नई दिल्ली । वैज्ञानिकों ने 1961 यानी 59 साल पहले जिस एमआरएनए (मैसेंजर राइबोन्यूक्लिक एसिड) की खोज की थी, वो कम अवधि में कोरोना वैक्सीन बनाने में मददगार साबित हो रही है। मॉडर्ना ने 63 दिनों मानव शरीर पर होने वाला ट्रायल के प्रमुख चरणों को पार कर लिया है। पहली रिपोर्ट में अच्छे परिणामों का दावा किया जा रहा है। आरएनएमए बेस्ड वैक्सीन तैयार कर रही बायोटेक, फाइजर सहित अन्य कंपनियां भी इसी आधार पर 2021 तक वैक्सीन लांच करने का दावा कर रही हैं। सभी कंपनियां 60 से 90 फीसद सफलता का दावा भी कर रही हैं। 2013 में हुए अध्ययन के अनुसार एक कमजोर व मृत वायरस या शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित करने के लिए कम से कम एक दशक से ज्यादा समय लग जाता है। जैसे फ्लू और हेपेटाइटिस-बी का टीका खोजने में 18 साल लगे थे।
वायरस से लेकर इंसानों तक हर चीज में जेनेटिक मटीरियल होता है, फिर चाहे वह डीएनए हो या आरएनए। वास्तव में सभी में एक तरह का आरएनए होता है। इसे एमआरएन (मैसेंजर राइबोन्यूक्लिक एसिड) कहते हैं। वह राइबोसोम (कोशिकाओं में भी मौजूद) में ले जाने का महत्वपूर्ण काम करता है, आखिर कब और क्यों प्रोटीन बनाना है। पांरपरिक तरीके से वैक्सीन बनाने और उसे आम लोगों के लिए जारी करने में कम से कम आठ से 12 साल लगते हैं, ऐसे में कोविड-19 का वैक्सीन 63 दिनों में कैसे हयूमन ट्रायल (मानव परीक्षण) तक पहुंच गया? सवाल जितना मौजूं है, इसका जवाब भी उतना ही रोचक है।
दरअसल, जिस तकनीक को आधार बनाकर वैक्सीन बनाई जा रही है उसकी खोज लगभग 59 साल पहले ही कर ली गई थी। हालांकि इसका व्यापक उपयोग अब शुरू हुआ है। उम्मीद जताई जा रही है कि यह वैक्सीन कैंसर जैसी बीमारियों के लिए भी उपयोगी होगी। इस बात की चर्चा जरूर है कि कोविड 19 के लिए बनाई जा रही वैक्सीन कैंसर के लिए कारगर हो सकती है। मेलेनोमा (त्वचा का कैंसर) जैसे कैंसर में इम्यूनोथैरेपी के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है। हालांकि इस पर अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। अभी यह क्लिनिकल फेज है, इसलिए थर्ड फेज के नतीजों का इंतजार करना जरूरी है। कोविड-19 महामारी के लिए तैयार किए जा रहे वैक्सीन के दावों-वादों के बीच चिकित्सा विज्ञान जगत की यह अंदरुनी खबर काफी उत्साह जगाने वाली है।
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कोरोना वैक्सीन से हो सकेगा कैंसर का इलाज? -थर्ड फेज के नतीजों का करना होगा इंतजार