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हम नहीं सुधरेंगे - फाटकों एवं आबादी द्वारा प्रदुषण में योगदान 

हम नहीं सुधरेंगे - फाटकों एवं आबादी द्वारा प्रदुषण में योगदान 

हम कैसे अपेक्षा रखे भारतीयों से कि वे अनुशासन में रहेंगे ?जब बच्चा ६ माह का होता हैं उस समय जब वह कुढ्ढने लगता हैं उस समय से वह अवज्ञाकारी होने लगते हैं। आप उसे यहाँ बुलाओ तो वे वहां जाते हैं। उसके बाद चलना फिरना शुरू। मोबाइल और टी वी संस्कृति के कारण बच्चों को भी बहुत छोटे समय से हर त्यौहार कि उमंग होने से उसको मनाना चाहते हैं। स्वाभाविक हैं क्योकि हम उस अवस्था से गुजर चुके और उनका पहला पहला अनुभव होगा जैसे होली में रंग खेलना, राखी में राखी बंधवाना या बांधना। इसी प्रकार दीवाली में उनको फुलझड़ी, बम, राकेट आदि का शौक रहता ही हैं। जब पडोसी फोड़ेंगे तब वे अपने आप से कब मुक्त हो सकेंगे। यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया हैं जो संभवतः अंतहीन होगा।
भारत वर्ष में कम से कम २० करोड़ ऐसी आबादी हैं जो बच्चे और युवा हैं उनमे ललक रहती हैं। उनके सामने प्रदुषण, गरीबी, मज़बूरी की कोई परिभाषा नहीं होती। हर माँ बाप उनके शौक के लिए कुछ तो मनोरंजन करेंगे। यह अनवरत क्रम चलने वाला हैं। जब वे प्रौढ़ होंगे तब उनकी समय के अनुसार समझ बढ़ती हैं तब वे उनके प्रति सजक और उदासीन होने लगते हैं। फिर उसके बाद उनके बच्चे होंगे तब वही प्रक्रिया अपनाई जाएंगी।
इसीलिए सरकार द्वारा प्रतिबन्ध के बावजूद भी पटाखा फोड़ने वाले कम नहीं हो सकेंगे। इसके अलावा हमारे देश में चीन से आने वाले पटाखें आना बंद नहीं हुए। इसके लिए आवश्यक हैं की शुरुआत से चीन के पटाखों के आयात पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगाए और इस सम्बन्घ में शिक्षा काल से जागरूकता लाना होंगी की हमें चीन से आयातित सामग्री का बहिष्कार करना चाहिए। और स्वदेशी सामान का अघिकतम उपयोग करे।
प्रदुषण का रोकना बहुत कठिन कार्य हैं। इसी प्रकार आबादी नियंत्रण करना भी बहुत अशक्य कार्य हैं। कारण हमारा देश में प्रजातंत्र होने से स्वच्छंता होने से हर प्रकार की आज़ादी होने से कोई नियमों का पालन संभव नहीं हैं। पर एक समाज द्वारा यदि उन्होंने यदि कोई घोषणा कर दी तब वह समुदाय बिना चिल्ल पौ उस आदेश का पालन करते हैं जबकि बहुसंख्यक समाज हमेशा नियमों को तोड़ते हैं कारण बहुसंख्यक समाज में बहुत अधिक मठाधीश हैं और सब अपने आप में श्रेष्ठ हैं पर उनका प्रभाव शून्य होने से कोई भी आदेश मान्य नहीं करते हैं, जबकि अल्प संख्यक के स्थानीय समाज प्रमुख का आदेश मान्य होता हैं।
प्रदुषण और आबादी नियंत्रण व्यक्तिगत समस्या नहीं हैं बल्कि सामाजिक और देश व्यापी समस्या हैं जिसका निराकरण सबको मिलकर करना होगा। जब व्यक्तिगत समस्या के दुष्परिणाम व्यक्तिगत भोगना पड़ते हैं तब न समाज, न सरकारें मदद करती हैं और हमारे प्राण खतरे में होने से स्वयं भोगना पड़ता हैं।
आगामी वर्ष में भुखमरी का प्रभाव पड़ना हैं, इसके लिए आबादी नियंत्रण भी जरुरी हैं प्रदुषण और आबादी समस्या समान हैं, इसमें बहुत अधिक मनमानी करने से स्वयं को नहीं समाज और देश को भोगना पड़ता हैं क्यों नहीं हम अपने नेता, सामाजिक नेताओ के आदेशों का पालन करने में हिचकिताते हैं।
(लेखक - वैद्य अरविन्द जैन)
 

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