आजकल मानसिक संतुलन न होने के कारण छोटी छोटी बातों में बहुत बड़ी घटनाओं को अंजाम दे देते हैं अब लोगों में सहनशीलता का अभाव होने से हत्या आत्महत्या करना आम बात होती जा रही हैं। विगत दिनों एक घटना सामने आयी जिसमे एक युवा ने प्रेम विवाह ३ माह पूर्व किया और अपने परिवार से अलग पति पत्नी के रूप में रह रहे थे अचानक कुछ बात पर युवा ने अपनी पत्नी की कुत्ता को बांधने वाली चेन से गला दबा कर चाकू से हत्या कर स्वयं अपने पिता और बहु के लेकर थाने गए।
तीन माह की शादी में ऐसी कौन सी इतनी गंभीर बात हो गयी की इतना घातक कदम उठाने को मजबूर होना पड़ा।
पहले और आज भी पूरी जिंदगी साथ बिताने वाले ५० -६० से भी अधिक होने पर भी साथ रह रहे हैं। इस सम्बन्ध में एक बात सामने आयी हैं पहले शादी होती थी फिर प्रेम आज पहले प्रेम और उसके बाद शादी। प्रेम का आकर्षण अस्थायी होता हैं। शुरुआत में प्रेम अंधा होता हैं
उस समय सब समर्पण भाव रखते हैं। कुछ दिनों में शरीरिक आकर्षण खतम होने पर मानसिक, आर्थिक, प्रतिष्ठा में अंतर्द्वंद शुरू होता हैं युवा होने पर जोश में होश नहीं रहता हैं अनुभवहीनता के कारण उत्तेजना होना लाज़िमी हैं। सबके अहम टकराते हैं, कोई किसी से कम नै होना चाहते इसका मुख्य कारण धर्म से दूर रहना और किसी गुरु से नियमबद्ध न होना। जबकि प्रेम कुछ शर्तों पर होता हैं जबकि शादी संतुलन पर आधारित हैं। एक दूसरे की बात का आदर करना सीखना चाहिए यहाँ एक बात जरुरी हैं की पुरुषऔर नारी में समानता हैं पर कुछ क्षेत्र ऐसे होते हैं जहाँ पुरुष उम्र में बड़े होने से और अनुभव होने के कारन उसकी बात का आदर दे और कुछ बातों को सुनकर सहनशीलता से उस समय को काटे या काट ले।
दो मनुष्यों की विचार धाराएं कभी एक नहीं हो सकती हैं, दो विपरीत ध्रुव होते हैं, उनमे पटरी बिठाना पड़ती हैं, सम्मान दे, आदर भाव रखे, अनुभव को महत्व दे पर बराबरी का अधिकार के कारण हम किसी से कम नहीं होने से विवाद का रूप किस दिशा में ले जाए कुछ नहीं कहा जा सकता हैं।
इस घटना के बाद न्यायालय से दोषमुक्त होने के बाद हत्या का आरोप तो लगा और उसका दंड भोगना पड़ेगा एक बात विचारणीय हैं की आज युवाओं में इतना दुस्साहस कहाँ से आ रहा दिल्ली में भी सरे आम गोली मार कर एक युवती की हत्या कर दी इसके पीछे लव जिहाद के अलावा तामसिक भोजन, मोबाइल के द्वारा अनैतिक दृश्यों को देखना, काम जन्य रोगों से पीड़ित होना हैं। आहार,,संस्कार वातावरण, परिजन और परिवेश का बहुत प्रभाव पड़ता हैं।। ये सब भौतिक सुख क्षणिक होते हैं और इनका प्रतिफल जिंदगी भर भोगना पड़ता हैं। उत्तेजना में कुछ भी कर लेते हैं पर जिंदगी भर के लिए गुनाहगार बन जाते हैं।
संतुलन, संयम, विवेक का हमेशा ध्यान रखे तभी जीवन सुखद होगा अन्यथा जीवन जीते जी स्वर्गवासी बन जाता हैं।
इसके लिए सात्विक आहार, संयमित धार्मिक जीवन शैली का होना बहुत आवश्यक हैं। इस हेतु आनंद कही अनकही उपन्यास पठनीय हैं।
(लेखक-वैद्य अरविन्द जैन )
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क्षण भर की भूल जिंदगी भर के लिए गुनाहगार बना देती है