YUV News Logo
YuvNews
Open in the YuvNews app
OPEN

फ़्लैश न्यूज़

आर्टिकल

वृद्धाश्रम या कत्लखाना --क्या दोनों एक जैसे हैं ! 

वृद्धाश्रम या कत्लखाना --क्या दोनों एक जैसे हैं ! 

जितने अधिक आधुनिक और सम्पन्न होने से हमने अपने परिवार और पशुधन को बहुत अधिक तिलांजलि दी हैं। आज सम्पन्न और मध्यम आय वर्ग में एकल परिवार पद्धति में अपने परिवार के वृद्ध माँ बाप जो अनुपयोगी हो जाते हैं उनको हम भार मानकर उनको तिरस्कृत या उपेक्षा करने लगते हैं।और उन्हें वृद्धआश्रम भेजने में या अलग थलग रखने या भेजने में नहीं हिचकिताते हैं।
इसी प्रकार पशुधन की भी हालत हैं। जो अनुपयोगी हुए तो उनको आवारा बनाकर बाहर कर देते हैं या उनको स्लाटर हाउस में भेज देते हैं। जबकि हम अनुपयोगी पशुओं को यदि घर में पाले जिनके पास खेती हैं उनको उनके द्वारा खाद की प्राप्ति हो सकती हैं। उन जानवरों के मूत्र और गोबर को संग्रह कर खाद बनाने से लाभ मिलता हैं या मिलसकता हैं। पर उनको भार मानकर उनको कसाईघरों को भेजना उनके साथ बहुत नाइंसाफी होती हैं। इससे जीव दया का भाव भी मिलता हैं।
इसी प्रकार अनुपयोगी माँ बाप के प्रति उनकी संतानों का व्यवहार में परिवर्तन या बदलाव होना में कई पहलु हैं। पहली बात वृद्ध माँ बाप को कुछ अभावों में रखने की आदत अपने बच्चों में देना चाहिए। शादी के पहले बच्चों को नैतिक, सामाजिक, धार्मिक, पारिवारिक संस्कार और शिक्षा देना चाहिए। यदि माँ बाप के भी माँ बाप हो तो उनकी सेवा करनी चाहिए। उनको भी सम्मान देना चाहिए जिससे वे संस्कार उनके पुत्रो और पुत्रियों को मिले। यदि बच्चे अपना नया घर बनाते हैं तो उसमे माँ बाप व्यवस्थित कमरा या स्थान रखना चाहिए। बच्चों को अपने माँ पिता को भार नहीं समझना चाहिए। जिन्होंने अपना तन मन, धन भावनाओं को त्याग कर हमारा लालन पालन किया उनका उपकार हम अपने जीवन में नहीं उतार सकते हैं। शादी केसमय अपना जीवन साथी ऐसा चुनना चाहिए जो वृध्धावस्था में अपने माँ बाप के प्रति आदर, सम्मान दे।
आजकल नवजवान लड़के- बहु को अपने माँ बाप के प्रति लगाव नहीं रहता, उसके पीछे कुछ कारण। तालियां दोनों हाथों से बजती हैं। एक तरफ नवदम्पत्ति अपनी स्वतंत्रता चाहते हैं और उनको मनमानापन का अवसर नहीं मिलने से कुंठाग्रस्त होने लगते हैं। कभी- कभी आर्थिक तंगी से भी खटास आने लगती हैं। सभी जन जन्म से सम्पन्न नहीं होते। माँ बाप ने जन्म देकर पढ़ालिखाकर योग्य बनाया अब उनकी जिम्मेदारी हैं के वे अपने पुरुषार्थ से विकास, तरक्की करे। इसका दूसरा पहलु यह भी हैं उन्हें अपने बच्चे- बहु के अनुरूप भी समय समय अपने स्वाभाव में भी परिवर्तन करना चाहिए जो बहुत अनिवार्य हैं। जैसे नौन,कौन और मौन का उपयोग करे यानी स्वाद के लिए टोका टाकी ज्यादा मत करो,अधिक हस्तक्षेप न करे यानी कौन कहाँ क्या कर रहा हैं और कम से कम या अतिआवश्यक होने पर ही बात करे।
सबसे महत्वपूर्ण बात अपनी संतान पर अत्यधिक भरोसा या विश्वास न करे। जैसे अपना धन, सम्पत्ति, जब तक जिन्दा हैं अपने नाम पर रखो अन्यथा जरुरत पर आपको उनके मोहताज रहना पड़ेगा। आजकल भावावेश में यह काम होने के बाद पश्ताना पड़ता हैं। क्योकि आज जो प्रिय हैं कल अप्रिय होने लगते हैं। यदि बच्चे बाहर नौकरी करते हो तो तब भी आप उन पर भरोसा करके उनके साथ कम से कम रहे । कारण अपना घर अपना होता हैं उसके अलावा अन्य का घर घर जैसा होता हैं।
इस सबमे में पैसा, विचारधारा का न मिलना, सबके स्वभाव अलग अलग होने से ताल मेल की जरुरत हैं। सबमे नैतिक्ता, धार्मिक गुणों का आविर्भाव पैदा करना चाहिए। माँ बाप भोलेपन से अपना बुढ़ापा निकाले अन्यथा अनुपयोगी होने वाले पशु जैसा व्यवहार का सामना करना पड़ता हैं। यहाँ एक बात की जानकारी देना जरुरी हैं यदि आपके पास आमदनी का जरिया न हो और आपके पास स्थायी सम्पत्ति हैं तो उसे सरकार के पास गिरवी रखकर उसके ब्याज से आजीविका चलाये और आपकी मृत्यु उपरांत सरकार उस संपत्ति को अधिग्रहण कर लेती हैं। गलत व्यवहार यदि बहु और लड़के माँ बाप से करते हैं तो स्थानीय शासन आपकी मदद करता हैं। यदि वृद्धाश्रम में अनियमितता होने पर भी उसके विरुद्ध कार्यवाही की जा सकती हैं।
लड़के बहु को अपने माँ बाप को पशुधन न समझकर उन्हें सम्मान दे। कारण इतिहास अपनी पुनरावृत्ति करता हैं। जो जैसा करेंगे वैसा भोगेंगे।
अनुपयोगी पशु और माँ बाप के साथ दुर्व्यवहार करना कहाँ तक उचित हैं ?उनके तिरस्कार करने से आप कभी सुखी नहीं रह सकते। जिंदगी बहुत छोटी हैं उसमे सुख,शांति सम्मान, आदर के साथ जियो और जीने दो।
(लेखक- डॉ. अरविन्द प्रेमचंद जैन )

Related Posts