नई दिल्ली । कोलकाता में 75 वर्षीय शिबदास बनर्जी कोरोनोवायरस से संक्रमित पाए गए और बाद में 13 नवंबर को उन्हें मृत घोषित कर और उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। लेकिन, बनर्जी शुक्रवार रात बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के बीरती में अपने परिवार के पास लौट आए, जब हिंदू अनुष्ठानों के अनुसार उनके श्राद्ध की तैयारी चल रही थी। यह जिले में स्थित खारदाह के बलाराम बसु अस्पताल में कर्मचारियों की उदासीनता और गलती की वजह से हुआ, जहां 4 नवंबर को बनर्जी को भर्ती कराया गया था। अब राज्य का स्वास्थ्य विभाग इसकी जांच कर रहा है। जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई और 13 नवंबर को बनर्जी के बेटे संजीब ने उनका अंतिम संस्कार किया, वह उसी जिले के खारदह निवासी 75 वर्षीय मोहिनीमोहन मुखर्जी और स्थानीय नागरिक निकाय के सेवानिवृत्त कर्मचारी थे। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने कहा कि मुखर्जी को भी 4 नवंबर को बलराम बसु अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन उत्तर 24 परगना के बारासात के कोविड -19 अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया था। हालांकि, बारासात अस्पताल में उनके साथ भेजे गए मेडिकल रिकॉर्ड बनर्जी के थे। रिकॉर्ड्स की अदला-बदली हो गई और बनर्जी तब तक मोहनमोहन मुखर्जी के इलाज में रहे, जब तक वे ठीक नहीं हो गए। यह सच सामने आया जब बलराम बसु अस्पताल के कर्मचारियों ने मुखर्जी के परिवार को फोन करके बताया कि वह छुट्टी के लिए तैयार हैं, क्योंकि इलाज के बाद कोविद -19 के टेस्ट में वो निगेटिव पाए गए हैं। मुखर्जी के बेटे संदीप ने स्थानीय मीडिया को बताया कि जब मैं अस्पताल गया तो व्हीलचेयर में बैठे एक अलग व्यक्ति को देखकर मैं चौंक गया। उन्होंने कहा कि अस्पताल के अधिकारियों को तब लगा कि उनसे गलती हो गई है और उन्होंने तब बनर्जी के परिवार को सूचित किया। बनर्जी का परिवार उन्हें शुक्रवार देर रात घर ले गया। जिला स्वास्थ्य विभाग ने इस घटना की जांच के लिए चार सदस्यीय समिति का गठन किया है। जिला स्वास्थ्य विभाग के मुख्य चिकित्सा अधिकारी तापस रॉय ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है। जांच समिति की रिपोर्ट राज्य के स्वास्थ्य विभाग को भेज दी गई है और आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।