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परिवार वाद से प्रधानमंत्री को अधिक लाभ  ?- ) (परिवार न होने का दुःख या सुख) 

परिवार वाद से प्रधानमंत्री को अधिक लाभ  ?- ) (परिवार न होने का दुःख या सुख) 

इतिहास परिवारवाद से भरा पड़ा हैं। राजशाही में तो यह परम्परा रही हैं प्रजातंत्र में भी कई परिवार भारत जैसे देश में जिन्होंने स्वंत्रता संग्राम में बढ़चढ़ कर भाग लिया उन्होंने स्वतंत्रता के बाद मंत्री बने और उस पद से होने वाले लाभों से उनकी संतानों को लाभ मिला। यह क्रम चलता हैं और रहेगा।
जिनकी दूकान बहुत पुरानी होती हैं उसकी व्यापार ,समाज में इज़्ज़त होती हैं ,उसकी शाख रहती है। वैसे नगरवधुएं हमेशा सधवा स्त्री से ईर्ष्या करती हैं।  कही यह बात प्रधान मंत्री पर तो लागु नहीं होती। वैसे उनकी पार्टी में वरिष्ठ पदों परकुआरें  लोग रहते हैं तब उनका कोई परिवार नहीं होता। होता भी हैं जैसे  एन डी तिवारी जैसे लोग बाद में उजागर होते हैं। वैसे उनके संघ में अधिकांश लोग परिवार विहीन रहते हैं और बाद में अन्य पार्टियों पर दोषारोपण करे की वंशवाद /परिवार वाद से देश छुटकारा नहीं पा पा रहा हैं। इसका क्या इलाज़ हैं। वैसे उनकी पार्टी में भी अनेकों नेता ऐसे हैं जिनकी दो दो पीढ़ियां नेता गिरी कर रही हैं। जिनका व्यवसाय जो होगा वही करेंगे।
पहले राजनीती सेवा थी अब व्यवसाय हो गया। और यह ऐसा जंगल हैं जिसमे शेर को एक बार मानव रक्त का स्वाद लग गया फिर वह घास फुस नहीं खाता। चाहे मंत्री ,विधायक ,सांसद ,जिला पंचायत आदि कोई भी प्रभावशाली पद मिल गया और वहां पर मात्र एक हस्ताक्षर से अनंत राशि मिल जाती हैं तो कौन श्रमदान करेगा। एक बार पदासीन होने पर दो तीन पीढ़ी चिंतारहित हो जाती हैं ,वे दूसरों को तनाव देने पर्याप्त होते हैं।
परिवार वाद को विलीन करना हैं तो चुनाव में हराओ। यदि जनता उनको स्वीकार करती हैं तब कोई कुछ नहीं कर सकता। पर यह रोग असाध्य रोग हैं। परिवारवाद एक प्रकार से अमीबा रोग हैं वह गुणित होता है। एक बार एक परिवार से कोई राजनीती में आ गया तो उसके जीवाणु मरते /नष्ट नहीं होते ,हाँ कोई कपूत निकल जाय और वह काबिल नहीं निकला या कोई मृत्यु को प्राप्त हो गया तब समझो वंशवाद समाप्त होगा अन्यथा राजनीती का कीड़ा कोरोना जैसा हैं अदृश्य होता हैं और उसका अभी तक कोई पक्का इलाज़ मिला।
प्रधान मंत्री को पहले अपने खेमे में देखना चाहिए की कौन युध्य वीर की संतानें अभी विधायक सांसद और मंत्री हैं। आप किसी का व्यापार बंद नहीं कर सकते। हर का एक उत्तराधिकारी होता हैं ,आपका नहीं हैं तो कोई क्या कर सकता हैं ? इससे देश की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता। आपको उनका शुक्रगुजार या अहसान मंद होना चाहिए जिससे आप विजयी हो रहे हैं।
किसी में यदि बुराई देख रहे हो
आप स्व चिंतन करे
आप भी या आपके पिच्छलग्गू
उसी परम्परा पर तो नहीं चल रहे।
स्व प्रशंसा और पर निंदा करने से
कुछ होने  वाला नहीं हैं  
लेखक-वैद्य  अरविन्द प्रेमचंद जैन

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