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 दिल्लीवासियों के लिए अस्पतालों में 80 फीसद आइसीयू बेड रहेगा आरक्षितः हाई कोर्ट

 दिल्लीवासियों के लिए अस्पतालों में 80 फीसद आइसीयू बेड रहेगा आरक्षितः हाई कोर्ट

नई दिल्ली । दिल्ली हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी के 33 निजी अस्पतालों में 80 फीसद आइसीयू बेड कोरोना मरीजों के लिए आरक्षित करने का रास्ता साफ कर दिया है। न्यायमूर्ति हिमा कोहली व न्यायमूर्ति एस प्रसाद की पीठ ने बेड आरक्षित करने के दिल्ली सरकार के फैसले पर रोक लगाने के एकल पीठ के फैसले को हटा दिया है। एकल पीठ ने 22 सितंबर को दिल्ली सरकार की इस बाबत अधिसूचना पर रोक लगा दी थी। दिल्ली सरकार की चुनौती याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि कोरोना मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है और जिस समय एकल पीठ ने बेड आरक्षित करने के फैसले पर रोक लगाई थी उस समय परिस्थिति अलग थी। जबकि वर्तमान में अलग परिस्थिति है। ऐसे में आइसीयू बेड आरक्षित करने के आदेश पर लगी रोक को हटाया जाता है। पीठ ने एकल पीठ ने 26 नवंबर को होने वाली अगली सुनवाई तक के लिए लगाई थी और इसे 26 नवंबर तक के लिए हटाया गया है। पीठ ने साथ ही दिल्ली सरकार से कहा कि वह एकल पीठ के समक्ष अतिरिक्त हलफनामा दाखिल कर बताए कि स्थिति इतनी खराब क्यों हुई और वर्तमान स्थिति क्या है। पीठ ने स्पष्ट किया कि गंभीर मरीज किसी भी निजी अस्पताल में भर्ती होने के लिए स्वतंत्र है, जहां भी बेड खाली हो। पीठ ने कहा कि परिस्थिति को देखते हुए बेड आरक्षित रखने को लेकर बने नियम में छूट देने के लिए नोडल अधिकारी स्वतंत्र हैं। पीठ ने दिल्ली सरकार से सुनवाई के दौरान पूछा कि आखिर दिल्ली के सिर्फ 33 अस्पतालों के आइसीयू बेड को ही क्यों आरक्षित किया है। पीठ ने पूछा अन्य अस्पतालों काे आरक्षित क्यों नहीं किया गया। इस पर सरकार की तरफ से अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल संजय जैन ने जवाब दिया कि इन अस्पतालों में 2217 आइसीयू बेड है और सुविधाएं भी अन्य अस्पतालों से बेहतर हैं। वहीं, शेष 82 अस्पतालों में इतनी सुविधाएं नहीं है और वहां मरीजों को अलग अलग करने की व्यवस्था नहीं है। एकल पीठ ने दिल्ली सरकार की चुनौती याचिका पर 28 सितंबर को एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। एकल पीठ ने हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स की याचिका पर 22 सितंबर को 33 निजी अस्पतालों के 80 फीसद आइसीयू बेड कोरोना मरीजों के लिए आरक्षित रखने के दिल्ली सरकार के आदेश पर रोक लगा दी थी। 22 सितंबर को न्यायमूर्ति नवीन चावला की एकल पीठ ने सरकार के आदेश को अवैध, मनमाना व अनुचित करार देते हुए इसे लोगों के मौलिक अधिकार का हनन बताया था। दिल्ली सरकार की तरफ से आदेश 12 सितंबर को जारी किया गया था। दिल्ली सरकार के इस आदेश को एसोसिएशन ऑफ हेल्थ केयर प्रोवाइडर्स ने चुनौती दी थी।
 

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