भारत मे जनसंख्या वृद्धि मे अशिक्षित ,पिछड़ा और निर्धन वर्ग ज्यादा दोषी है जिसमे सभी धर्मो और जातियॉ के लोग शामिल है ,जो लोग शिक्षित और जागरूक है वह अपने बच्चो की बेहतर परवरिश के प्रति चिंतित रहते हैं।
.जनसँख्या नियंत्रण जबसे सम्प्रदायगत होने से वह विवादित होता जा रहा हैं। एक संप्रदाय देश के निवासी होते हुए भी अपनी आबादी की वृद्धि में विश्वास रखते हैं। यह नियोजित हैं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक इसका स्वरूप हो गया। इससे किसी को लाभ नहीं हैं। यदि हम भारत के नागरिक हैं तो हमें संविधान पर पूरा भरोसा करते हुए उसके विकास पर योगदान देना चाहिए। कुछ लोग अपनी समाज को बरगलाकर स्वयं शाही जीवनयापन कर रहे और अपने पिच्छलग्गुओं को गरीबी ,आभाव ,मूलभूत अशिक्षा ,मूलभूत सुविधाएँ से वंचित रखना और धर्म के नाम पर उनके दिमागों में कीटाणु डालकर अपनी राजनीती कर रहे हैं और वे दूरगामी दृष्टिकोण रखकर किया जा रहा हैं। आबादी बढ़ने पर स्वयं को राष्ट्र के रूप में बनाएंगे। जो संभव नहीं हैं पर सम्प्रदायों में विवाद पैदा करके अपने अस्तित्व बनाकर रखना चाहते हैं।
बाढ़ सी बढ़ती जनसंख्या के लिए भोजन, आवास व वस्त्र का इंतजाम इस दशक के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इस चुनौती को स्वीकार करते हुए सुखमय जीवन जीने के लिए संसाधनों का बेहतर उपयोग नितांत आवश्यक है। सुनियोजित विकास का सपना तभी पूरा हो सकता है, जब जनसंख्या का नियोजन किया जा सके। अच्छी बात यह है कि इसको लेकर लोगों में जागरूकता आई है। हालांकि, ऐसा नहीं कि इससे आबादी का रफ्तार कम हो गया है। लेकिन, जनसंख्या की वृद्धि दर में कमी आना इस बात का द्योतक है कि लोग इसके प्रति सचेत हो रहे हैं। वैसे भी परिवार नियोजन अब दंपत्ति की जरूरत बन रहा है।
हम 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना देख रहे हैं और इसे लक्ष्य बनाकर आगे बढ़ रहे हैं लेकिन यह तभी संभव है जब प्रति व्यक्ति आय बढ़े। देश की कुल आय से सही समृद्धि नहीं आयेगी हमें हर व्यक्ति को खुशहाल बनाना होगा।
देश में संसाधन सीमित हैं लेकिन आबादी बेहद तेजी से बढ़ती जा रही है। हर साल बढ़ते बेरोजगारी के आंकड़े दर्शा रहे हैं कि हालात ऐसे ही रहे तो स्थिति कभी भी विस्फोटक हो सकती है। देखा जाये तो 1951 में भारत की आबादी 38 करोड़ 38 लाख थी जो साल 2011 में बढ़कर 121 करोड़ के पार पहुंच गयी और साल 2025 तक इसके बढ़कर 150 करोड़ के पार पहुंचने का अनुमान है। दरअसल जनसंख्या गुनांक में बढ़ती है जबकि संसाधनों में वृद्धि की दर बहुत धीमी होती है। वाकई अब समय आ गया है जब देश को जनसंख्या नियंत्रण कानून की सख्त जरूरत है।
मूलभूत सुविधाएं जुटाना चुनौती आज सरकार के सामने सबसे बड़ा चैलेंज यही है कि बढ़ती आबादी के अनुसार किस तरह ढांचागत सुविधाओं को पूरा किया जाये। यह ठीक है कि आज डीजल, पेट्रोल व रसोई गैस आदि जीवन की जरूरत बन गई है, लेकिन यह भी सच है कि इनका भंडारण आने वाले वक्त में खत्म होने वाला है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए अभी से तैयारी करनी होगी।
कृषि को सम्मान तो हर हाथ को काम
जनसंख्या नियोजन को साकार करने के लिए संसाधनों की पूर्ति हेतु कृषि जैसे क्षेत्र पर व्यापक ध्यान देना होगा। कृषि को सम्मान मिलने से ही हर हाथ को काम मिल सकता है। जाहिर सी बात है भारत जैसे देश में कृषि में रोजगार की असीम संभावनाएं हैं। छोटे व कस्बाई शहरों में खाद बीज वितरण से लेकर मत्स्य व मुर्गी पालन जैसी योजनाएं युवाओं के लिए जहां आमदनी का बढि़या स्त्रोत साबित हो रही हैं। वहीं, आधुनिक खेती भी इसमें सहायक सिद्ध हो रही है।
हम दो हमारा एक का नारा बुलंदपरिवार नियोजन हो या जनसंख्या नियोजन, इसकी बात करना कभी बड़ा अटपटा लगता था। लेकिन, आज के परिप्रेक्ष्य में देखें तो अब आम आदमी भी छोटे परिवार का राज समझने लग गया है। बिना किसी दबाव के परिवार नियोजन के स्थायी उपाय अपनाने वालों की संख्या भी बढ़ रही है। सबसे अहम यह कि हम दो हमारे दो की जगह अब हम दो हमारे एक का नारा बलवती होने लगा है।
आपरेशन का बढ़ता दर अच्छा संदेश
स्वास्थ्य सेवा की सुदृढ़ता के प्रति बढ़ा लोगों का विश्वास और सरकारी अस्पतालों में बंध्याकरण आपरेशन करवाने के एवज में मिलने वाली प्रोत्साहन राशि ने जनसंख्या नियोजन को काफी हद तक साकार किया है। आज भले ही दो से अधिक बच्चों को जन्म देने वाली माताएं अस्पतालों में इस आपरेशन के लिए पहुंच रही हैं। लेकिन, वहां तक उनका पहुंचना और हर वर्ष इसके बढ़ते आंकड़े ने यह सोचने के लिए विवश कर दिया है कि अब लोग जनसंख्या नियंत्रण के माध्यम से इसके नियोजन के प्रति जागरूक होने लगे हैं।
आधी आबादी पर बड़ा दारोमदार बढ़ती आबादी के अनुरूप संसाधनों को जुटाने के साथ संसाधनों के अनुरूप आबादी को नियंत्रित करने में आधी आबादी की भूमिका अहम है। जिन परिवारों में महिलाएं शिक्षित हुई हैं, उनमें परिवार नियोजन के प्रति जागरुकता आयी है। बच्चों को अच्छी शिक्षा व परवरिश के लिए ग्रामीण इलाकों की भी पढ़ी-लिखी महिलाएं परिवार सीमित रखने पर जोर दे रही हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं कि इसका दारोमदार आधी आबादी पर ही निर्भर है।
दो बच्चा नीति का पालन नहीं करने वालों को चुनाव लड़ने, सरकारी सेवाओं में प्रोन्नति लेने, सरकारी योजनाओं या सबसिडी का लाभ लेने, बीपीएल श्रेणी में सूचीबद्ध होने और समूह 'क' की नौकरियों के लिए आवेदन करने से रोका जाना चाहिए। विधेयक में यह भी प्रस्ताव किया गया है कि केंद्र सरकार को राष्ट्रीय जनसंख्या स्थिरीकरण फंड की स्थापना करनी चाहिए ताकि जो लोग दो बच्चा नीति का पालन करना चाहते हैं उनकी मदद की जा सके। इसके अलावा सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर गर्भनिरोधकों को उचित दर पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए। जिन दंपति का एक ही बच्चा है और उन्होंने अपनी नसबंदी भी करा ली है उन्हें सरकार की ओर से विशेष प्रोत्साहन दिये जाने चाहिए जैसे उनके बच्चे को उच्च शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में वरीयता दी जाये। ऐसे दंपति जो गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर कर रहे हैं यदि वह स्वतः ही नसबंदी करा लेते हैं तो केंद्र उन्हें एकमुश्त रकम के माध्यम से मदद करे जिसमें अगर उस दंपति का एक ही बच्चा अगर लड़का है तो उन्हें 60 हजार रुपये और यदि वह एक ही बच्चा लड़की है तो एक लाख रुपए दिये जाएं।
दो बच्चा नीति का पालन नहीं करने वालों को हतोत्साहित करने की बात है ऐसे दंपतियों पर लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा, पंचायत और किसी भी निकाय का चुनाव लड़ने पर रोक लगा देनी चाहिए। उन्हें सरकारी सेवाओं में प्रमोशन नहीं देना चाहिए, केंद्र और राज्य सरकारों की ग्रुप ए की नौकरियों में आवेदन करने का हक नहीं होना चाहिए और यदि वह गरीबी रेखा से नीचे के हैं तो उन्हें कोई भी सरकारी सबसिडी नहीं मिलनी चाहिए।
बहरहाल, विश्व में आबादी के मामले में भारत अभी दूसरे नंबर पर खड़ा है और यदि तरक्की की रफ्तार यही रही तो जल्द ही हम चीन को पछाड़ देंगे। हम 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना देख रहे हैं और इसे लक्ष्य बनाकर आगे बढ़ रहे हैं लेकिन यह तभी संभव है जब प्रति व्यक्ति आय बढ़े। देश की कुल आय से सही समृद्धि नहीं आयेगी हमें हर व्यक्ति को खुशहाल बनाना होगा और ऐसा तभी हो सकता है जब कल्याणकारी योजनाओं और देश के संसाधनों पर जनसंख्या का भारी बोझ नहीं हो। यह अच्छी बात है कि जनसंख्या नियंत्रण को लेकर देश की दो बड़ी पार्टियों के समान विचार हैं अब सरकार को भी चाहिए कि वह इस दिशा में आगे बढ़े। प्रजातंत्र देश होने के कारण विरोध करना अपना मौलिक अधिकार होने से कानून बनाने में सहयोग न देकर विरोध पैदा कर असफल बनाना हैं जो उचित नहीं हैं।
(लेखक-वैद्य अरविन्द जैन)