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बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में कांग्रेस की जीत का सेहरा या हार का ठीकरा

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में कांग्रेस की जीत का सेहरा या हार का ठीकरा

नई दिल्ली ।बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में इस बार चुनाव के दौरान प्रदेश कांग्रेस की कमान पूरी तरह राष्ट्रीय नेताओं के हाथों में रही। दिल्ली से आये नेताओं ने पूरी पार्टी को ऐसा संभाला कि प्रदेश के नेताओं की टीम कहीं दिखी ही नहीं। रिसर्च विंग से लेकर पार्टी के कई बड़े नेता बिहार में ही या तो कैम्प किये रहे या फिर आते-जाते रहे। लिहाजा परिणाम आया तो जीत का सेहरा जहां उनके मत्थे होगा तो हार का ठीकरा भी वहीं फूटेगा। प्रदेश के नेताओं को हाई कमान के पास कोई दलील पेश करने की जरूरत नहीं होगी। बिहार कांग्रेस का यह पहला चुनाव है, जिसमें टिकट बंटवारे के अलावा प्रदेश के नेताओं की कोई बड़ी भूमिका नहीं दिखी। राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पूरी कमान खुद संभाल रखी थी। सोशल मीडिया की कमान रोहन गुप्ता के हवाले थी। मीडिया प्रबंधन की जिम्मेवारी राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेडा ने संभाल रखी थी। हालांकि इस काम में पार्टी ने प्रेमचन्द मिश्रा को भी लगाया था। लेकिन, बिना सुरजेवाला की मंजूरी के कोई बात मीडिया तक नहीं पहुंचे, इसकी व्यवस्था पार्टी की राष्ट्रीय टीम ने कर रखी थी। सुरजेवाला पूरे चुनाव बिहार से हिले तक नहीं। इसीके साथ प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा अपने चुनाव में तो विधायक दल के नेता सदानंद सिंह अपने पुत्र के चुनाव तक ही सिमटे रहे। उम्मीदवारों के चयन का जिम्मा प्रदेश की टीम को मिला तो वर्चस्व की लड़ाई सामने आ गई। पहले चरण के उम्मीदवारों के नामों की घोषणा होते ही पार्टी के कई नेता प्रदेश अध्यक्ष श्री झा और अभियान समिति के अध्यक्ष डा. अखिलेश सिंह से लेकर बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल तक पर आरोप लगाने लगे। नतीजा हुआ कि कुछ सीटों पर पार्टी हाईकमान को फिर से विचार करना पड़ा। लिहाजा सीट बंटवारे का काम खत्म होते ही दिल्ली की पूरी टीम बिहार में कैम्प कर गई। रिसर्च टीम ने सगुना मोड पर बड़ा वार रूम बना लिया। वहां लगभग सौ से अधिक तकनीकी विशेषज्ञों की टीम लगी रही। पार्टी मुख्यालय में हर रोज नये वीडियो बनाये जा रहे थे। नये नारे गढ़े जा रहे हैं। पार्टी के नेता प्रेसवार्ता में भी बोलते कम हैं। उनकी कोशिश होती है छोटी-छोटी फिल्में दिखकर अपनी बातों को सामने वाले के दिल में उतार दें। यही प्रयास चुनावी सभाओं में होता रहा। अब नेता दिल्ली के थे तो प्रचार का रंग भी अनूठा था। 
 

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