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मौन-और ध्यान - आंतरिक सुंदरता का दर्पण  

मौन-और ध्यान - आंतरिक सुंदरता का दर्पण  

वर्तमान काल में मनुष्य बहुत अशांत हैं ,उसका मन मष्तिष्क स्थिर नहीं रहता हैं। मन एक मिनिट में ५५ विचारों का सामना करता हैं। हमारी सबसे अधिक ऊर्जा नेत्रों के अलावा मन की क्रियायों या सोच विचार से नष्ट होती हैं। इसलिए जब हम शांत होकर शयन या आँख बंद कर आराम करते हैं उसके बाद हम तरोताज़ा महसूस करते हैं। इस समस्या का निदान हमारे पास हैं। हम कोलाहल को बंद नहीं कर सकते। कोलाहल बाह्य हैं पर आंतरिक कोलाहल जिसे हम अशांति कहते हैं उससे कैसे मुक्ति पा सकते हैं। मौन का अर्थ चुप रहना नहीं बल्कि मन ,वचन और काय में भी एकाग्रता होना। मुनि का अर्थ हैं मौन धारण करना। मन की हलन चलन को केंद्रित करना। जिस प्रकार गहरी नदी ऊपर से शांत पर अंदर से गतिमान रहती हैं। हमें बाह्य और आंतरिक शांति स्थापित करना हैं। इसके लिए मौन और ध्यान बहुत सीमा तक अपने लक्ष्य को पहुंचाने में मदद करते हैं।
मौन का अर्थ अन्दर और बाहर से चुप रहना है।आमतौर पर हम ‘मौन’ का अर्थ होंठों का ना चलना माना जाता है। यह बड़ा सीमित अर्थ है। कबीर ने कहा है:
कबीरा यह गत अटपटी, चटपट लखि न जाए। जब मन की खटपट मिटे, अधर भया ठहराय।
अधर मतलब होंठ। होंठ वास्तव में तभी ठहरेंगें, तभी शान्त होंगे, जब मन की खटपट मिट जायेगी। हमारे होंठ भी ज्यादा इसीलिए चलते हैं क्योंकि मन अशान्त है, और जब तक मन अशान्त है, तब तक होंठ चलें या न चलें कोई अन्तर नहीं क्योंकि मूल बात तो मन की अशान्ति है। वो बनी हुई है तो किसी को शब्दहीन देखकर ये मत समझ लेना कि वो मौन हो गया है। वो बहुत ज़ोर से चिल्ला रहा है, शब्दहीन होकर चिल्ला रहा है। वो पागल ही है, बस उसके शब्द सुनाई नहीं दे रहे। वो बोल रहा है बस आवाज़ नहीं आ रही। शब्दहीनता को, ध्वनिहीनता को मौन मत समझ लेना।
मौन है- मन का शान्त हो जाना अर्थात कल्पनाओं की व्यर्थ उड़ान न भरे। आन्तरिक मौन में लगातार शब्द मौजूद भी रहें तो भी, मौन बना ही रहता है। उस मौन में तुम कुछ बोलते भी रहो तो उस मौन पर कोई अन्तर नहीं पड़ता।
मौन से संकल्प शक्ति की वृद्धि तथा वाणी के आवेगों पर नियंत्रण होता है। मौन आन्तरिक तप है इसलिए यह आन्तरिक गहराइयों तक ले जाता है। मौन के क्षणों में आन्तरिक जगत के नवीन रहस्य उद्घाटित होते है। वाणी का अपब्यय रोककर मानसिक संकल्प के द्वारा आन्तरिक शक्तियों के क्षय को रोकना परम् मौन को उपलब्ध होना है। मौन से सत्य की सुरक्षा एवं वाणी पर नियंत्रण होता है। मौन के क्षणों में प्रकृति के नवीन रहस्यों के साथ परमात्मा से प्रेरणा मिल सकती है। 
मौन व्रत भारतीय संस्कृति में सत्य व्रत, सदाचार व्रत, संयम व्रत, अस्तेय व्रत, एकादशी व्रत व प्रदोष व्रत आदि बहुत से व्रत हैं, परंतु मौनव्रत अपने आप में एक अनूठा व्रत है। इस व्रत का प्रभाव दीर्घगामी होता है। इस व्रत का पालन समयानुसार किसी भी दिन, तिथि व क्षण से किया जा सकता है। अपनी इच्छाओं व समय की मर्यादाओं के अंदर व उनसे बंधकर किया जा सकता है। योगशास्त्र कहता है कि जो मनुष्य शरीर रूपी पिंड को बराबर जानता है उस मनुष्य को समष्टी रूप ब्रह्माण्ड जानना कुछ मुश्किल नहीं।
शरीर में चार वाणी हैं। जैसे कि- परावाणी नाभि (टुन्डी) में, पश्यन्तिवाणी छाती में, मध्यमावाणी कण्ठ (गले में) और वैखरी वाणी मुंह में है। शब्द की उत्पत्ति परावाणी में होती हैं परन्तु जब शब्द स्थूल रूप धारण करता है, तब मुंह में रही हुई वैखरी वाणी द्वारा बाहर निकलता है। 
ध्यान क्या है?
देखा जाए तो हम सब ध्यानी हैं। कारण हम जो भी कार्य करते हैं वह ध्यान पूर्वक करते हैं। कार ध्यान से चलाते हैं ,व्यापारी अपने ग्राहक के लिए ध्यान देता हैं। ध्यान वैसे शुभ और अशुभ होते हैं। जैन दर्शन में चार प्रकार के ध्यान बताये गए हैं --- आर्त्त ध्यान ,रौद्र ध्यान ,धर्मध्यान और शुक्ल ध्यान और उनके भी चार चार प्रकार होते हैं।
ध्यान एक विश्राम है। यह किसी वस्तु पर अपने विचारों का केन्द्रीकरण या एकाग्रता नहीं है, अपितु यह अपने आप में विश्राम पाने की प्रक्रिया है। ध्यान करने से हम अपने किसी भी कार्य को एकाग्रता पूर्ण सकते हैं।
ध्यान के ५ लाभ ---शांत चित्त,अच्छी एकाग्रता,बेहतर स्पष्टता,बेहतर संवाद,मस्तिष्क एवं शरीर का कायाकल्प व विश्राम
ध्यान के 5 स्वास्थ्य लाभ।
ध्यान के कारण शरीर की आतंरिक क्रियाओं में विशेष परिवर्तन होते हैं और शरीर की प्रत्येक कोशिका प्राणतत्व (ऊर्जा) से भर जाती है। शरीर में प्राणतत्व के बढ़ने से प्रसन्नता, शांति और उत्साह का संचार भी बढ़ जाता है।
ध्यान से शारीरिक स्तर पर होने वाले लाभ
उच्च रक्तचाप का कम होना, रक्त में लैक्टेट का कम होना, उद्वेग/व्याकुलता का कम होना।
तनाव से सम्बंधित शरीर में कम दर्द होता है। तनाव जनित सिरदर्द, घाव, अनिद्रा, मांशपेशियों एवं जोड़ों के दर्द से राहत मिलती है।
भावदशा व व्यवहार बेहतर करने वाले सेरोटोनिन हार्मोन का अधिक उत्पादन होता है।
प्रतिरक्षा तंत्र में सुधार आता है।
ऊर्जा के आतंरिक स्रोत में उन्नति के कारण ऊर्जा-स्तर में वृद्धि होती है।
ध्यान के 11 मानसिक लाभ
ध्यान, मस्तिष्क की तरंगों के स्वरुप को अल्फा स्तर पर ले आता है जिससे चिकित्सा की गति बढ़ जाती है। मस्तिष्क पहले से अधिक सुन्दर, नवीन और कोमल हो जाता है। ध्यान मस्तिष्क के आतंरिक रूप को स्वच्छ व पोषण प्रदान करता है। जब भी आप व्यग्र, अस्थिर और भावनात्मक रूप से परेशान होते हैं तब ध्यान आपको शांत करता है। ध्यान के सतत अभ्यास से होने वाले लाभ निम्नलिखित हैं:
व्यग्रता का कम होना
भावनात्मक स्थिरता में सुधार
रचनात्मकता में वृद्धि
प्रसन्नता में संवृद्धि
सहज बोध का विकसित होना
मानसिक शांति एवं स्पष्टता
परेशानियों का छोटा होना
ध्यान मस्तिष्क को केन्द्रित करते हुए कुशाग्र बनाता है तथा विश्राम प्रदान करते हुए विस्तारित करता है।
बिना विस्तारित हुए एक कुशाग्र बुद्धि क्रोध, तनाव व निराशा का कारण बनती है।
एक विस्तारित चेतना बिना कुशाग्रता के अकर्मण्य/ अविकसित अवस्था की ओर बढ़ती है।
कुशाग्र बुद्धि व विस्तारित चेतना का समन्वय पूर्णता लाता है।
ध्यान आपको जागृत करता है कि आपकी आतंरिक मनोवृत्ति ही प्रसन्नता का निर्धारण करती है।
ध्यान के 3 आध्यात्मिक लाभ
ध्यान का कोई धर्म नहीं है और किसी भी विचारधारा को मानने वाले इसका अभ्यास कर सकते हैं।
मैं कुछ हूँ इस भाव को अनंत में प्रयास रहित तरीके से समाहित कर देना और स्वयं को अनंत ब्रह्मांड का अविभाज्य पात्र समझना।
ध्यान की अवस्था में आप प्रसन्नता, शांति व अनंत के विस्तार में होते हैं और यही गुण पर्यावरण को प्रदान करते हैं, इस प्रकार आप सृष्टी से सामंजस्य में स्थापित हो जाते हैं।
ध्यान आप में सत्यतापूर्वक वैयक्तिक परिवर्तन ला सकता है। क्रमशः आप अपने बारे में जितना ज्यादा जानते जायेंगे, प्राकृतिक रूप से आप स्वयं को ज्यादा खोज पाएंगे।
ध्यान के लाभ कैसे प्राप्त करें।
ध्यान के लाभों को महसूस करने के लिए नियमित अभ्यास आवश्यक है। प्रतिदिन यह कुछ ही समय लेता है। प्रतिदिन की दिनचर्या में एक बार आत्मसात कर लेने पर ध्यान दिन का सर्वश्रेष्ठ अंश बन जाता है। ध्यान एक बीज की तरह है। जब आप बीज को प्यार से विकसित करते हैं तो वह उतना ही खिलता जाता है।
प्रतिदिन, सभी क्षेत्रों के व्यस्त व्यक्ति आभार पूर्वक अपने कार्यों को रोकते हैं और ध्यान के ताज़गी भरे क्षणों का आनंद लेते हैं। अपनी अनंत गहराइयों में जाएँ और जीवन को समृद्ध बनाएं।
छात्रों हेतु ध्यान के 5 लाभ
आत्मविश्वास में वृद्धि
अधिक केन्द्रित व स्पष्ट मन
बेहतर स्वास्थ्य
बेहतर मानसिक शक्ति व ऊर्जा
अधिक गतिशीलता
इस प्रकार मौन और ध्यान एक दूसरे के पूरक हैं। बिना मौन के ध्यान नहीं हो सकता हैं और ध्यान के लिए मौन आवश्यक हैं। इनसे हमारे शारीरिक और मानसिक विकास होता हैं। इनका प्रयोग हमें अपने जीवन में यथाशक्ति करना चाहिए।
(लेखक- वैद्य अरविन्द प्रेमचंद जैन)

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