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ऑनलाइन पढ़ाई-अभिशाप या वरदान 

ऑनलाइन पढ़ाई-अभिशाप या वरदान 

नीलू चौथी पास कर पांचवी में पहुंची। कोरोना के कारण स्कूलों में पढ़ाई बंद होने से कुछ समय तक तो यह निश्चित नहीं हो पा रहा था की इस वर्ष पढ़ाई कैसी होगी ,कक्षाएं कैसी लगेंगी ,इसी पशोपेश में लगभग ५ माह निकलने के बाद स्कूलों द्वारा दबाव दिए आने के बाद ऑन लाइन पढ़ाई  की शुरुआत हुई। स्कूल द्वारा बताई गयी पुस्तकें ,कॉपियां खरीदी गई। उन किताबों का हिसाब किताब भी निर्धारित रहा।  
शिक्षा हमेशा गुरु मुख  से ही मिलती हैं। वह भी भौतिक रूप से होना चाहिए। कारण शिक्षक का सामने रहना और उनके हाव भाव का प्रभाव बच्चों पर पड़ता हैं जो स्थायी होता हैं। शिक्षक द्वारा पढ़ाया गया विषय मन मष्तिष्क पर गहरा प्रभाव डालता हैं। इसके अलावा बच्चों के द्वारा उनकी शंकाओ और कुशंकाओं का निराकारण शीसखाक द्वारा होता हैं। बच्चों के द्वारा क्या लिखा जा रहा हैं ,कैसा लिखा जा रहा हैं। लिखने में कितनी गलतियां हो रही हैं और उनका लेखन जांच कर सुधार किया जाता हैं। दूसरे दिन दिया गया होम वर्क की जांच की जाती हैं।
बच्चों के द्वारा आपस में मिलना जुलना होने से आपसी विचार धाराओं का आदान प्रदान होने से उनका विकास में सहायक होता हैं। घर से बाहर कुछ समय रहने से  उनके मन प्रसन्न रहते हैं और आपसी मेलजोल लाभदायक होता हैं।
नीलू की पांचवी की पढ़ाई ऑन लाइन घर पर रहने से हो रही हैं। लेपटॉप और मोबाइल से पढ़ाई पर कितना असर पड़ा की जो चौथी में श्रेष्ठतम थी आज वह पिछड़ी छात्र मानी जानी लगी। घर के निरंतर वातावरण के कारण के अलावा कभी बिजली नहीं रहती या नेटवर्क की कमी या आवाज़ की कमी या गड़बड़ी या बच्चे समुचित ढंग से समझ नहीं पाते और पढ़ाई में पिछड़ने के कारण निराशा /हताशा का सामना करते हैं। उनका आत्मविश्वास कमजोर होता जा रहा हैं।
नीलू से बात की तो उसने बताया की पढाई ढंग से समझ नहीं आती ,कोई भी प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पाटा ,होम वर्क की जांच नहीं होती और कैसे लिख रहे हैं कितना गलत या सही कोई देखने वाला न रहने से पढ़ाई में पिछड़ रहे हैं। पढाई में पिछड़ने के कारण माँ बाप के कोप का भाजन बनना पड़ रहा हैं। उस कारण निराशा का सामना पड़ रहा हैं।
कोरोना के कारण बच्चों के साथ सम्पूर्ण सामाजिकता पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा हैं। आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं। आजकोई भी किसी से नहीं मिलना चाहता हैं।  कोरोना से बचाव के लिए इन नियमों का पालन आवश्यक हैं पर इसके कारण सब लोग अदृश्य भय से ग्रसित हैं। इसके दूरगामी प्रभाव अत्यंत भयावह और चिंताजनक होंगे। भविष्य में मानसिक रोग बढ़ने के अवसर बढ़ेंगे।
(लेखक-वैद्य अरविन्द प्रेमचंद जैन)

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