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(चिंतन-मनन) जीवन का संघर्ष

(चिंतन-मनन) जीवन का संघर्ष

एक दिन एक व्यक्ति बहुत परेशान लग रहा था। मित्र ने पूछा- क्या बात है? आज इतने परेशान क्यों हो?  
उसने कहा- मैं बहुत मुसीबत में फंस गया हूं।  
मित्र बोला- तुम्हारी क्या मुसीबत हो सकती है? तुम्हारे दोनों लड़के संपन्न हैं। खूब धन कमा रहे हैं। तुम्हें किस बात की कमी है?  
तुम ठीक कहते हो। लड़के संपन्न हैं, पर मेरी मुसीबत उनके कारण ही है। ऍसा क्या हुआ, जो मुसीबत आ गई? मुसीबत बहुत बड़ी है। मैंने लड़कों को पढ़ाया। एक डॉक्टर बन गया और एक वकील। उनका यह व्यवसाय ही मुसीबत का कारण है। 
उनके व्यवसाय से आपकी मुसीबत का लेना-देना क्या है?  
हुआ यह कि एक एक्सीडेंट में मेरे पैर में चोट लग गई, पैर में घाव हो गया। जो डॉक्टर है, वह कह रहा है, पिताजी! घाव को जल्दी ठीक कर लें अन्यथा इसमें रस्सी पड़ जाएगी। हो सकता है फिर पैर काटने के सिवाय कोई विकल्प न रहे। यह तो अच्छी बात है। इसमें मुसीबत का प्रश्न ही कहां है? लेकिन जो वकील है, वह कह रहा है पिताजी! अभी घाव को ठीक नहीं करना है। इसे बढ़ने दें। जब घाव गहरा हो जाएगा, तब मैं दावा करूंगा और पूरा हर्जाना वसूल करूंगा। यही मेरी मुसीबत है। यह जीवन का संघर्ष है, टकराहट है। व्यक्ति दोनों ओर से खिंचा जा रहा है। एक लड़का कहता ठीक कर लें और एक लड़का कह रहा -घाव को और गहरा होने दें। यह जीवन का विचित्र संघर्ष है। इसमें प्रत्येक व्यक्ति जी रहा है और संघर्षो को झेल रहा है। 

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