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मंडी लोकसभा सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय -भाजपा के सामने है अपनों से लड़ने की भी चुनौती

मंडी लोकसभा सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय  -भाजपा के सामने है अपनों से लड़ने की भी चुनौती

हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा सीट पर स्थानीय पार्टियों के रण में उतरने के कारण हर बार मुकाबला त्रिकोणीय हो जाता है। कहा जाता है कि इस सीट पर जिस भी पार्टी के प्रत्याशी की जीत होती है, वो केंद्र की सत्ता पर आसीन होता है।इस सीट की खास बात ये है कि इस सीट पर कांग्रेस, बीजेपी के अलावा स्थानीय पार्टियों की भी पकड़ मानी जाती है। इस सीट को कांग्रेस का गढ़ कहा जाता था। मंडी लोकसभा सीट के अस्तित्व में आने के बाद अब तक यहां 15 चुनाव हुए हैं और 10 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। यहां 1989 में पहली बार बीजेपी का खाता खुला और महेश्वर सिंह सांसद बने थे, हालांकि 1991 में एक बार फिर कांग्रेस ने वापसी करते हुए जीत हासिल की और सत्ता सुखराम के खाते में आई, इसके बाद 1996 में भी कांग्रेस ने बढ़त बनाई।वहीं, 2009 के चुनाव में कांग्रेस के वीरभद्र सिंह ने जीत दर्ज की।2014 के लोकसभा चुनावों में इस सीट पर कांग्रेस को बीजेपी के हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा और राम स्वरूप सांसद बनें।2014 के परिणाम बेशक बीजेपी के पाले में गए हों, लेकिन 2019 में समीकरण विपरित हैं।इस बार बीजेपी के सामने अपने ही नेताओं के आपसी मतभदों से निपटने की चुनौती है।भाजपा अपने पूर्व ऊर्जा मंत्री अनिल शर्मा से अपने बेटे के प्रति प्रेम को लेकर पार्टी छोड़ने के लिए कह रही है।अपने पिता अनिल शर्मा और दादा पूर्व केंद्रीय दूरसंचार मंत्री सुखराम से वर्षों से राजनीति सीखने वाले कांग्रेस के आश्रय शर्मा मंडी लोकसभा सीट से मैदान में हैं।उन्हें भाजपा सांसद राम स्वरूप शर्मा के खिलाफ खड़ा किया गया है .पिता और पुत्र, पूर्व केंद्रीय दूरसंचार मंत्री सुखराम (91) के राजनीतिक वंश के हैं।ऐसे में भाजपा ने वंशवादी राजनीति के खिलाफ लड़ाई का बिगुल फूंक दिया है।चुनाव प्रचार की अगुवाई कर रहे भाजपा के मुख्यमंत्री ठाकुर मतदाताओं को यह बताना कभी नहीं भूलते कि 'उनके पूर्व कैबिनेट मंत्री अपने पुत्र आश्रय शर्मा से मोह के कारण भाजपा प्रत्याशी रामस्वरूप शर्मा के लिए मंडी में चुनाव प्रचार नहीं कर रहे हैं.' उन्होंने सार्वजनिक सभाओं के दौरान कहा "अगर उन्हें पार्टी में बने रहना है, तो उन्हें पार्टी के लिए वहां से भी प्रचार करना होगा, जहां से उनका बेटा चुनाव लड़ रहा है।" भाजपा महासचिव चंद्र मोहन ठाकुर ने बताया, "अनिल शर्मा को या तो 'पुत्र मोह' से ऊपर उठना चाहिए या उन्हें (पार्टी से) इस्तीफा दे देना चाहिए." मंडी के अपने गढ़ में 'पंडित जी' के नाम से लोकप्रिय छह बार के विधायक और तीन बार के सांसद सुखराम और उनके पोते आश्रय शर्मा ने भाजपा छोड़ने के बाद 25 मार्च को कांग्रेस का दामन थाम लिया। अपने प्रतिद्वंद्वियों पर पलटवार करते हुए राज्य कांग्रेस इकाई के अध्यक्ष कुलदीप राठौड़ ने कहा कि अनिल शर्मा के बेटे को मंडी से मैदान में उतारकर पार्टी भाजपा को गुगली से आउट करने की कोशिश कर रही है। अपने प्रतिद्वंद्वियों पर कटाक्ष करते हुए आश्रय शर्मा ने कहा कि "उनके पिता की आत्मा कांग्रेस में है, भाजपा में केवल उनका शरीर है." कांग्रेस के अभियान के शुरू होने के मौके पर अनिल शर्मा ने घोषणा की थी कि वह अपनी पार्टी के लिए प्रचार करेंगे, लेकिन अपने बेटे के खिलाफ नहीं करेंगे।उन्होंने 12 अप्रैल को मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया लेकिन भाजपा या राज्य विधानसभा से इस्तीफा नहीं दिया।हिमाचल प्रदेश में 19 मई को चार लोकसभा सीटों शिमला (आरक्षित), कांगड़ा, हमीरपुर और मंडी में मतदान होगा। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अनिल शर्मा के बेटे को मनोनीत करने का फैसला सत्तारूढ़ भाजपा को फिसलन भरी विकेट पर धकेलने के लिए कांग्रेस द्वारा किया गया एक चतुराई भरा कदम है।मंडी मुख्यमंत्री ठाकुर का गृह क्षेत्र है।अनिल शर्मा के पिता सुखराम ने मंडी जिले की सभी 10 विधानसभा सीटों को जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

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