(1)
यही विनती करूँ दुर्गे, सदा सुख-छाँव में रखना
न हो कोई भी ग़म-पीड़ा, मुझे उस गाँव में रहना
न मुश्किल-दर्द-कठिनाई कोई इस भक्त पर आए
यही है बंदगी अम्बे, दया कर ठाँव में रखना।
(2)
हर इक नारी है माता रूप, पर दुष्कर्म क्यों होता
यहां सज्जन-दयालु-सत्यवादी नित्य क्यों रोता
सुनो दुर्गा-भवानी-कालमाता, तान दो भृकुटि,
बताओ आज क्यों कामी, नराधम चैन से सोता ।
(3)
बहा दो प्यार की गंगा, मेरा मन नित्य हो चंगा
कोई इंसान धरती पर,करे ना कोई भी दंगा
सभी का आचरण इंसान-सा हो, हों नहीं दानव,
रहें सब सभ्यतापूरित, कोई भी हो नहीं नंगा।
(4)
करोना हँस रहा,इंसान रोता, काल कैसा यह
फँसा इंसान पापों में, हटाओ जाल कैसा यह
नारियाँ बन गईं काया, प्रदर्शन बिक रहा है नित,
मॉडलिंग-फिल्म-टीवी में, नार का हाल कैसा यह ।
(लेखक-प्रो.शरद नारायण खरे)
आर्टिकल
माँ अम्बे के मुक्तक (नवरात्रि विशेष)