बच्चों के किशोरावस्था में पहुंचने के समय अभिभावकों की जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है क्योंकि यही वह समय है जब वह सही राह पर चले तो भविष्य सुखमय होता है जबकि अगर उनके कदम भटके तो पछताने के सिवा कुछ हाथ नहीं आता।
ऐसे में अभिभावकों का फर्ज है कि वह बच्चों का मार्गदर्शन करते रहे और अपने अनुभवों को उनसे साझा करें। इसके लिए अभिभावकों का उनका दोस्त बनकर पेश आना होगा तभी बच्चे अपने मन की बात और परेशानियां उनसे साझा कर पायेंगे। आजकल मोबाइल और इंटरनेट के जरिये किशोर बच्चों को हर प्रकार की जानकारी मिल जाती है। इस कारण वह मोबाइल में व्यस्त रहते हैं और उन्हें किसी प्रकार की भी रोक-टोक अच्छी नहीं लगती। वहीं अगर आप कुछ बातों का ध्यान रखें तो उनके साथ दोस्त के तौर पर रह सकते हैं। इस दौरान वह आपसे अपनी परेशानियां भी बताएंगे।
घर में रखें अच्छा माहौल
दोस्ती बनाए रखने के लिए उनके सामने खुद पारदर्शी बने रहें। अगर कोई गलती हो जाए तो बच्चों से इसके लिए माफी मांगने में भी कोई बुराई नहीं है। घर में अच्छा वातावरण बना रहेगा तो बच्चे आपके करीब आ जाएंगे।
आजादी भी दें
हर बात के लिए बच्चें पर नियम लागू करना भी ठीक नहीं है। बच्चा कुछ भी करें उससे वकीलों की तरह हर बार सवाल न करें। ऐसा करने से किशोर उम्र के बच्चे दबाव महसूस करते हैं। बच्चे को थोड़ा स्पेस भी दें। अगर उनकी किसी बात को लेकर आपको चिंता महसूस होती है तो उनसे बात करें।
समय दें
अगर आप यह सोच रहे हैं कि चिंता सिर्फ बड़ो को ही होती है तो आप गलत भी हो सकते हैं। बच्चे भी बहुत बातों को लेकर परेशान हो जाते हैं। आप उनकी उपेक्षा करेंगे तो वह अकेले पड़ जाएंगे। आपसे दूरी बना लेंगे। किशोर उम्र के पड़ाव में बच्चो को आपकी ज्यादा जरूरत होती है, इसलिए उन्हें समय देना बहुत जरूरी है। कभी-कभी उनके साथ ट्रिप का प्लान भी करें। कुकिंग, गार्डनिंग, पिकनिक, आउटिंग आदि के जरिए आप उनके करीब आ सकते हैं।
विश्वास जगाएं
मां-बाप होने के नाते बचपन से ही बच्चे के मन में इस बात का विश्वास जगाएं कि आप उनके सबसे बड़े राजदार हैं। जो बात बच्चा आपसे कर रहा हैं, उसके अपने तक बना कर रखें पर बच्चे को सही रास्ता भी दिखाएं। जिससे वह अपना डर आपसे आसानी से साझा कर लेगा और आप भी उसके राज जान पाएंगे।
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किशोर उम्र के बच्चों को इस प्रकार दें सही दिशा