सरकार मूल्य नियंत्रण के दायरे में आने वाली दवाओं के दाम तय करने के लिए नया फॉर्म्यूला लाने पर विचार कर रही है। माना जा रहा है कि मौजूदा फॉर्म्यूले से दवाओं के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं। मौजूदा प्रणाली में दवाओं के दाम तय करने के लिए बनाए गए फॉर्म्यूले का इसे बनाए जाने के समय से ही विरोध हो रहा है। गौरतलब है कि वर्ष 2013 से पहले दवा की लागत के हिसाब से उसका दाम तय किया जाता था। जानकारी के मुताबिक सरकार एक बार फिर दवा की लागत के हिसाब से उसके दाम तय करने पर विचार कर रही है। अगर ऐसा होता है तो मूल्य नियंत्रण के दायरे में आने वाली दवाओं के दाम कम हो सकते हैं। दवाओं के दाम तय करने का मौजूदा सिस्टम 2013 के ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर के जरिए वजूद में आया था। इसका मकसद आम जनता को वाजिब दाम पर जरूरी दवाएं मुहैया कराना था। इस फॉर्म्यूले के मुताबिक मूल्य नियंत्रण के दायरे में आने वाली किसी भी कंपनी की दवा की बाजार में एक फीसदी हिस्सेदारी जरूरी है। ऐसी दवा को बनाने वाली हर कंपनी की दवा के दामों का औसत निकाला जाता है और फिर उसके हिसाब से कीमत तय की जाती है। हर साल इसमें 10 फीसदी की बढ़ोतरी की जा सकती है। इससे दवाओं के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं।