रमाणिक जानकारी सामने आवें तब तक फौरी तौर पर यह कहा जा सकता है कि 15 वीं सदी से निरंतर आबाद ग्राम प्राणपुर आज भी आबाद है। दूसरे कतियापुरा गांव प्राणपुर से ही लगा हुआ है यह वही कतियापुरा गांव है जहां पूर्व काल में निवासरत कतिया समुदाय के सदस्य कपास कातने का कार्य करते थे जिसका उपयोग चंदेरी वस्त्र निर्माण में किया जाता था।
पुरातन नगर चंदेरी की पूर्व कालीन ऐतिहासिक परिस्थितियां यह दर्शा रही है जिनके चलते विश्वास किया जाता है कि प्राणपुर, कतियापुरा चन्देरी आबादी के ही अंग रहे हैं। यही कारण है कि पूर्व काल से वर्तमान तक प्राणपुर में प्रत्येक दूसरे- तीसरे घर में हथकरघा अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए खट-खट की आवाज सुना रहा है साथ ही बुनकर परिवारों के भरण पोषण का जरिया बना हुआ है। लगभग पांच हजार की आबादी वाले इस गांव की पचास फीसदी से अधिक आबादी हथकरघा क्षेत्र में हस्तशिल्प कला के माध्यम से अपने जौहर का सफल प्रदर्शन कर रही है। जिसमें मुख्य रूप से कोली एवं मुस्लिम समुदाय अपनी प्रमुख भूमिका का निर्वहन कर रहे है, इसके अलावा कुशवाह, सोनी, लुहार, कतिया, अहिरवार, रैकवार, कुम्हार आदि समुदाय के सदस्य भी संलग्न है।
यही नहीं हेण्डलूम विलेज प्राणपुर के ऐतिहासिक ग्रामीण कला-संस्कृति हस्त शिल्पकला को मान्यता प्रदान करते हुए 2004 ईस्वी में पर्यटन मंत्रालय (भारत सरकार) एवं संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने संयुक्त रूप से ग्रामीण पर्यटन परियोजना अंतर्गत स्वदेशी ग्रामीण पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने हेतु चयन कर विभिन्न कार्य को अमलीजामा पहनाया था। उक्त योजना अंतर्गत 2008 ईस्वी में अमराई रूलर हेरिटेज रिसोर्टस प्रारंभ हुआ जो आज भी ग्रामीण परिवेश का अनुभव कराता पर्यटकों की सेवा में संलग्न है। बेस्ट नेशनल रूरल टूरिज्म अवार्ड से सम्मानित रिसोर्ट का संचालन ग्रामीण जन प्राणपुर पर्यटन विकास समिति के माध्यम से कर रहे हैं।
2009 ईस्वी में फिल्म अभिनेता आमिर खान एवं फिल्म अभिनेत्री करीना कपूर का इस गांव में एक गरीब बुनकर कमलेश कोली के कच्चे घर में आना, उनके सुख-दु:ख सहित साड़ी निर्माण की बारीकियों को समझना, वहीं बैठकर बुनकर परिवार द्वारा तैयार किए भोजन को खुशी-खुशी ग्रहण करना, हाथकरघा पर दोनों कलाकारों द्वारा अपने हाथ आजमाना, साड़ी क्रय करना, यादगार रूप में बुनकर कमलेश एवं हुक्म कोली को ए. के. (यानि आमिर खान) उकेरी सोने की अंगूठी भेंट करना उल्लेखनीय है। बुनकर भाई भेंट में प्राप्त उक्त अंगूठी को आज भी दिल से लगा कर रखे हुए है।
इससे भी आगे फिल्म थ्री इडियट के प्रीमयर शो में शामिल होने के लिए बुनकर कमलेश कोली, दयाराम कोली, हुक्म कोली एवं रन्धीर कोली को मुम्बई बुलाकर होटल ताज (बांद्रा) में ससम्मान ठहराना, शो में शामिल करना, घर से जाने से लेकर घर वापस तक संपूर्ण खर्च वहन कर मानवता धर्म का पालन करना, आगे पुन: बुनकर कमलेश कोली को मुम्बई बुलाना नगद दो लाख रूपया प्रदान कर आर्थिक सहायता करना स्थानीय बुनकरों की सुखद यादें है। जिसे वह आज भी वह बड़े चाव से सुनाते हैं।
याद रखना होगा कि आमिर खान मात्र एक सफल फिल्म अभिनेता ही नहीं बल्कि एक सामाजिक कार्यकर्ता भी है। आमिर खान ने बुनकरों की तारीफ करते हुए कहा था कि "देश के लोग हमें कलाकार बोलते हैं, लेकिन हम आपको कलाकार कहते हैं"
याद यह भी रखना होगा कि आमिर खान द्वारा बुनकर के घर पर ही एक साड़ी क्रय कर करीना कपूर को भेंट की गई थी वह साड़ी संपूर्ण भारत में करीना साड़ी के नाम से मशहूर हुई थी जिसकी मांग आज भी बरकरार है।
सांस्कृतिक एवं हस्त शिल्पकला विरासत चंदेरी में अपना अहम योगदान प्रद्धत करता है यह गांव एवं गांव के कुशल बुनकर पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्राप्त अनुभव के साथ आज भी अपने अतीत एवं शिल्पकला को सुरक्षित रखते हुए अपनी रोजी-रोटी का जरिया बनाए हुए हैं। यही नहीं बुनकर अपने परंपरागत हस्त शिल्पकला का जलबा देश में चारों दिशाओं में हाट बाजार, प्रदर्शनी, मेला आदि के माध्यम से जीवित प्रदर्शन करते हुए बिखेर रहे हैं। यही नहीं मिली जानकारी अनुसार इस छोटे से गांव के छै: बुनकर राज्य स्तरीय कबीर पुरस्कार सहित अन्य पुरस्कार से सम्मानित होकर प्रदेश स्तर पर गांव का नाम रोशन कर चुके हैं।
भारत सरकार एवं मध्यप्रदेश शासन से मांग
प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार एवं मध्यप्रदेश शासन द्वारा कई योजनाएं अमल में लाई जा रही हैं। जिसमें से एक है ग्रामीण पर्यटन जिसके अंतर्गत प्रदेश के प्राचीन ऐतिहासिक ग्रामों का चयन कर वहां की प्राचीन परंपराओं, लोक कला, संस्कृति का संरक्षण संवर्धन इत्यादि करना। प्राणपुर गांव पूर्व से ही भारत सरकार द्वारा घोषित पर्यटन ग्राम है। गांव में हथकरघा की बहुलता चंदेरी साड़ी में निरंतर प्रद्धत योगदान के मद्देनजर भारत सरकार वस्त्र मंत्रालय एवं मध्यप्रदेश शासन द्वारा प्राचीन गांव प्राणपुर चन्देरी को हेण्डलूम विलेज के रूप में विकसित किया जाना चंदेरी पर्यटन, चंदेरी साड़ियों के भविष्य हेतु एक बेहतरीन विकल्प उपलब्ध है।
(लेखक - सदस्य जिला पर्यटन संवर्धन परिषद चंदेरी मध्यप्रदेश)
(लेखक - मजीद खां पठान)