अविपित्तकर चूर्ण पेट की कई बीमारियों को दूर करती है। कब्ज से लेकर पेट के अल्सर और एसिडिटी तक सभी समस्याओं को दूर कर राहत प्रदान करती हैं। आजकल की आपाधापी वाली जिंदगी में समय से खाना न खाने से ,ताली मिर्च मसालेदार चीज़े खाने से ,पिज़्ज़ा बेर्गेर ,मैदा की सामग्री खाने से पेट सम्बन्धी रोग सामान्य होते हैं। रोग सामान्य होते हैं पर उपद्रव बहुत हानिकारक होते हैं। इस सम्नब्ध में कहा जाता हैं की यदि आपने समय पर खाना नहीं खाया तो फिर आपका कमाना व्यर्थ हैं ,क्योकि पेट जन्य रोग होने से उचित मात्र में आहार नहीं कर सकते हैं।
पेट को सही रखना किसी बड़े कार्य की तरह होता है। आज के समय में यदि पूरे महीने किसी व्यक्ति का पेट ठीक रह जाए तो उसके लिए यह किसी पुरूस्कार की तरह होता है। क्योंकि हमारा जीवन शैली और खान-पान इस हद तक बदल चुका है कि कब्ज, गैस, अपच, अल्सर, एसिडिटी जैसी समस्याएं बहुत ही सामान्य हो चुकी हैं।आयुर्वेदिक औषधि अविपित्तकर चूर्ण पर आंखमूंदकर भरोसा कर सकते हैं। क्योंकि यह चूर्ण इन सभी बीमारियों का कारगर उपचार है। साथ ही इसके किसी तरह के साइट-इफेक्ट्स भी देखने को नहीं मिलते हैं।
-पाचन को दुरुस्त बनानेवाली अवित्तिकर चूर्ण को बनाने में आंवला, हरड़, पिप्पली, त्रिफला, अदरक, तेज पत्ता, त्रिकटु इत्यादि जड़ी बूटियों को मिलाकर तैयार की जाती है।
-इन सभी औषधियों के अपने-अपने विशेष गुण हैं। लेकिन एक गुण इन सभी में पाया जाता है, वह रेचक गुण। रेचक यानी शरीर से अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालकर पाचनतंत्र को साफ करने का गुण। साथ ही शरीर की अवशोषण क्षमता बढ़ाने का गुण।
-यानी इन औषधियों के सेवन से हमारे शरीर की उन पोषक तत्वों को सोखने की क्षमता बढ़ जाती है, जो हमें भोजन द्वारा प्राप्त होते हैं। यदि शरीर में अपशिष्ट पदार्थ जमा होते रहते हैं तो ताजा भोजन के पाचन से प्राप्त पोषक तत्वों को हमारा शरीर सही प्रकार से सोख नहीं पाता है।
-इस स्थिति में हम पौष्टिक भोजन खाते तो जरूर हैं लेकिन उसका पूरा सत्व हमारे शरीर को प्राप्त नहीं हो पाता है। इसलिए शरीर में कमजोरी और कुपोषण बढ़ने लगता है।
-कई बीमारियों के अलावा अवित्तिकर चूर्ण आंतों के इंफेक्शन,आंतों की सूजन,- आंत के अल्स- सीने की जलन- पेट में एसिड बनने की समस्या- पेट फूलना-मितली आने की समस्या- भूख ना लगना-पॉटी ठीक से ना होना- गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिजीज इत्यादि को भी ठीक करती है।
अविपत्तिकर चूर्ण खाने की विधि
-अविपत्तिकर चूर्ण को खाना खाने के बाद हल्के गुनगुने पानी के साथ सेवन किया जाता है। अब यह आपकी समस्या के ऊपर निर्भर करता है कि आपको खाने में किस तरह की चीजें खानी चाहिए और कितनी मात्रा में इस चूर्ण का सेवन करना चाहिए।
पेट में नाभि के ऊपर के हिस्से में दर्द होने पर आपको द्रवीय आहार लेनी चाहिए और उसके बाद इस चूर्ण को आधा चम्मच लेकर गुनगुने पानी के साथ खाना चाहिए।
-वहीं, पेट के निचले हिस्से में दर्द होने पर आपको मूंग दाल की खिचड़ी, मूंग-मसूर की दाल में भिगोकर रोटी खाना, तुरई या लौकी की सब्जी इत्यादि खाने के बाद इस चूर्ण का सेवन करना चाहिए। आप इस चूर्ण को दिन में तीन बार भोजन के बाद उपयोग कर
सकते हैं।
इसके लिए सबसे जरूरी हैं नियमित समय पर खाना खाना चाहिए। दूसरा कच्चा नारियल ,पेठा ,सौफ भी लाभकारी होता हैं। अधिक चिंता के कारण भी अम्लपित्त रोग होता हैं।
अनियमितता भी नियमित हो तो भी ठीक हैं। अपना भविष्य सुरक्षित रखने के लिए नियमितता जरूरी हैं अन्यथा आप जीवन में आहार नहीं कर पाएंगे कमाए धन का उपभोग नहीं कर सकेंगे।
(वैद्य अरविन्द प्रेमचंद जैन)
आरोग्य
अविपित्तकर चूर्ण--बीमारियों का आयुर्वेदिक उपचार