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उत्तर भारत में धुंध और प्रदूषण गंभीर समस्या। 

उत्तर भारत में धुंध और प्रदूषण गंभीर समस्या। 

भारत में विशेष रूप से उत्तर भारत में हर वर्ष अक्टूबर माह से ही घने कोहरे या धुंध का भारी संकट आ आता है। कोहरे के कारण जनजीवन प्रभावित हो जाता है। यह समस्या और अधिक बिकराल रूप लेती जा रही है। हर वर्ष नवंबर माह आते ही हवा में धुएं के मिश्रण से घना कोहरा छाने लगता है। धुंध व कोहरे से सबसे ज्यादा चिंता देश की राजधानी दिल्ली वासियों को हो रही है। दिल्ली के साथ हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, विहार, झारखंड और मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में यह समस्या विकराल रूप ले रही है।
धुंध अथवा कोहरा आज उत्तर भारत के साथ साथ सटे राज्यों में गंभीर समस्या बन गई है। वर्तमान में सारी दुनिया कोराना महामारी से जूझ रही है। ऐसे में धुंध और कोहरे से भी आम आदमी के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। नवंबर एवं दिसंबर में हर वर्ष भीषण रेल एवं सड़क दुर्घटना होती है। रेल एवं सड़क मार्ग पर जाम लगने से जनजीवन प्रभावित होता है। श्वांस के रोगी तो परेशान हैं ही आदमी जिसे स्वच्छ हवा व पानी मिलना चाहिए वह मिलना मुश्किल हो गया है। यह प्राकृतिक आपदा न होकर मानव निर्मित जटिल समस्या बन गई है। धुंध और कोहरे के कारणों का पता लगाया गया। आरंभ में यह अनुमान लगाया गया कि शहरी प्रदूषण से कोहरे का संबंध है। जब दिल्ली के वाहनों में डीजल के स्थान पर सी एन जी का उपयोग होने लगा तो विचारणीय प्रश्न उत्पन्न हो गया धुंध और घने कोहरे का आखिर कारण क्या है।
देश के प्रमुख कृषि उत्पादक प्रदेश पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा धान की पैदावार वहुतायत से की जाती है। फसल निकलने के बाद किसानों द्वारा धान की फसल का पुआल या पराली खेत में ही जलाया जाता है। पराली को खेत में जलाने पर प्रतिबंध है। फिर भी यह कार्य जोरशोर से चल रहा है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय में विगत 5 वर्ष पूर्व दिये आवेदन पत्र में जानकारी दी गई थी कि प्रति वर्ष किसानों द्वारा अपने खेतों में 50 करोड़ टन पुआल, पराली और भूसा जलाया जाता है। आज अनुमान लगाये तो यह आंकड़ा और बढ़ गया होगा।
अकेले पंजाब में ही किसान जिस तरह पराली जला रहे हैं वह चिन्तनीय पहलु है। विशेषज्ञों का कहना है पंजाब में जो पराली जलाई जा रही है उसी का धुआं एन सी आर दिल्ली सहित आसपास के प्रदेश हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश के आसमान पर छाया हुआ है। मेरे मित्र कृषि विशेषज्ञ राघवेन्द्र भूषण सिंह परिहार ने चर्चा के दौरान जानकारी दी है पंजाब में लगभग 28 लाख हेक्टेयर जमीन पर धान और गेहूं की कृषि होती है। यह सर्वविदित है धान की 80 -90 प्रतिशत पराली और गेहूं का 15 से 25 प्रतिशत भूसा किसान वेहिचक खेत में ही जला देता है। पंजाब के किसानों की तरह अब हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश सहित अनेक राज्यों के किसान अपना भूसा एवं पराली खेत में ही जला रहे है। पराली एवं भूसा जलाना प्रतिबंधित है सरकारी प्रतिबंध की कोई चिन्ता नहीं करता है। प्रतिबंध का उल्लंघन करने बाले कृषक के विरुद्ध नाममात्र के केश बनते है। यह पता नहीं चला है कि किसी कृषक को आज तक कोई सजा मिली है। 
कृषि विशेषज्ञ परिहार बताते है कृषक लगभग 2 करोड़ टन पुआल या पराली एक सप्ताह में जला देते है। पुआल जलाने से 12 मेगावाट कार्बन डाई आक्साइड पैदा होने का अनुमान है। इससे लगभग 1.5 लाख टन पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम नष्ट हो जाते हैं। इन पोषक तत्वों को पुनः प्राप्त कर कृषि भूमि की उर्वरक शक्ति बढ़ाने लगभग 150 करोड़ के रासायनिक उर्वरक फिर से डालने पड़ते है। पुआल जलाने एवं पुनः खेत में उर्वरक डालने की प्रक्रिया से मानव जीवन पर जो प्रतिकूल असर पड़ रहा है, उसका अनुमान लगाकर ही चिन्तित हो रहे हैं। मानव शरीर और धरती पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है यह गंभीर समस्या है।
दिल्ली एन सी आर में बढ़ते वायु प्रदूषण को लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत गंभीर हो गई है। गत दिनांक 16 अक्टूबर को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने से रोकने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर की एक सदस्यीय समिति नियुक्त की है। एन सी सी, एन एस एस और भारत स्काउट्स इस कार्य में समिति की मदद करेंगे।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबड़े, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रमणियन की पीठ ने कक्षा 12 के छात्र आदित्य दुबे की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिये। न्यायालय ने इस प्रकरण में उत्तर प्रदेश को भी पक्षकार बनाने का आदेश दिया।पीठ ने कहा कि अदालत द्वारा नियुक्त लोकुर समिति को पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण और हरियाणा, पंजाब व उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव पराली वाले खेतों की निगरानी में सहायता करेंगे। इसके अलावा संबंधित राज्य लोकुर समिति को पर्यावरण सुरक्षा, सचिवालय और परिवहन उपलब्ध करायेंगे। 
समिति प्रत्येक 15 दिन में अपनी रिपोर्ट देगी। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया है कि पंजाब में पराली जलाने से रोकने के लिये जो टीम पहले से काम कर रही है, वह लोकुर समिति से निर्देश प्राप्त कर सकती है। इसके अलावा ईपीसीए समेत इस मामले से जुड़े अधिकारी लोकुर समिति को रिपोर्ट करेंगे। पीठ इस मामले में अगली सुनवाई 26 अक्टूबर को करेगी।
नरवाई या पराली की समस्या का एक बेहतर समाधान सामने आया है। पराली, गेहूं व सोयाबीन के भूसे से अब प्लाई बनायी जा सकेगी।इसे बनाने में कच्चे माल के तौर पर पराली, भूसा या अन्य कृषि अपशिष्ट का 70 प्रतिशत हिस्सा और 30 फीसद पाँलीमर ( रासायनिक पदार्थ) मिलाया जायेगा। भोपाल स्थित काउंसिल आँफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर)- एम्प्री (एडवांस मटेरियल्स एंड प्रोसेस रिसर्च) के डायरेक्टर डाँ अवनीश श्रीवास्तव ने दिनांक 16अक्टूबर 20 को एक वेबिनार में बताया तीन वर्ष के प्रयास के बाद यह तकनीक विकसित की गई है। इस तकनीक के जरिये उत्पादन शुरू करने का लायसेंस भिलाई छत्तीसगढ़ की एक कंपनी को दिया है। यह कंपनी मार्च 21 से उत्पादन करने की तैयारी कर रही है। धान का पुआल एवं गेहूं का भूसा कृषक जलाकर नष्ट कर रहे हैं। इनसे अनेक वायो प्रोडक्ट बनते हैं। इनसे उच्च कोटि का कागज बनता है। आज नुकसान एवं प्राकृतिक आपदा की चिन्ता न कर कृषक जो कार्य कर रहे हैं। वह कार्य उचित नहीं है।               
(नोट-लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष है।)
(लेखक- विजय कुमार जैन)
 

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