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'सोशलमीडिया' मतलब 'बतंगड का अड्डा' ? 

'सोशलमीडिया' मतलब 'बतंगड का अड्डा' ? 

आज की दुनिया में सोशलमीडिया ने अभिव्यक्ति को नया आयाम दिया है। आभासी दुनिया और इंटरनेट ने वैचारिक आजादी का एक नया संसार गढ़ा है। अब अपनी बात कहने के लिए अखबारों और टीवी के कार्यालयों और पत्रकारों की चिरौरी नहीँ करनी पड़ती है। उसका समाधान ख़ुद आदमी के हाथ में है। अब वर्चुयल प्लेटफ़ॉर्म ख़ुद ख़बर का जरिया और नज़रिया बन गया है। टीवी और अखबार की दुनिया वर्चुयल मीडिया के पीछे दौड़ रहीं है।  अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में कुछ भी लिखा- पढ़ा जा सकता है किसी को कोई रोकटोंक नहीँ है। 
अभिव्यक्ति का संवाद इतना गिर चुका है कि उसकी कल्पना तक नहीँ की जा सकती है। विचार के नाम पर ट्विटर, फ़ेसबुक, व्हाट्सप, इंस्टाग्राम और न जाने कितनी अनगिनत सोशल साइटों पर कुछ लोगों की तरफ़ से गंदगी फैलाई जा रहीं है। अनैतिक बहस और विचारों के शाब्दिक युद्ध को देख एक अच्छा व्यक्ति कभी भी सोशलमीडिया पर कुछ कॉमेंट नहीँ करना चाहेगा। वर्चुयल मंच पर विचारों का द्वंद देखना हो तो किसी चर्चित मसलों पर ट्विटर और फ़ेसबुक के  कॉमेंट आप देख सकते हैं। 
वर्चुयल प्लेटफ़ॉर्म ने लोगों को बड़ा मंच उपलब्ध कराया है, लेकिन उसका उपयोग सिर्फ़ सामाजिक, राजनैतिक और जातिवादी घृणा फैलाने के लिए किया जा रहा है। इतने भ्रामक और आक्रोश फैलाने वाले पोस्ट डाले जाते हैं कि जिसे पढ़ कर दिमाग फट जाता है। समाज में जिन्होंने अच्छी प्रतिष्ठा, पद और मान हासिल कर लिया है उनकी भी वाल पर कभी- कभी कितनी गलत पोस्ट की जाती है। आजकल पुरी राजनीति वर्चुअल हो गई है। कोरोना संक्रमण काल में यह और तीखी हुई है। सत्ता हो या विपक्ष सभी ट्विटर वार में लगे हैं।
सोशलमीडिया पुरी तरह सामाजिक वैमनस्यता फैलाने का काम कर रहा है। हालांकि वर्चुअल प्लेटफ़ॉर्म पर देश की नामीगिरामी सामाजिक, राजनैतिक, साहित्यिक, फिल्मकार, संगीतकार, अधिवक्ता, पत्रकार, चिंतक, वैज्ञानिक और समाज के हर तबके के लोग जुड़े हैं। लोग सकारात्मक टिप्पणी करते हैं। लोगों के अच्छे विचार भी पढ़ने को मिलते हैं। इस तरह के तबका काफी है। उनकी बातों का असर भी व्यापक होता है। लेकिन इंसान की जिंदगी बाजारबाद बन गई है, जिसकी वजह से बढ़ती स्पर्धा, सामंती सोच हमें नीचे धकेल रहीं है। अपना स्वार्थ साधने के लिए मुट्ठी भर लोग विद्वेष फैला रहे हैं। 
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक बेटी के साथ हुई अमानवीय घटना ने पुरी इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। इसकी वजह से योगी सरकार घिर गई है। राजनैतिक विरोधी सरकार की आलोचना में कोई आहुति नहीँ छोड़ना चाहते हैं। पूरे देश में हाथरस एक अहम मुद्दा बन गया है। अब इस जघन्य अपराध को भी जातीय और सियासी चश्मे से देखा जा रहा है। विकास दुबे एनकाउंटर के बाद यह दूसरा बड़ा मुद्दा है जिसे विरोधी योगी सरकार पर जातिवाद को संरक्षण देने का आरोप लगा रहे हैं।
विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद वर्चुयलमीडिया पर यह बहस अभी ब्राह्मण और ठाकुरवाद के बीच थी, लेकिन अब यह दलित और ठाकुरवाद के बीच हो गई है। जबकि इस तरफ़ के आरोप निराधार हैं। लेकिन एक तथ्यहीन जातिवादी टिप्पणी को खूब घुमाया जा रहा है। ट्विटर पर तो यह बहस इतिहास खंगालने लगी है। व्यक्तिगत गाली गलौज पर यूजर्स उतर आए हैं। जातिवाद की लामबंदी दिखती है। इस तरह की बहस देखकर आप ख़ुद शर्मसार हो जाएंगे कि हमारा समाज कहां जा रहा है। हम मंगल पर दुनिया बसाने की बात करते हैं, लेकिन सोच कितनी गिर गई है इसकी कल्पना तक नहीँ की जा सकती है। 
हाथरस मुद्दे पर वर्चुअल मीडिया में क्या कुछ चल रहा है हमने कुछ खंगालने का प्रयास किया है। अब इन ट्विट में कितनी सच्चाई है उस बारे में हम कोई दावा नही करते हैं। 'मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का हवाला देकर एक जातिवादी बयान खूब घूमा। जबकि जहाँ तक मेरी जानकारी का सवाल है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरफ़ से इस तरह का कोई बयान दिया ही नहीँ गया है। फ़िर समाज को जातिवाद में बांटने की अफवाहें क्यों फैलाई जा रहीं हैं। सरकारी स्तर पर इसकी भयावहता को देखते हुए कानूनी रोक की जरूरत है। वक्त रहते अगर इस पर प्रतिबंध नहीँ लगाया गया तो समाज को हिंसा की आग में धकेलने के लिए वर्चुअल दुनिया जिम्मेदार होगी। देश में इंटरनेट की वजह से अब तक हिंसा की कई वारदातें भी हो चुकी हैं। 
(लेखक- प्रभुनाथ शुक्ल / ईएमएस)

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