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संतान की अनहोनी को टालने का व्रत है अहोई! 

संतान की अनहोनी को टालने का व्रत है अहोई! 

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को माताएं अपने वंश के संचालक पुत्र अथवा पुत्री की दीर्घायु व प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए यह व्रत रखती हैं।इस दिन महिलाएं अहोई माता का व्रत रखती हैं और विधि-विधान से पूजा-अर्चना करती हैं। अहोई एक अनहोनी शब्द का अपभ्रंश है। अनहोनी को टालने वाली माता देवी पार्वती हैं,जिसे इस पर्व के कारण अहोई माता भी कहा जाने लगा। इसलिए इस दिन मां पार्वती की पूजा-अर्चना का भी विधान है। अपनी संतानों की दीर्घायु और अनहोनी से रक्षा के लिए महिलाएं ये व्रत रखकर साही माता एवं भगवती पार्वती से आशीष मांगती हैं। अहोई अष्टमी के दिन व्रत रखने से संतान के कष्टों का निवारण होता है एवं उनके जीवन में सुख-समृद्धि व तरक्की आती है। ऐसा माना जाता है कि जिन माताओं की संतान को शारीरिक कष्ट हो, स्वास्थ्य ठीक न रहता हो या बार-बार बीमार पड़ते हों अथवा किसी भी कारण से माता-पिता को अपनी संतान की ओर से चिंता बनी रहती हो तो माता द्वारा विधि-विधान से अहोई माता की पूजा-अर्चना व व्रत करने से संतान को विशेष लाभ होता है।
 अहोई माता का  व्रत रखने और उनकी मनोयोग से पूजा करने से अहोई मां, उपवास रख रही मां व उनकी सन्तान को लम्बी उम्र का आशीर्वाद देती हैं। संतान की सलामती से जुड़े इस व्रत का बहुत महत्व है। साथ ही इस दिन की पूजा को विशेष पूजा भी कहा जा सकता है। आइए आपको बताते हैं इस साल अहोई अष्टमी कब पड़ रही है और क्या है इसका शुभ मुहूर्त।
अहोई अष्टमी का त्योहार 8 नवम्बर को पड़ रहा है। अहोई अष्टमी को कालाष्टमी भी कहते हैं। इस दिन मथुरा के राधा कुंड में लाखों श्रद्धालु स्नान करने के लिए पहुंचते हैं। अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद  और दिवाली से आठ दिन पहले रखा जाता है। अहोई अष्टमी इस बार 8 नवंबर,दिन रविवार को मनाया जा रहा है।इस पर्व पर माताएं अपने पुत्र अथवा पुत्री की लंबी आयु और सुख समृद्धि के लिए व्रत रखती है।  अहोई अष्टमी का व्रत रखने से संतान के सभी कष्ट दूर होते हैं और उसका कल्याण होता है।संतान की रक्षा के लिए इस दिन विधि-विधान के साथ अहोई माता की पूजा-अर्चना की जाती है।
 8 नवंबर को सूर्योदय से लेकर रात में 1:36 तक अष्टमी तिथि प्रभाव में रहेगी।इस पर्व में  चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी का  विशेष महत्त्व है ,इसलिए अष्टमी तिथि में चन्द्रोदय रात में 11 बजकर 39 मिनट पर होगा।माताएं अपनी सास के चरणों को छूकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करती है।माताएं सास या फिर जो भी घर मे बड़ा हो,को बायना देती है।
अहोई माता की पूजा की तैयारी
 घर मे पूजा स्थान की दीवार पर गेरू और चावल से अहोई माता यानी कि मां पार्वती और स्याहु व उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं।इसके लिए बाजार में मिलने वाले अहोई माता के चित्र का उपयोग भी कर सकती हैं। रात के समय सितारों को जल से अर्घ्य दें और फिर ही उपवास को पूरा करें।
इस दिन अहोई माता की पूजा की जाती है। अहोई अष्टमी का व्रत महिलाएं अपनी संतानों की लंबी आयु के लिए रखती हैं। कुछ महिलाएं इस व्रत को संतान प्राप्ति के लिए भी करती हैं। यह व्रत दिनभर निर्जल रहकर किया जाता है। अहोई माता का पूजन करने के लिए महिलाएं तड़के उठकर मंदिर में जाती हैं और वहीं पर पूजा के साथ व्रत प्रारंभ होता है। यह व्रत चंद्र दर्शन के बाद ही खोला जाता है। 
महिलाएं इस दिन सायंकाल भक्ति-भावना के साथ दीवार पर अहोई की पुतली रंग भरकर बनाती हैं। उसी पुतली के पास सेई व सेई के बच्चे भी बनाती हैं। आजकल बाजार से अहोई के बने रंगीन चित्र कागज भी मिलते हैं जिनको लाकर उनकी पूजा की जा सकती है। कुछ महिलाएं पूजा के लिए चांदी की एक अहोई भी बनाती हैं, जिसे स्याऊ कहते हैं और उसमें चांदी के दो मोती डालकर विशेष पूजन किया जाता है।
तारे निकलने के बाद अहोई माता की पूजा प्रारंभ होती है। पूजन से पहले जमीन को स्वच्छ करके, पूजा का चौक पूरकर, एक लोटे में जलकर उसे कलश की भांति चौकी के एक कोने पर रख ते हैं और फिर भक्ति भाव से पूजा करते हैं। साथ ही अहोई अष्टमी की व्रत कथा का श्रद्धा भाव से श्रवण किया जाता है।
कथा, पूजन और आरती के बाद माता को हलवा, पूड़ी और चना चढ़ाया जाता है। कुछ परिवारों में माता को पानी के साथ दूध और कच्चा चावल चढ़ाते हैं।
 अहोई कथा
  एक साहूकार के 7 बेटे थे और एक बेटी थी। साहुकार ने अपने सातों बेटों और एक बेटी की शादी कर दी थी. अब उसके घर में सात बेटों के साथ सातबहुंएं भी थीं।
साहुकार की बेटी दिवाली पर अपने ससुराल से मायके आई थी. दिवाली पर घर को लीपना था, इसलिए सारी बहुएं जंगल से मिट्टी लेने गईं. ये देखकरससुराल से मायके आई साहुकार की बेटी भी उनके साथ चल दी।
 साहूकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी, उस स्थान पर स्याहु (अहोई) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटीकी खुरपी के चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया। इस पर क्रोधित होकर स्याहु ने कहा कि मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।
स्याहु के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें. सबसे छोटीभाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है. इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं, वे सात दिन बाद मर जाते हैं सात पुत्रोंकी इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा. पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।
सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और छोटी बहु से पूछती है कि तू किस लिए मेरी इतनी सेवा कर रही है और वह उससे क्या चाहती है? जो कुछ तेरीइच्छा हो वह मुझ से मांग ले. साहूकार की बहु ने कहा कि स्याहु माता ने मेरी कोख बांध दी है जिससे मेरे बच्चे नहीं बचते हैं. यदि आप मेरी कोख खुलवा देतो मैं आपका उपकार मानूंगी. गाय माता ने उसकी बात मान ली और उसे साथ लेकर सात समुद्र पार स्याहु माता के पास ले चली।
रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं. अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनीके बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है. इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहूने उसके बच्चे को मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है।
छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है।
वहां छोटी बहू स्याहु की भी सेवा करती है. स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का आशीर्वाद देती है। स्याहु छोटीबहू को सात पुत्र और सात पुत्रवधुओं का आर्शीवाद देती है। और कहती है कि घर जाने पर तू अहोई माता का उद्यापन करना।  उसने घर लौट कर देखा तो उसके सात बेटे और सात बहुएं बेटी हुई मिली। वह ख़ुशी के मारे भाव-भिवोर हो गई। इस कथा के प्रति माताओ में अटूट आस्था है तभी तो वे इस कथा को बड़े मनोयोग से सुनकर अहोई का उपवास पूरा रखती है और पूजा अर्चना कर सन्तान की खुशहाली की कामना करती है।।साहित्यकार श्रीगोपाल नारसन की ये पंक्तियां अहोई पर्व पर सार्थक है,
मां के लिए संतान ही
उसकी होती जान
संतान की खातिर 
मां दे सकती अपनी भी जान
जन्म देती जब संतान को
मां का दूसरा जन्म जान
खुद गीले में संतान सूखे में
सो जाती मां महान
इस संसार की अदभुत दौलत
मां होती लौकिक भगवान
संतान रक्षा के लिए
मां का अहोई व्रत महान।
(लेखिका- सुनीता पुंडरीक )

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