भारत में माॅस कम्युनिकेशन और जनसंचार आज भी एक बड़ी चुनौती है। सवा सौ करोड़ नागरिकों के इस देश में सरकार को न केवल अच्छा काम करना है बल्कि देश के कोेने कोने तक बैठे व्यक्ति और समूहों को ये समझाना भी है कि सरकार ने जो काम किया है वह अच्छा काम है। मामला साफ है भारत सरकार के लिए जितना जरुरी अच्छा काम करना है उससे कहीं ज्यादा जरुरी है देशवासी और समाज के विभिन्न वर्गों को यह विश्वास दिलाना कि सरकार का उठाया गया कदम वाकई में काबिले तारीफ है। पिछले कुछ दिन से राजधानी नई दिल्ली में भारत सरकार कुछ राज्यों के किसानों को यही समझाने का प्रयास कर रही है कि किसानों की तरक्की के लिए बनाए गए नए कानूनों को गलत समझा जा रहा है। न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी था, जारी है और हमेशा की तरह जारी रहेगा। किसानों के बीच नए कानूनों को लेकर शंकाएं हैं जिनके समाधान के लिए वार्ता दिल्ली के विज्ञान भवन लगातार जारी है।
नई दिल्ली में केन्द्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के नेतृत्व में रेल मंत्री पीयूष गोयल और उनके सहयोगी किसान संगठनों की बात सुन रहे हैं समझ रहे हैं और सवालों के जवाब भी दे रहे हैं। आशा की जा रही है कि इस वार्ता से असंतुष्ट किसान समूहों के प्रश्नों का समाधान हो सकेगा।
देश मंें यह किसान आंदोलन एक बड़ी खबर बना हुआ है और एक बात पर बाकी देश के लोग असमंजस में हैं कि केन्द्र की मोदी सरकार हो या किसी अन्य दल की सरकार कोई भी राजनैतिक दल कृषि प्रधान देश में किसानों की नाराजगी क्यों मोल लेना चाहेगा। आखिर लोकतंत्र में जनता के लिए कल्याणकारी योजनाएं बनाकर जनमत प्राप्त किया जाता है तो मोदी सरकार आखिर ऐसा कानून क्यों बनाना चाहेगी जो किसान विरोधी हो और जिससे देश के किसान उसके खिलाफ लामबंद हों। असल में इतने बड़े मतदाता समूह को नाराज करने की एक पूर्ण बहुमत सरकार सोच भी नहीं सकती। एनडीए सरकार ने भी अपने दूसरे कार्यकाल में जो तीन नए कानून बनाए हैं वे किसानों की आमदनी को दुगुना करने के लिए ही बनाए हैं। ये कानून किसानों के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर डाका नहीं डालते। एमएसपी को खत्म करने या भविष्य में किए जाने का इन कानूनों में कोई प्रावधान नहीं है। असल में ये किसानों को एमएसपी के वादे के साथ भी बहुत कुछ देते हैं। इनमें किसानों की आर्थिक आजादी महत्वपूर्ण है। अभी किसान मंडी से बंधा है। वह अपनी उपज केवल मंडी में बेच सकता है। मंडी के अलावा उस पर विकल्प नहीं है मगर नया कानून मंडी के आगे की बात करता है। अगर किसान को मंडी मूल्य के अलावा व्यापारी और दूसरे उत्पादक समूह अधिक दाम देते हैं तो किसानों को ये आजादी क्यों नहीं होनी चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बात को किसानों को समझना चाहिए। प्रधानमंत्री ने मन की बात कार्यक्रम में दावा किया था कि कृषि कानूनों के लागू होने के बाद किसानों को अपना रुका हुआ भुगतान अधिक तेजी से हो सकेगा। । प्रधानमंत्री मोदी ने अपने चुनाव क्षेत्र वाराणसी में किसानों को आश्वस्त किया कि सरकार किसानों के हितों पर कोई आंच नहीं आने देगी। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा कि किसानों को अपने मन से उस काल्पनिक भय को निकाल देना चाहिए जिसके वशीभूत होकर वे दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। निश्चित ही नरेन्द्र मोदी अगर देश के किसानों से यह वादा जिस आत्मविश्वास के साथ कर रहे हैं तो इसके पीछे किसान हित में लिए गए उनके फैसलों की ताकत और आत्मविश्वास भी है।
मोदी सरकार ने फसल बीमा योजना, किसान सम्मान निधि,किसान पेंशन योजना ,न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी जैसे काम निश्चित ही किसानों की भलाई के लिए किए हैं। इस सबके बाबजूद पंजाब से शुरु हुआ किसान आंदोलन विपक्षियों द्वारा उठाई जा रही आशंकाओं एवं शंकाओं से नई दिल्ली के चारों ओर डेरा जमाए हुए है। हम सबने देखा है कि तीनों कृषि कानूनों का सबसे मुखर अब तक पंजाब से हुआ है। कांग्रेस के मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह हों या अकाली दल के प्रकाश ंिसंह बादल उनके विरोध के अपने स्थानीय कारण हैं। आढ़तियों का एक बड़ा वर्ग इन किसान कानूनों से प्रभावित हुआ है एवं ये आढतिए पंजाब की राजनीति में अहम दखल रखते हैं। ऐसे में पंजाब से पक्ष विपक्ष एक सुर से जिस तरह से किसान कानूनों का विरोध कर रहे हैं उसे देखकर हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए मगर क्या इस विरोध को पूरे देश के किसानों का विरोध माना जाए। क्या कुछ हजार किसानों के विरोध के कारण लाखों करोड़ों किसानों के लिए बनाए गए कानून बदल दिए जाएं।
कोई सरकार देश के लिए कानून बनाते समय व्यापक विचार करती है उससे सारे देश की अपेक्षाएं जुड़ी रहती हैं इसलिए मौजूदा समय में उठ रही कानूनों को रद्द करने की बात गले नहीं उतरती। इसके अलावा अगर इन कानूनों का अगर देश भर में किसान विरोध कर रहे होते तो बिहार जैसे बड़े प्रदेश से लेकर मध्यप्रदेश में नरेन्द्र मोदी को नायक मानने वाली भाजपा सरकारों की वापिसी नहीं होती। किसान कानूनों के प्रति देश भर से ऐसा कोई अखिल भारतीय विरोध अब तक नहीं दिखा है मगर इसके बाबजूद सरकार हर किसान के प्रति जवाबदेह है एवं पंजाब एवं हरियाणा से अगर विरोध के स्वर दिल्ली तक पहुंच गए हैं तो सरकार को उनको संतुष्ट करने की दिशा में काम करना चाहिए। राहत की बात है कि ऐसा होते हुए दिख भी रहा है। आंदोलन कर रहे किसानों के प्रतिनिधियों एवं भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के बीच लगातार वार्ता जारी है। बातचीत जारी है एवं बातचीत के विषय में कहा जाता है कि बातचीत से हर मुश्किल का हल होता है आज नही ंतो कल होता है तो उसी धारा पर चलते हुए केन्द्र सरकार को पंजाब एवं हरियाणा से आए इन किसानों की शंकाओं का उचित समाधान करना चाहिए एवं जहां आवश्यक हो इन कानूनों में उचित संशोधन भी करना चाहिए। सरकार अगर हर हाल में न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों को दे रही है तो देश के एक एक किसान तक यह बात और इसके प्रति विश्वास पहुंचना चाहिए। सरकार की यही चुनौती है एवं इसी में किसान आंदोलन के शांतिपूर्ण समापन का हल छिपा हुआ है।
(लेखक- विवेक कुमार पाठक )