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प्रेम भाव सरसाइये, पुलकित हो मन प्राण 

प्रेम भाव सरसाइये, पुलकित हो मन प्राण 

प्रेम भाव सरसाइये, पुलकित हो मन प्राण
जीवन में उत्कर्ष हो, जग का हो कल्याण
खुले हाथ नित बाटती, धरती सबको प्यार
सूख सूख फिर भी हरी, हो उठती हर बार
 
सदाचार संयम विनय, और सतत सत्कर्म
यही सिखाते हैं सभी, इस जग के सब धर्म
सभी चाहते उसी को, जिससे मिलता प्यार
सबसे हिलमिल खुश रहें, जीवन के दिन चार
 
भाग्यवान हैं वे बडे, जिन्हें मिला है प्यार
बिना प्यार जीवन दुखी, सूना सब संसार
प्रेम पनपता है सदा, पा आपस का प्यार
इकतरफा रिश्ता कठिन, निभ पाना दिन चार

मन पर वातावरण का, होता गहन प्रभाव
जब जैसी चलती हवा, उठते वैसे भाव
नैनो से नित झाकते, बैर प्रेम सदभाव
कभी नही छुपते कहीं, मन के द्वेष दुराव

लोगो को अब हो गया, धन से इतना प्यार
घपलो घोटालो से अब, त्रस्त है हर सरकार
जीवन मूल्यो का सतत, होता जाता ह्रास
पर चरित्र के बिना सब, निष्फल रहे प्रयास

अपना अपना सोच है, अपना है व्यवहार
पर सचमुच संसार मे, सिर्फ प्यार है सार
(लेखक -प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध)

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