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(चिंतन-मनन) दुख: भी सहें

(चिंतन-मनन) दुख: भी सहें

आज स्थिति यह है कि महात्मा बनना तो सब चाहते हैं, पर उनके अनुरूप कार्यो से जी चुराते हैं। बलिदान करने के समय हिचकिचाते हैं, वे महान कैसे बन सकते हैं। बादशाह ने सुना, मेरे राज्य में स्थान-स्थान पर रामायण का पारायण हो रहा है। उसे झुंझलाहट हुई। वह कहने लगा-मेरे शासन में राम के गीत गाए जाएं ऍसा क्यों? उत्तर ा़मिला-यहां हिन्दुओं की संख्या अधिक है। कुछ सोचकर बादशाह बोला, 'समुद्र में रहते हैं मगरमच्छ से वैर।' मेरे राज्य में मेरी रामायण चलेगी। बादशाह ने वाकई में अनेक पण्डितों को बुलाकर अपनी रामायण बनाने का आदेश दे दिया, पंडित असमंजस में पड़ गए। करते भी क्या? आखिर उन्हें एक उपाय सूझा। कई दिन बीतने के बाद वे बादशाह के पास गए। 
बादशाह- क्या मेरी रामायण तैयार हो गई? 
पंडित- जहांपनाह! रामायण करीब-करीब पूरी होने वाली है पर एक बात अधूरी है उसके बिना रामायण पूरी नहीं होगी।  
बादशाह- वह क्या है?  
पंडित- रामायण में राम की पत्नी सीता को रावण चुरा कर ले गया था। आपकी कौन-सी बेगम को कौन चुरा कर ले गया!  
बादशाह- (प्रोध में आकर) मेरी बेगम को क्यों ले जाए? टुकड़े-टुकड़े कर दो, ऐसी रामायण मुझे नहीं चाहिए। उसने नई रामायण बनवाने का विचार त्याग दिया।  
कहने का आशय यह है कि आज भी प्राय: व्यक्ति अपनी रामायण (प्रशस्ति) चाहते हैं, पर कष्ट देखना, सहना कोई नहीं चाहता। महात्मा गांधी बनने को सब तैयार हैं, लेकिन गोली खाने के लिए कौन तैयार है?   
 

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