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जूस और सूप में क्या होता अधिक लाभकारी?  

जूस और सूप में क्या होता अधिक लाभकारी?  

आयुर्वेद में अरिष्ट और आसव दोनों एक समान प्रभावकारी होते हैं पर अरिष्ट को उसके घातक द्रव्यों को उबालकर फिर संधान किया जाता हैं और आसव में घटकों को ठंडा डालकर संधान करते हैं। इसी तरह सूप और जूस में भी अंतर होता हैं।
जूस और सूप दोनों ही बहुत पौष्टिक होते हैं। साथ ही स्वादिष्ट भी होते हैं। इसलिए बच्चों और बड़ों सभी को जूस और सूप लेना पसंद होता है।
अब ऐसा बिल्कुल नहीं है कि सूप दोपहर या रात के खाने से पहले सिर्फ एक स्टार्टर के रूप में लिया जाए। इतने सारे फ्लेवर और न्यूट्रिऐंट्स के साथ सूप की वेरायटीज उपलब्ध हैं कि आप हर दिन एक नए स्वाद का आनंद ले सकते हैं।
कौन से सूप और जूस अधिक पौष्टिक है?
-बात जब पोषण की आती है तो जूस और सूप दोनों में ही पोषक तत्वों की भरमार होती है। लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि ये दोनों ही ऑर्गेनिक तरीके से बनाए गए हों और इनमें प्रिजर्वेटिव्स अधिक मात्रा में नहीं होने चाहिए।
-बेहतर होगा अगर आप ताजे फल और सब्जियों से जूस और सूप घर पर ही तैयार करें और बाजार में उपलब्ध पैकेट बंद जूस और सूप पर अपनी निर्भरता कम करें। क्योंकि मार्केट में उपलब्ध रेडी टु यूज जूस और सूप के ये विकल्प स्वादिष्ट जरूर होते हैं लेकिन पोषण के मामले में उतने अधिक लाभकारी नहीं होते हैं।
सूप और जूस में क्या बेहतर है?
-जूस बनाते समय फलों और सब्जियों से उनके रेशों को छानकर अलग कर दिया जाता है। ताकि जूस पीने में अधिक स्वादिष्ट लगे और रेशे गले में ना अटकें।
-छानने से जूस का स्वाद और टेक्सचर जरूर बेहतर होता है लेकिन उसके एक खास गुण में कमी हो जाती है। यह है फाइबर। रेशे अलग होने से जूस में फाइबर की कमी हो जाती है। इससे यह शरीर को अन्य पोषक तत्व तो देता है लेकिन फाइबर नहीं दे पाता है।
-सूप बनाते समय सब्जियों को उबालकर उन्हें मैश किया जाता है या फिर मिक्सी में पीसा जाता है। इससे उनके फाइबर सूप में ही मौजूद रहते हैं। इसलिए सूप पीने से आपके शरीर को फाइबर का पूरा लाभ मिल पाता है। इस लिहाज से देखें तो सूप जूस से बेहतर होता है।
पाचन के लिए क्या बेहतर है?
-जूस को आइस के साथ उपयोग किया जाता है जबकि सूप गर्मागर्म इंजॉय किए जाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, ठंडी चीजों के मुकाबले गर्म चीजों (ऊष्ण भोज्य पदार्थ) को पचाना हमारे पाचनतंत्र के लिए अधिक सुखद अनुभव होता है।
-क्योंकि ठंडी चीजों को पचाने में हमारे शरीर की जठराग्नि को अपनी प्रकृति के विरुद्ध आए भोजन का पाचन करना होता है, इसके लिए पाचन तंत्र को अधिक मेहनत करनी होती है। जबकि गर्म चीजें पचाना जठराग्नि की प्रकृति के अनुकूल होता है। इसलिए पाचन के मामले में भी सूप ने जूस से रेस जीत ली है।
शुगर के मामले में
-फल और सब्जियों दोनों में ही अपनी नैचरल शुगर होती है। यह शुगर आपके शरीर को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाती है। लेकिन जूस और सूप तैयार करते समय इनमें अलग से शुगर मिलाई जाती है। जो कि स्वाद को तो बढ़ाती है लेकिन सेहत के लिए हानिकारक होती है।
-इस मामले में अगर जूस और सूप की तुलना करें तो यह आपके अपने स्वाद और पसंद के ऊपर निर्भर करता है कि आप किस फूड में कितनी मात्रा में शुगर ऐड करते हैं या नहीं करते हैं। यानी प्राकृतिक रूप से आपके शरीर को ऊर्जा देने के मामले में जूस और सूप दोनों बराबर हैं।
तुरंत थकान मिटाने के लिए
-यदि आप दिन के समय होनेवाली थकान को मिटाने की बात करते हैं तो इस स्थिति में जूस अधिक बेहतर होता है। क्योंकि इसकी ठंडक आपको मानसिक और शारीरिक रूप से शांत करने का काम करती है।
-जबकि दिनभर के काम के बाद रात की थकान उतारने के लिए सूप एक बेहतर विकल्प होता है। क्योंकि इसका स्वाद और गर्म तासीर आपके शरीर की अंदरूनी कोशिकाओं में गर्माहट पैदाकर दर्द और थकान से राहत देने का काम करती है।
नाश्ते के लिए क्या बेहतर है?
-नाश्ते में लेने के जूस बेहतर है या सूप, यह जानने के लिए आपको अपनी दिनभर की जरूरत पर ध्यान देना होगा। जैसे, नाश्ते में आप अगर कुछ ठोस ले रहे हैं, जैसे सैंडविच, पराठा, पोहा या उपमा आदि तो इसके साथ आप जूस ले सकते हैं।
-यदि आप सिर्फ कोई एक चीज लेकर फटाफट निकलने की तैयारी में हैं तब आपके लिए सूप बेहतर ऑप्शन है। क्योंकि सूप फाइबर से भरपूर होता है इसलिए यह आपको जूस की तुलना में लंबे समय तक फ्रेश और एनर्जेटिक बनाए रखेगा। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि सूप पचने के तुरंत बाद आपको जबरदस्त भूख लगेगी।
-अगर जूस और सूप में से किसी एक चीज का चुनाव करना पड़े तो आयुर्वेद के जठराग्नि नियम और शारीरिक पोषण के मामले में फाइबर्स के महत्व का ध्यान रखते हुए आपको सूप का चुनाव करना चाहिए।
इसके अलावा हमें जितना अधिक हो घर का जूस और सूप उपयोग करना चाहिए। रेडीमेड या बाज़ार में तैयार हुआ में स्वच्छता का ध्यान न होने से कभी कभी हानिकारक हो सकते हैं। दूसरा बाज़ार में तैयार में कई प्रकार के रसायन का उपयोग होता हैं और कई दिनों के बने होने से असरकारक नहीं होते।
जितना बन सके हमें प्राकृतिक उपयोग करना चाहिए।
( डॉ. अरविन्द प्रेमचंद जैन)

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