नई दिल्ली ।एक बेटी को पिता का प्यार तो मिला ही नहीं, अब पिता उसकी जिम्मेदारी उठाने में भी बहाने बना रहा है। अदालत ने पिता की इस मानसिकता पर अफसोस जाहिर किया है। अदालत ने कहा है कि तब पति-पत्नी के बीच आपसी विवाद था तो पति ने बेटे को ही साथ रखने के लिए क्यों चुना। बेटी को मां के पास छोड़ दिया। अदालत ने 21 वीं सदी में बेटा-बेटी में भेद करने की सोच को समाज की मानसिकता पर धब्बा करार दिया है। रोहिणी स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश स्वर्णकांता शर्मा की अदालत ने इस मामले में पति व पत्नी द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ दाखिल याचिका का निपटारा करते हुए यह टिप्पणी की। अदालत ने इस मामले में पति को आड़े हाथों लिया है और कहा है कि कोविड-19 व मंदी के इस दौर में वह खुद दो महंगी कारें चला सकता है। लेकिन पत्नी व बेटी को गुजाराभत्ता देने में उसका कारोबार ठप हो गया। वह अपनी बेटी के लिए गु़जाराभत्ते के तौर पर 20 हजार रुपये देने में असमर्थता दिखा रहा है और अदालत में इस रकम को कम करने के लिए आग्रह लेकर आया है। उसका आयकर व संपति संबंधी ब्योरा बताता है कि वह एक शानदार जगह पर ऐशो-आराम की जिंदगी अपने बेटे के साथ जी रहा है। लेकिन बेटी की गुजर-बसर का खर्च देने के लिए उसका कारोबार ठप हो गया है और वह पाई-पाई को मोहताज हो गया है। लेकिन अदालत भी आया है तो महंगी कार से। अदालत ने कहा कि यह बेहद शर्मनाक है। अदालत ने इस व्यक्ति को आदेश दिया है कि वह बेटी व पत्नी को गुजाराभत्ते के तौर पर 20-20 हजार रुपये प्रतिमाह भुगतान करें। इस मामले में अदालत ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी पत्नी पर भी की। अदालत ने कहा कि रिकार्ड बताते हैं कि महिला उच्च शिक्षित है और शादी से पहले वह एक कंपनी चलाती थी। इसके अलावा वह कारोबार में भी माहिर है। अदालत ने कहा कि बेशक उसका खर्च उठाने की जिम्मेदारी पति की है। यदि वह योग्य है तो उसे अपनी काबिलियत को जाया नहीं जाने देना चाहिए। उसे नौकरी तलाशनी चाहिए। अगर किसी कारोबार में रुचि है और धन की व्यवस्था है तो वह भी कर सकती है। लेकिन बेमतलब के झगड़े में योग्यता को खराब न करें। बेटी भी अब समझदार हो चुकी है। इस दंपति की शादी को 18 साल हो गए हैं। इनके दोनों बच्चे बालिग होने के बेहद करीब हैं। बेटा जहां 16 साल का है। वहीं बेटी भी 15 साल की है। ऐसे में माता-पिता के विवाद और व्यवहार का बच्चों के भविष्य पर प्रभाव पड़ेगा। इस मामले में पत्नी ने पति के खिलाफ अदालत में घरेलू हिंसा का मुकदमा दायर किया हुआ है। निचली अदालत ने इस मामले में मां और बेटी के लिए 20-20 हजार रुपये का गुजाराभत्ता रकम तय की थी। लेकिन पति ने 40 हजार रुपये का गुजाराभत्ता देने में अपने असमर्थता दिखाते हुए सत्र अदालत में याचिका दायर की थी। परन्तु सत्र अदालत ने निचली अदालत के निर्णय को उचित बताया।
लीगल
21वीं सदी में भी बेटा-बेटी का भेद हमारी मानसिकता पर धब्बा: अदालत