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दाग अच्छे है.....! दागी नेताओं के प्रति ‘दयावान’ केन्द्र सरकार....? 

दाग अच्छे है.....! दागी नेताओं के प्रति ‘दयावान’ केन्द्र सरकार....? 

प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने के साढ़े छः साल बाद अब देश को यह महसूस होने लगा है कि राजनीति में उच्चतम आदर्शों, नैतिकताओ और सिद्धांतों के प्रतीक नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी को भी राजनीति के मौजूदा माहौल और मापदण्डों में ढलने को मजबूर होना पड़ रहा है, तभी तो पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद संसद में दागी नेताओं के आपराधिक प्रकरण विशेष न्यायालयों का गठन कर एक साल की अवधि में निपटाकर संसद व देश की विधानसभाओं को ‘दागविहीन’ कर देने का संकल्प लेने वाले प्रधानमंत्री को आज दागी नेताओं को जीवनभर चुनावों से वंचित रखने के सर्वोच्च न्यायालय की धारणा का सरकार की तरफ से विरोध करना पड़ रहा है और दागी नौकरशाहों और नेताओं के बीच अंतर स्पष्ट करना पड़ रहा है। 
देश के दागी नेताओं के प्रकरणों को लेकर न्यायपालिका, चुनाव आयोग व सरकार के बीच तगड़ी रस्साकशी चल रही है, सर्वोच्च न्यायायलय व चुनाव आयोग जहां सजायाफता दागी नेताओं पर चुनाव नहीं लड़ पाने का आजीवन प्रतिबंध लगाने के समर्थक है और इस दिशा में लम्बे समय से न्यायपालिका व चुनाव आयोग प्रयासरत भी है, अब साफ-सुथरी छवि एवं आदर्शों वाले प्रधानमंत्री के आने के बाद इन्हें लगने लगा था कि अब उनके लम्बे प्रयास सफल हो जाएगें, किंतु हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय को मोदी जी की केन्द्र सरकार ने जो हलफनामा सौंपा है, वह न सिर्फ न्यायपालिका या चुनाव आयोग बल्कि देश की जनता को भी निराश करने वाला है, अपने हलफनामें में केन्द्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को लिखकर दिया है कि दागी नौकरशाहों पर प्रतिबंध या उन्हें दण्डित करने की तुलना दागी नेताओं से नहीं की जा सकती क्योंकि नौकरशाह सेवा नियमों से बंधे है, जबकि नेता, सांसद या विधायकों के साथ ऐसा नहीं है, वे पद की शपथ अवश्य लेते है, किंतु उसमें ऐसे अपराधों का कोई उल्लेख नहीं है। 
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों केन्द्र सरकार के कानून व न्याय मंत्रालय ने देश के जनप्रतिनिधियों को लेकर कुछ तर्क प्रस्तुत किए थे, जिनमें कहा गया था कि निर्वाचित जन प्रतिनिधियों के सम्बंध में कोई विशेष नियम नहीं है, लोकसेवक होने के नाते जन प्रतिनिधि सामान्यतः जनसेवा की शपथ के अधीन होते है, अपराध सिद्ध होने पर जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में वर्णित अवधि के लिए ही उन्हें अयोग्य ठहराया जा सकता है। सामान्यतः देशहित की अपेक्षा होती है, पर वे कानून के ऊपर नही है। इसी तरह नौकरशाहों को लेकर इस मंत्रालय ने जो तर्क प्रस्तुत किए उनमें कहा गया कि कानूनी प्रतिमानों के तहत दोषी नौकरशाह सेवा में जीवन भर के लिए प्रतिबंधित कर दिया जाता है, नौकरशाह की सेवाशर्तो का संज्ञान सेवा कानूनों के अधीन होता है, जिनमें सेवानिवृत्ति के नियम शामिल है। केन्द्र ने यह हलफनामा सुप्रीम कोर्ट द्वारा अधिवक्ता अश्विन उपाध्याय की उस याचिका के तहत मांगने पर दिया है। जिसमें श्री उपाध्याय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद चैदह, पन्द्रह और सोलह के तहत प्रजातंत्र के तीनों स्तंभों से सम्बंध नौकरशाहों व जन प्रतिनिधियों को अपराधी पा जाने पर समान रूप से दण्डित करने के प्रावधान की मांग की थी। 
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों देश के समाचार पत्रों में प्रकाशित एक सर्वेक्षण के अनुसार रिश्वतखोरी व भ्रष्टाचार के मामलों में भारत की स्थिति पूरे एशिया में सबसे खराब है और भारत में सरकारी सुविधाओं के लिए 46 फीसदी लोग निजी सम्बंधों का सहारा लेते है। सरकारी भ्रष्टाचार से भारतवासी सबसे अधिक परेशान है, भारत में रिश्वतखोरी की दर चालीस फीसदी है, सर्वेक्षण ने स्पष्ट किया है कि सरकार का इस पर कोई नियंत्रण नहीं है। 
भ्रष्टाचार व रिश्वतखोरी का ही जिक्र शुरू हुआ है तो बता दें कि टीआरएसीई एक अधीकृत सर्वेक्षण विश्वस्तरीय सर्वेक्षण एजेंसी है। जिसने विश्व के भ्रष्टाचारी देशों की हाल ही में एक सूची जारी की है, जिसमें रिश्वतखोरी के मामले में भारत की सतहत्तरवें स्थान पर रखा गया है। इस एजेंसी ने हाल ही 194 देशों व क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत के पड़ौसी देशों पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश में भारत से भी खराब स्थिति है। यद्यपि भूटान 37 अंकों के साथ विश्व में 48वें क्रम पर है, लेकिन अन्य पड़ौसी देशों में भारत से अधिक भ्रष्टाचार व्याप्त है। अन्य देशों में पेरू, जाॅर्डन, उत्तरी मेसिडोनिया, कोलम्बिया को भी भारत के बराबर ही अंक मिले है। 
इस प्रकार कुल मिलाकर रिश्वतखोरी के मामले में पिछले कुछ वर्षों में भी भारत की स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं हो पाया है। .....और अब जब देश की सर्वोच्च न्यायालय को केन्द्र सरकार रिश्वतखोर जन प्रतिनिधियों के बारे में इस तरह का हलफनामा दे रही है तो यह जन आश्चर्य के अधीन तो है, जबकि नरेन्द्र भाई के प्रधानमंत्री बनने के बाद यह अपेक्षा की जा रही थी, देश में भ्रष्टाचार कम होगा, वह जनहितैषि कार्यों में जनता को प्राथमिकता मिलेगी। किंतु केन्द्र के इस हलफनामें से तो इस दिशा में देश को निराशा ही हाथ लगती है, अब तो ऐसी स्थिति में यही कहा जा सकता है कि:-
‘‘कुछ तो मजबूरियाँ रही होगी, वर्ना यूँ कोई बेवफा नहीं होता।’’
(लेखक- ओमप्रकाश मेहता)

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